Friday, 16 June 2017

जीवन का मूल उद्देश्य है शिवत्व की प्राप्ति ...

जीवन का मूल उद्देश्य है शिवत्व की प्राप्ति .....
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श्रुति भगवती का आदेश है ‘शिवो भूत्वा शिवं यजेत्’, अर्थात शिव बनकर शिव की आराधना करो| हम शिव कैसे बनें एवं शिवत्व को कैसे प्राप्त करें? इस पर गहन चिंतन करें| शिवत्व का चिंतन कामनाओं/वासनाओं का शमन करता है|
जब मनुष्य की ऊर्ध्व चेतना जागृत होती है तब उसे स्पष्ट ज्ञान हो जाता है कि संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि कामनाओं पर विजय है| पूर्ण निष्काम भाव मनुष्य का देवत्व है|
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परमात्मा सदा मौन है| यही उसका स्वभाव है| परमात्मा ने कभी अपना नाम नहीं बताया| उसके सारे नाम ज्ञानियों व् भक्तों के रचे हुए हैं| यह परमात्मा का स्वभाव है जो हमारा भी स्वभाव होना चाहिए| मौन ही सत्य और सबसे बड़ी तपस्या है| जो मौन की भाषा समझता है और जिसने मौन को साध लिया वह ही मुनि है|
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वास्तव में परमात्मा अपरिभाष्य और अचिन्त्य है| उसके बारे में जो कुछ भी कहेंगे वह सत्य नहीं होगा| सिर्फ श्रुतियाँ ही प्रमाण है, बाकि सब अनुमान| सबसे बड़ा प्रमाण तो आत्म साक्षात्कार ही है|
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सीमित व अशांत मन ही सारे प्रश्नों को जन्म देता है| जब मन शांत व विस्तृत होता है तब सारे प्रश्न तिरोहित हो जाते हैं| चंचल प्राण ही मन है| प्राणों में जितनी स्थिरता आती है, मन उतना ही शांत और विस्तृत होता है| प्राणों में स्थिरता आती है प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा और ध्यान से| अशांत चित्त ही वासनाओं को जन्म देता है| अहंकार एक अज्ञान है| ह्रदय में भक्ति (परम प्रेम) और शिवत्व की अभीप्सा भी आवश्यक है|
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शिवत्व एक अनुभूति है| उस अनुभूति को उपलब्ध होकर हम स्वयं भी शिव बन जाते हैं| शिव है जो सब का कल्याण करे| हमारा भी अस्तित्व समष्टि के लिए वरदान होगा| हमारा अस्तित्व भी सब का कल्याण करेगा| हम उस शिवत्व को प्राप्त हों|
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कूटस्थ में ओंकार रूप में शिव के गहन ध्यान से हम शिवत्व को उपलब्ध होते हैं| इससे किसी कामना की पूर्ति नहीं अपितु कामनाओं का शमन होता है| आते जाते हर साँस के साथ उनका चिंतन-मनन और समर्पण ..... उनकी परम कृपा की प्राप्ति करा कर आगे का मार्ग प्रशस्त कराता है| जब मनुष्य की ऊर्ध्व चेतना जागृत होती है तब उसे स्पष्ट ज्ञान हो जाता है कि संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि है .... कामना और इच्छा की समाप्ति| जीवन अति अल्प है, क्या हम इसे वासनाओं/कामनाओं की पूर्ती में ही नष्ट कर देंगे?
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जिनसे जगत की रचना, पालन और नाश होता है, जो इस सारे जगत के कण कण में व्याप्त हैं, जो समस्त प्राणधारियों की हृदय-गुहा में निवास करते हैं, जो सर्वव्यापी और सबके भीतर रम रहे हैं, वे ही शिव हैं| शिव शब्द का अर्थ मंगल एवं कल्याण है| जो सबका मंगल और कल्याण करने वाले हैं, वे ही शिव हैं|
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ॐ नमः शम्भवाय च | मयोभवाय च | नमः शङ्कराय च | मयस्कराय च | नमः शिवाय च | शिवतराय च || ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१६ जून २०१६
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पुनश्चः --- पतंग उड़ता है और चाहता है कि वह उड़ता ही रहे और उड़ते उड़ते आसमान को छू ले| पर वह नहीं जानता कि एक डोर से वह बंधा हुआ है जो उसे खींच कर बापस भूमि पर ले आती है| असहाय है बेचारा ! और कर भी क्या सकता है? वैसे ही जीव भी चाहता है शिवत्व को प्राप्त करना, यानि परमात्मा को समर्पित होना| उसके लिए शरणागत भी होता है और साधना भी करता है पर अवचेतन में छिपी कोई वासना अचानक प्रकट होती है और उसे चारों खाने चित गिरा देती है| पता ही नहीं चलता कि अवचेतन में क्या क्या कहाँ कहाँ छिपा है| कोई Short Cut यानि लघु मार्ग नहीं है जो इन वासनाओं से मुक्त कर दे| मार्ग एक ही है जो उपासना और समर्पण का है जिससे शिवकृपा प्राप्त होती है| अन्य कोई मार्ग मेरी दृष्टी में तो नहीं है| ॐ ॐ ॐ ||

