Wednesday, 21 July 2021

एकै साधे सब सधै ---


रहीम जी का एक प्रसिद्ध दोहा है --
"एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय| रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय||"
इस दोहे का आध्यात्मिक अर्थ यह है कि एक परमात्मा को साधने से संसार अपने आप सध जाता है, क्योंकि परमात्मा सब का मूल है|
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कुछ बातें मैं अपने अनुभव से कह रहा हूँ क्योंकि मैंने आध्यात्मिक रूप से भटक-भटक कर खूब समय भी नष्ट किया है, खूब धक्के भी खाये हैं, और खूब अनुभव भी लिए हैं| मैं नहीं चाहता कि जितना मैं भटका हूँ, उतना कोई और भटके|
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कोई भी आध्यात्मिक साधना हो, हमारा एकमात्र लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति है, न कि कुछ और| जहाँ अन्य भी कोई लक्ष्य हो, उन्हें मेरे जैसे गलत व्यक्ति के लेख पढ़कर अपना समय नष्ट करने की कोई आवश्यकता नहीं है| परमात्मा के एक ही रूप की उपासना करें| सत्संग भी उन्हीं महात्माओं का करें जो हमारी साधना के अनुकूल हो|
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चाहे कितना भी बड़ा महात्मा हो, यदि उसका आचरण गलत हो तो उसे विष की तरह त्याग दें| वह विष मिले मधु की तरह है| यदि गुरु का आचरण गलत है, तो गुरु भी त्याज्य है|
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जब अनेक पूर्व जन्मों के संचित पुण्यों का उदय होता है तब भगवान की भक्ति जागृत होती है| फिर कुछ और जन्म बीत जाते हैं तब अंतर्रात्मा में परमात्मा को पाने की अभीप्सा जागृत होती है| जब वह अभीप्सा अति प्रबल हो जाती है तब जीवन में सद्गुरु की प्राप्ति होती है| फिर भी हमारी निम्न प्रकृति हमें छोड़ती नहीं है| वह निम्न प्रकृति हमारे अवचेतन मन में छिपे पूर्व जन्मों के बुरे संस्कारों, और गलत आदतों को जागृत करती रहती है| इस निम्न प्रकृति पर विजय पाना ही सबसे बड़ी आरंभिक मुख्य साधना है|
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घर-परिवार के प्रति मोह बहुत बड़ी बाधा है| घर-परिवार के लोगों की नकारात्मक सोच, गलत माँ-बाप के यहाँ जन्म, गलत पारिवारिक संस्कार, गलत विवाह, गलत मित्र, और गलत वातावरण, कोई साधन-भजन नहीं करने देता| घर-परिवार के मोह के कारण ऐसे जिज्ञासु बहुत अधिक दुखी रहते हैं| वर्तमान में जैसा वातावरण है उसमें घर पर रहकर साधना करना लगभग असम्भव और अत्यंत कष्टप्रद है|
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मेरा तो यह मानना है कि जब एक बार युवावस्था में ईश्वर की एक झलक भी मिल जाये तब उसी समय व्यक्ति को गृहत्याग कर देना चाहिए| रामचरितमानस में कहा है .....
"सुख सम्पति परिवार बड़ाई | सब परिहरि करिहऊँ सेवकाई ||
ये सब रामभक्ति के बाधक | कहहिं संत तव पद अवराधक ||"
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आज के समाज का वातावरण अत्यंत प्रदूषित और विषाक्त है जहाँ भक्ति करना असम्भव है| यदि कोई कर सकता है तो वह धन्य है| बहुत कम ऐसे भाग्यशाली हैं, लाखों में कोई एक ऐसा परिवार होगा जहाँ पति-पत्नी दोनों साधक हों| ऐसा परिवार धन्य हैं| वे घर में रहकर भी विरक्त हैं| ऐसे ही परिवारों में महान आत्माएं जन्म लेती हैं|
आप सब महान आत्माओं को नमन| ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२१ जुलाई २०२०

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