Friday, 31 October 2025

भगवान से हमें पृथक किसने किया है?

 भगवान की भक्ति, भगवान से कुछ लेने के लिए नहीं, उन्हें अपना पृथकत्व का मायावी बोध बापस लौटाने के लिए होती है| हम उन सच्चिदानंद भगवान के अंश हैं, वे स्वयं ही हमारे हैं और हम उनके हैं, अतः जो कुछ भी भगवान का ही, वह हम स्वयं हैं| हम उनके साथ एक हैं, उन से पृथक नहीं|

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प्रश्न : भगवान से हमें पृथक किसने किया है?
उत्तर : हमारे राग-द्वेष और अहंकार ने| और भी स्पष्ट शब्दों में हमारा सत्यनिष्ठा का अभाव, प्रमाद, दीर्घसूत्रता, और लोभ हमें भगवान से दूर करते हैं| हमारा थोड़ा सा भी लोभ, बड़े-बड़े कालनेमि/ठगों को हमारी ओर आकर्षित करता है| जो भी व्यक्ति हमें थोड़ा सा भी प्रलोभन देता है, चाहे वह आर्थिक या धार्मिक प्रलोभन हो, वह शैतान है, उस से दूर रहें|
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जो वास्तव में भगवान का भक्त है, वह भगवान के सिवाय और कुछ भी नहीं चाहता| जो हमारे में भगवान के प्रति प्रेम जागृत करे, जो हमें सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे, वही संत-महात्मा है, उसी का संग करें| अन्य सब विष यानि जहर मिले हुए शहद की तरह हैं| किसी भी तरह के शब्द जाल से बचें| हमारा प्रेम यानि भक्ति सच्ची होगी तो भगवान हमारी रक्षा करेंगे| सभी का कल्याण हो|
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हरिः ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१ नवंबर २०२०

शांभवी मुद्रा --- एक स्वभाविक मुद्रा है जो ध्यान करते-करते धीरे धीरे स्वतः ही होने लगती है ---

 शांभवी मुद्रा --- एक स्वभाविक मुद्रा है जो ध्यान करते-करते धीरे धीरे स्वतः ही होने लगती है। अगर पद्मासन और खेचरी का अभ्यास है तो शांभवी मुद्रा बहुत ही शीघ्र सिद्ध हो जाती है, अन्यथा थोड़ा समय लगता है। सारे उन्नत योगी शाम्भवी मुद्रा में ही ध्यानस्थ रहते हैं। सुखासन अथवा पद्मासन में बैठकर मेरुदंड को उन्नत रखते हुए साधक शिवनेत्र होकर अर्धोन्मीलित नेत्रों से भ्रूमध्य पर दृष्टी स्थिर रखता है। धीरे धीरे पूर्ण खेचरी या अर्ध-खेचरी भी स्वतः ही लग जाती है|

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आध्यात्मिक रूप से खेचरी का अर्थ है --- चेतना का सम्पूर्ण आकाश में विचरण, यानि चेतना का इस भौतिक देह में न होकर पूरी अनंतता में होना है। भौतिक रूप से खेचरी का अर्थ है -- जिह्वा को उलट कर तालू के भीतर भीतर प्रवेश कराकर ऊपर की ओर रखना। गहरी समाधि के लिए यह आवश्यक है। जो पूर्ण खेचरी नहीं कर सकते वे अर्धखेचरी कर सकते हैं जीभ को ऊपर पीछे की ओर मोडकर तालू से सटाकर रखते हुए।
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अर्धोन्मीलित नेत्रों को भ्रूमध्य में स्थिर रखकर साधक पहिले तो भ्रूमध्य में एक प्रकाश की कल्पना करता है और यह भाव करता है कि वह प्रकाश सम्पूर्ण ब्रह्मांड में फ़ैल गया है| फिर संहार बीज और सृष्टि बीज --- 'हं" 'सः' के साथ गुरु प्रदत्त विधि के साथ अजपा-जप करता है और उस सर्वव्यापक ज्योति के साथ स्वयं को एकाकार करता है। समय आने पर गुरुकृपा से विद्युत् की चमक के समान देदीप्यमान ब्रह्मज्योति ध्यान में प्रकट होती है। उस ब्रह्मज्योति पर ध्यान करते करते प्रणव की ध्वनि सुनने लगती है तब साधक उसी में लय हो जाता है। सहत्रार की अनुभूति होने लगती है और बड़े दिव्य अनुभव होते हैं। पर साधक उन अनुभवों पर ध्यान न देकर पूर्ण भक्ति के साथ ज्योति ओर नाद रूप में परमात्मा में ही अपने अहं को विलय कर देता है। तब सारी प्राण चेतना आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य स्थिर हो जाती है। यही शाम्भवी मुद्रा की पूर्ण सिद्धि है।
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नमः शिवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
१ नवंबर २०२१ -- (संशोधित व पुनर्प्रेषित लेख)
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पुनश्च: --- शांभवी मुद्रा के बारे में आगे की और भी कई बाते हैं, जो मैंने जानबूझ कर नहीं लिखी हैं क्योंकि उन्हें सिर्फ साधक ही समझ सकते हैं।

