Friday, 16 June 2017

ध्यान से पूर्व की एक धारणा .......


ध्यान से पूर्व की एक धारणा .......
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आज्ञा चक्र में एक प्रकाश की कल्पना करें जो समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त है| पूरा ब्रह्मांड उसी प्रकाश के घेरे में है| फिर यह भाव करें कि मैं स्वयं ही वह प्रकाश हूँ, यह देह नहीं|
"परमात्मा की पूर्ण कृपा मुझ पर है| मेरा सम्पूर्ण अस्तित्व, मेरा सम्पूर्ण प्रेम परमात्मा को समर्पित है| मेरा प्रेम पूरी समष्टि में व्याप्त है| पूरी समष्टि ही मेरा प्रेम है| समस्त प्रेम मैं स्वयं हूँ| जहां भी मैं हूँ, वहीं परमात्मा हैं| परमात्मा सदा मेरे साथ हैं| मेरे से पृथक कुछ भी नहीं है| मैं यह देह नहीं, परमात्मा की सर्वव्यापकता हूँ|".
"मैं ज्योतिषांज्योति हूँ, सारे सूर्यों का सूर्य हूँ, प्रकाशों का प्रकाश हूँ| जैसे भगवान भुवन भास्कर के समक्ष अन्धकार टिक नहीं सकता वैसे ही मेरे परम प्रेम रूपी प्रकाश के समक्ष अज्ञान, असत्य और अन्धकार की शक्तियां नहीं टिक सकतीं|"
"मैं पूर्ण हूँ, सम्पूर्ण पूर्णता हूँ, परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति हूँ| मेरी पूर्णता ही सच्चिदानंद है, मेरी पूर्णता ही परमेश्वर है| मैं मेरे प्रियतम प्रभु के साथ एक हूँ|"
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फिर परमात्मा के शिव रूप पर ध्यान करें ...
शिवोहं शिवोहं ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१६ जून २०१६

1 comment:

  1. "मेरे" प्रियतम प्रभु और "मैं" एक ही हैं........
    ये "मेरे" प्रियतम परमात्मा ही हैं जो यह "मैं" बन गए हैं| ये सारे रूप, गुण, यह सृष्टि उन्हीं की लीला है जो वे स्वयं ही रच रहे हैं| सभी जीवों, सभी जड़-चेतन की आत्मा वे ही हैं, उनमें कोई भेद नहीं है| मेरे परिच्छिन्न विचारों का अब कोई महत्त्व नहीं है|
    हे प्रियतम. तुम्हारी ही इच्छा पूर्ण हो| इस "मैं" का अस्तित्व, कोई स्पृहा, व कोई अभिलाषा न रहे|
    ॐ तत्सत् | तत्वमसि | सोहं | सत्यं ज्ञानं अनंतं ब्रह्म | ॐ ॐ ॐ ||

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