"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः। तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥"
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भावार्थ :-- जहाँ योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण हैं, और जहाँ धनुर्धर पार्थ है, वहीं पर श्री, विजय, विभूति और अचल नीति है॥
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यही अंतिम सत्य है। इस से आगे कुछ है ही नहीं। धनुर्धर पार्थ कौन है? हम स्वयं हैं। हमारे समक्ष कौन है? स्वयं भगवान श्रीकृष्ण हैं। जहाँ ये दोनों हैं, वहीं विजय-विभूति है। बाकी कुछ बचा ही नहीं है। सब कुछ यहीं समाहित हो गया है। समस्त योग और उनके बीज योगेश्वर भगवान से उत्पन्न हुए हैं। सब योगों के ईश्वर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण हैं। जिस पक्ष में गाण्डीव धनुर्धारी पृथापुत्र अर्जुन और भगवान श्रीकृष्ण हैं, उस पक्ष में ही "श्री" और "विजय" रूपी विभूति है। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१८ सितंबर २०२४
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