Thursday, 30 October 2025

सात व्याह्रतियों के साथ गायत्री मन्त्र और प्राणायाम ......

 सात व्याह्रतियों के साथ गायत्री मन्त्र और प्राणायाम ......

(गायत्री साधना की यौगिक व तांत्रिक विधि)
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(निम्न प्रस्तुति मेरे अनेक साधू-संतों, योगियों व विद्वानों के साथ हुए व्यक्तिगत सत्संगों से प्राप्त ज्ञान, साधना के निजी अनुभवों और स्वाध्याय पर आधारित है| यह प्रस्तुति मात्र गंभीर योग साधकों के लिए ही है|)
पूर्व में मैनें भागवत मन्त्र पर एक चर्चा की थी जिसे मेरी ही निजात्मा आप सब मनीषियों ने बहुत सराहा जिनके प्रेम से मैं अभिभूत हूँ| भागवत मन्त्र योगियों का सर्वाधिक प्रिय मन्त्र है जिसकी उपादेयता सभी को है|
आज मैं प्रभु प्रेरणा से सप्त व्याह्रति युक्त त्रिपदा गायत्री मन्त्र पर एक चर्चा करने का दु:साहस कर रहा हूँ| कहीं चूक भी जाऊँ तो आप सब मुझे क्षमा भी कर ही देंगे क्योंकि आप सब मेरी ही निजात्मा हैं और मेरे ह्रदय का सम्पूर्ण अहैतुकी प्रेम आप सब को समर्पित है|
भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं को 'गायत्री छन्दसामहम्' अर्थात छंदों में गायत्री कहा है|
गायत्री मन्त्र को ही सावित्री मन्त्र भी कहते है| महाभारत में भी सावित्री (गायत्री) मंत्र की महिमा कई स्थानों पर गाई गयी है।
भीष्म पितामह युद्ध के समय जब शरशय्या पर पड़े होते हैं तो उस समय अन्तिम उपदेश के रूप में युधिष्ठिर आदि को गायत्री उपासना की प्रेरणा देते हैं। भीष्म पितामह का यह उपदेश महाभारत के अनुशासन पर्व के अध्याय 150 में दिया गया है|
युधिष्ठिर पितामह से प्रश्न करते हैं ..... हे पितामह महाप्रज्ञ सर्व शास्त्र विशारद, किम् जप्यं जपतों नित्यं भवेद्धर्म फलं महत ॥ प्रस्थानों वा प्रवेशे वा प्रवृत्ते वाणी कर्मणि ।। देवें व श्राद्धकाले वा किं जप्यं कर्म साधनम ॥ शान्तिकं पौष्टिक रक्षा शत्रुघ्न भय नाशनम् ।। जप्यं यद् ब्रह्मसमितं तद्भवान् वक्तुमर्हति ॥
भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा --- यान पात्रे च याने च प्रवासे राजवेश्यति ।। परां सिद्धिमाप्नोति सावित्री ह्युत्तमां पठन ॥ न च राजभय तेषां न पिशाचान्न राक्षसान् ।। नाग्न्यम्वुपवन व्यालाद्भयं तस्योपजायते ॥ चतुर्णामपि वर्णानामाश्रमस्य विशेषतः ।। करोति सततं शान्ति सावित्री मुत्तमा पठन् ॥
नार्ग्दिहति काष्ठानि सावित्री यम पठ्यते ।। न तम वालोम्रियते न च तिष्ठन्ति पन्नगाः ॥ न तेषां विद्यते दुःख गच्छन्ति परमां गतिम् ।। ये शृण्वन्ति महद्ब्रह्म सावित्री गुण कीर्तनम ॥ गवां मन्ये तु पठतो गावोऽस्य बहु वत्सलाः ।। प्रस्थाने वा प्रवासे वा सर्वावस्थां गतः पठेत ॥
