Tuesday, 28 June 2016

माया के सबसे बड़े शस्त्र --- "प्रमाद" और "दीर्घसूत्रता" हैं .....

माया के सबसे बड़े शस्त्र --- "प्रमाद" और "दीर्घसूत्रता" हैं .....
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(१) ब्रह्मविद्या के आचार्य भगवान सनत्कुमार कहते हैं ...."प्रमादो वै मृत्युमहं ब्रवीमि"| अर्थात् प्रमाद ही मृत्यु है|
अपने "अच्युत स्वरूप" को भूलकर "च्युत" हो जाना ही प्रमाद है और इसी का नाम "मृत्यु" है। जहाँ अपने अच्युत भाव से च्युत हुए, बस वहीँ मृत्यु है , इससे आगे मृत्यु कुछ नहीं है।
जब भगवान सनत्कुमार कहते हैं कि --- "प्रमादो वै मृत्युमहं ब्रवीमि" --- अर्थात् प्रमाद ही मृत्यु है तो उनकी बात पूर्ण सत्य है| भगवान सनत्कुमार ब्रह्मविद्या के आचार्य हैं और भक्तिसुत्रों के आचार्य देवर्षि नारद के गुरु हैं| उनका कथन मिथ्या नहीं हो सकता|
ॐ नमो भगवते सनत्कुमाराय |
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दुर्गा सप्तशती में 'महिषासुर' --- प्रमाद --- यानि आलस्य रूपी तमोगुण का ही प्रतीक है| आलस्य यानि प्रमाद को समर्पित होने का अर्थ है -- 'महिषासुर' को अपनी सत्ता सौंपना|
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(२) आत्मविस्मृति दीर्घसूत्रता के कारण ही होती है| यह दीर्घसूत्रता सब से बड़ा दुर्गुण है जो हमें परमात्मा से दूर करता है|

दीर्घसूत्रता का अर्थ है काम को आगे के लिए टालना| साधना में दीर्घसूत्रता यानि आगे टालने की प्रवृति साधक की सबसे बड़ी शत्रु है, ऐसा मेरा निजी प्रत्यक्ष अनुभव है|
सबसे बड़ा शुभ कार्य है --- भगवान की भक्ति, जिसे आगे के लिए नहीं टालना चाहिए| जो लोग कहते हैं कि अभी हमारा समय नहीं आया, उनका समय कभी नहीं आयेगा|
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जल के पात्र को साफ़ सुथरा रखने के लिए नित्य साफ़ करना आवश्यक है अन्यथा उस पर जंग लग जाती है| एक गेंद को सीढ़ियों पर गिराओ तो वह उछलती हुई क्रमशः नीचे की ओर ही जायेगी| वैसे ही मनुष्य की चित्तवृत्तियाँ (जो वासनाओं के रूप में व्यक्त होती है) अधोगामी होती है, वे मनुष्य का क्रमशः निश्चित रूप से पतन करती हैं| उनके निरोध को ही 'योग' की साधना है|
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नित्य नियमित साधना अत्यंत आवश्यक है| मन में इस भाव का आना कि थोड़ी देर बाद करेंगे, हमारा सबसे बड़ा शत्रु है| यह 'थोड़ी देर बाद करेंगे' कह कर काम को टाल देते हैं वह 'थोड़ी देर' फिर कभी नहीं आती| इस तरह कई दिन और वर्ष बीत जाते हैं| जीवन के अंत में पाते हैं की बहुमूल्य जीवन निरर्थक ही नष्ट हो गया|
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अतः मेरे अनुभव से भी प्रमाद और दीर्घसूत्रता तमोगुण है| ये ही माया का सबसे बड़े हथियार है| यह माया ही है जिसे कुछ लोग 'शैतान' या 'काल पुरुष' कहते हैं| सृष्टि के संचालन के लिए माया भी आवश्यक है| पर इससे परे जाना ही हमारा प्राथमिक लक्ष्य है|
ॐ शिव | ॐ ॐ ॐ ||

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