इस देह में हम जीवनमुक्त होने के लिए ही आये हैं .....
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इस देह में हम जीवनमुक्त होने के लिए ही आये हैं| सभी गुणों से हमें मुक्त होना ही होगा| जैसे तमोगुण और रजोगुण में विकृतियाँ हैं वैसे ही सतोगुण में भी हैं| इन तीनों गुणों से परे हो कर ही हम कामनाओं से मुक्त हो सकते हैं| कामनाओं से मुक्ति ही जीवन्मुक्ति है|
भगवान श्रीकृष्ण का आदेश है ....
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन |
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् ||
स्वामी रामसुखदास जी ने इसका अनुवाद यों किया है ......
"वेद तीनों गुणोंके कार्यका ही वर्णन करनेवाले हैं, हे अर्जुन तू तीनों गुणोंसे रहित हो जा, निर्द्वन्द्व हो जा, निरन्तर नित्य वस्तुमें स्थित हो जा योगक्षेमकी चाहना भी मत रख और परमात्मपरायण हो जा|"
इस श्लोक की आध्यात्मिक व्याख्या बहुत गहरी है| इन तीनों गुणों के प्रभाव से जो भी शरीर हमें मिलते हैं वे सब दुःदायक होते हैं| सब की अपनी अपनी पीड़ाएँ हैं| उपनिषदों में विस्तार से सभी के दोष बताये गए हैं| इस देह में दुबारा न आना पड़े इसकी भी विधी शास्त्रों में वर्णित है| यह संसार या कोई भी सांसारिक व्यक्ति हमारा इष्ट नहीं हो सकता|
ज्ञान प्राप्त करने के लिए कष्ट तो हमें उठाना ही पड़ेगा, संसार में धक्के भी खाने होंगे| अपने निज विवेक को काम में लें| सारे कार्य अपने निज विवेक के प्रकाश में करें|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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इस देह में हम जीवनमुक्त होने के लिए ही आये हैं| सभी गुणों से हमें मुक्त होना ही होगा| जैसे तमोगुण और रजोगुण में विकृतियाँ हैं वैसे ही सतोगुण में भी हैं| इन तीनों गुणों से परे हो कर ही हम कामनाओं से मुक्त हो सकते हैं| कामनाओं से मुक्ति ही जीवन्मुक्ति है|
भगवान श्रीकृष्ण का आदेश है ....
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन |
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान् ||
स्वामी रामसुखदास जी ने इसका अनुवाद यों किया है ......
"वेद तीनों गुणोंके कार्यका ही वर्णन करनेवाले हैं, हे अर्जुन तू तीनों गुणोंसे रहित हो जा, निर्द्वन्द्व हो जा, निरन्तर नित्य वस्तुमें स्थित हो जा योगक्षेमकी चाहना भी मत रख और परमात्मपरायण हो जा|"
इस श्लोक की आध्यात्मिक व्याख्या बहुत गहरी है| इन तीनों गुणों के प्रभाव से जो भी शरीर हमें मिलते हैं वे सब दुःदायक होते हैं| सब की अपनी अपनी पीड़ाएँ हैं| उपनिषदों में विस्तार से सभी के दोष बताये गए हैं| इस देह में दुबारा न आना पड़े इसकी भी विधी शास्त्रों में वर्णित है| यह संसार या कोई भी सांसारिक व्यक्ति हमारा इष्ट नहीं हो सकता|
ज्ञान प्राप्त करने के लिए कष्ट तो हमें उठाना ही पड़ेगा, संसार में धक्के भी खाने होंगे| अपने निज विवेक को काम में लें| सारे कार्य अपने निज विवेक के प्रकाश में करें|
ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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