Friday, 31 January 2025

अनात्म में बहुत अधिक भटक गया हूँ, परमात्म मूल में बापस लौट रहा हूँ ---


अनात्म में बहुत अधिक भटक गया हूँ। परमात्म मूल में बापस लौट रहा हूँ। स्थिर हो सदा वहीं रहूँगा। अब और भटकने का मन नहीं है। जीव भाव से मुक्त होकर हम ऊपर उठें, और शिव भाव में प्रतिष्ठित हों, तभी हम गूढ आध्यात्मिक रहस्यों को समझ पायेंगे। परमात्मा का स्मरण हर समय करना चाहिये। किसी परिस्थिति विशेष में हम यदि स्मरण न भी कर पायें तो परमात्मा स्वयं हमारा स्मरण कर हमें परम गति प्रदान करते हैं। मेरे लिये शब्द-रचना अब बड़ी कठिन और असंभव सी होती जा रही है, क्योंकि मेरी स्मृति लगातार क्षीण हो रही है। ईश्वर की चेतना सदा बनी रहे। सत्यं ज्ञानं अनंतं ब्रह्म॥ ॐ तत्सत्॥ ॐ ॐ ॐ॥
कृपा शंकर
३० जनवरी २०२५

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