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श्रुति भगवती का आदेश है ‘शिवो भूत्वा शिवं यजेत्’, अर्थात शिव बनकर शिव की आराधना करो| हम शिव कैसे बनें एवं शिवत्व को कैसे प्राप्त करें? इस पर गहन चिंतन करें| शिवत्व का चिंतन कामनाओं/वासनाओं का शमन करता है|
जब मनुष्य की ऊर्ध्व चेतना जागृत होती है तब उसे स्पष्ट ज्ञान हो जाता है कि संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि कामनाओं पर विजय है| पूर्ण निष्काम भाव मनुष्य का देवत्व है|
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परमात्मा सदा मौन है| यही उसका स्वभाव है| परमात्मा ने कभी अपना नाम नहीं बताया| उसके सारे नाम ज्ञानियों व् भक्तों के रचे हुए हैं| यह परमात्मा का स्वभाव है जो हमारा भी स्वभाव होना चाहिए| मौन ही सत्य और सबसे बड़ी तपस्या है| जो मौन की भाषा समझता है और जिसने मौन को साध लिया वह ही मुनि है|
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वास्तव में परमात्मा अपरिभाष्य और अचिन्त्य है| उसके बारे में जो कुछ भी कहेंगे वह सत्य नहीं होगा| सिर्फ श्रुतियाँ ही प्रमाण है, बाकि सब अनुमान| सबसे बड़ा प्रमाण तो आत्म साक्षात्कार ही है|
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सीमित व अशांत मन ही सारे प्रश्नों को जन्म देता है| जब मन शांत व विस्तृत होता है तब सारे प्रश्न तिरोहित हो जाते हैं| चंचल प्राण ही मन है| प्राणों में जितनी स्थिरता आती है, मन उतना ही शांत और विस्तृत होता है| प्राणों में स्थिरता आती है प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा और ध्यान से| अशांत चित्त ही वासनाओं को जन्म देता है| अहंकार एक अज्ञान है| ह्रदय में भक्ति (परम प्रेम) और शिवत्व की अभीप्सा भी आवश्यक है|
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शिवत्व एक अनुभूति है| उस अनुभूति को उपलब्ध होकर हम स्वयं भी शिव बन जाते हैं| शिव है जो सब का कल्याण करे| हमारा भी अस्तित्व समष्टि के लिए वरदान होगा| हमारा अस्तित्व भी सब का कल्याण करेगा| हम उस शिवत्व को प्राप्त हों|
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कूटस्थ में ओंकार रूप में शिव के गहन ध्यान से हम शिवत्व को उपलब्ध होते हैं| इससे किसी कामना की पूर्ति नहीं अपितु कामनाओं का शमन होता है| आते जाते हर साँस के साथ उनका चिंतन-मनन और समर्पण ..... उनकी परम कृपा की प्राप्ति करा कर आगे का मार्ग प्रशस्त कराता है| जब मनुष्य की ऊर्ध्व चेतना जागृत होती है तब उसे स्पष्ट ज्ञान हो जाता है कि संसार की सबसे बड़ी उपलब्धि है .... कामना और इच्छा की समाप्ति| जीवन अति अल्प है, क्या हम इसे वासनाओं/कामनाओं की पूर्ती में ही नष्ट कर देंगे?
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जिनसे जगत की रचना, पालन और नाश होता है, जो इस सारे जगत के कण कण में व्याप्त हैं, जो समस्त प्राणधारियों की हृदय-गुहा में निवास करते हैं, जो सर्वव्यापी और सबके भीतर रम रहे हैं, वे ही शिव हैं| शिव शब्द का अर्थ मंगल एवं कल्याण है| जो सबका मंगल और कल्याण करने वाले हैं, वे ही शिव हैं|
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ॐ नमः शम्भवाय च | मयोभवाय च | नमः शङ्कराय च | मयस्कराय च | नमः शिवाय च | शिवतराय च || ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
१६ जून २०१६
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पुनश्चः --- पतंग उड़ता है और चाहता है कि वह उड़ता ही रहे और उड़ते उड़ते आसमान को छू ले| पर वह नहीं जानता कि एक डोर से वह बंधा हुआ है जो उसे खींच कर बापस भूमि पर ले आती है| असहाय है बेचारा ! और कर भी क्या सकता है? वैसे ही जीव भी चाहता है शिवत्व को प्राप्त करना, यानि परमात्मा को समर्पित होना| उसके लिए शरणागत भी होता है और साधना भी करता है पर अवचेतन में छिपी कोई वासना अचानक प्रकट होती है और उसे चारों खाने चित गिरा देती है| पता ही नहीं चलता कि अवचेतन में क्या क्या कहाँ कहाँ छिपा है| कोई Short Cut यानि लघु मार्ग नहीं है जो इन वासनाओं से मुक्त कर दे| मार्ग एक ही है जो उपासना और समर्पण का है जिससे शिवकृपा प्राप्त होती है| अन्य कोई मार्ग मेरी दृष्टी में तो नहीं है| ॐ ॐ ॐ ||

1 comment:

  1. आप ईश्वरका कार्य कर रहे हो. हमारी प्रार्थनाये आपके साथ है
    अण्णा सोनवणे
    २९/०१/२०१९.

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