हम भगवान के साथ एक हैं
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भगवान सर्वत्र व्याप्त हैं, न तो कोई उनका प्रिय है और न अप्रिय। लेकिन जो उनको प्रेम से भजते हैं, भगवान उनमें हैं, और वे भी भगवान में हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कहते हैं --
"समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्॥९:२९॥"
अर्थात् - मैं समस्त भूतों में सम हूँ, न कोई मुझे अप्रिय है और न प्रिय, परन्तु जो मुझे भक्तिपूर्वक भजते हैं, वे मुझमें और मैं भी उनमें हूँ॥
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वे सभी प्राणियों के प्रति समान हैं। उनका न तो कोई द्वेष्य है और न कोई प्रिय। वे अग्नि के समान हैं। जैसे अग्नि अपने से दूर रहने वाले प्राणियों के शीत का निवारण नहीं करता, पास आने वालों का ही करता है, वैसे ही वे भक्तों पर अनुग्रह करते हैं। भगवान कहते हैं --
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥६:३०॥"
अर्थात् जो पुरुष मुझे सर्वत्र देखता है, और सबको मुझमें देखता है, उसके लिए मैं नष्ट नहीं होता (अर्थात् उसके लिए मैं दूर नहीं होता) और वह मुझसे वियुक्त नहीं होता॥
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भगवान कहते हैं --
"ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः॥४:११॥"
अर्थात् - जो मुझे जैसे भजते हैं, मैं उन पर वैसे ही अनुग्रह करता हूँ; हे पार्थ सभी मनुष्य सब प्रकार से, मेरे ही मार्ग का अनुवर्तन करते हैं॥
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जो सर्वात्मभाव में है वह भगवान के साथ एक है।
ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२९ मई २०२४
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