''जो व्यक्ति सावित्री (गायत्री) का जप करते हैं उनको धन, पात्र, गृह सभी भौतिक वस्तुएँ प्राप्त होती हैं ।। उनको राजा, दुष्ट, राक्षस, अग्नि, जल, वायु और सर्प किसी से भय नहीं लगता ।। जो लोग इस उत्तम मन्त्र गायत्री का जप करते हैं, वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चारों वर्ण एवं चारों आश्रमों में सफल रहते हैं ।।
जिस स्थान पर सावित्री का पाठ किया जाता है, उस स्थान में अग्नि काष्ठों को हानि नहीं पहुँचाती है, बच्चों की आकस्मिक मृत्यु नहीं होती, न ही वहाँ अपङ्ग रहते हैं ।।
जो लोग सावित्री के गुणों से भरे वेद को ग्रहण करते हैं उन्हें किसी प्रकार का कष्ट एवं क्लेश नहीं होता है तथा जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करते हैं ।।
गौवों के बीच सावित्री का पाठ करने से गौवों का दूध अधिक पौष्टिक होता है ।। घर हो अथवा बाहर, चलते फिरते सदा ही गायत्री का जप किया करें ।
भीष्म पितामह कहते हैं कि सावित्री- गायत्री से बढ़कर कोई जप नहीं है|
गायत्री का दूसरा नाम सावित्री सविता की शक्ति ब्रह्मशक्ति होने के कारण ही रखा गया है।
गायत्री का सविता होने के संदर्भ में कुछ उक्तियाँ इस प्रकार हैं— सवितुश्चाधिदेवो या मन्त्राधिष्ठातृदेवता। सावित्री ह्यपि वेदाना सावित्री तेन कीर्तिता। -देवी भागवत
इस सावित्री मन्त्र का देवता सविता- (सूर्य) है। वेद मंत्रों की अधिष्ठात्री देवी वही है। इसी से उसे सावित्री कहते हैं।
यो देवः सवितास्माकं धियो धर्मादिगोचरः। प्रेरयेत् तस्य यद् भर्गः तं वरेण्यमुषास्महे।।
‘जो सविता देव हमारी बुद्धि को धर्म में प्रेरित करता है उसके श्रेष्ठ भर्ग (तेज) की हम उपासना करते हैं।
सर्व लोकप्रसवनात् सविता स तु कीर्त्यते। यतस्तद् देवता देवी सावित्रीत्युच्यते ततः।।-अमरकोश
‘‘वे सूर्य भगवान समस्त जगत को जन्म देते हैं इसलिए ‘सविता’ कहे जाते हैं। गायत्री मन्त्र के देवता ‘सविता’ हैं इसलिए उसकी दैवी-शक्ति को ‘सावित्री’ कहते हैं।’’
मनोवै सविता। प्राणधियः। -शतपथ 3/6/1/13
प्राण एव सविता, विद्युतरेव सविता। -शतपथ 7/7/9
सूर्य ही तेज कहा जाता है।
ब्रह्म तेज और सविता एक ही हैं। गायत्री को तेजस्विनी कहा गया है। सविता तेज का प्रतीक है। अस्तु सविता का तेज और गायत्री के भर्ग को एक ही समझा जाना चाहिए।
गायत्री मन्त्र के देवता सविता हैं और उनकी भर्गः ज्योति का ध्यान करते हैं जो आज्ञा चक्र से ऊपर सहस्त्रार में या उससे भी ऊपर दिखाई देती है|
गुरु कृपा से ही परा सुषुम्ना का द्वार खुलता है जो मूलाधार से आज्ञा चक्र तक है|
उससे भी आगे उत्तरा सुषुम्ना जो आज्ञाचक्र से सहस्त्रार तक है, में प्रवेश तो गुरु की अति विशेष कृपा से ही हो पाता है|
वहाँ जो ज्योति दिखाई देती है वही सविता देव की भर्गः ज्योति है जिसका ध्यान किया जाता है और जिसकी आराधना होती है| इसका क्रम इस प्रकार मेरुदंड व मस्तिष्क के सूक्ष्म चक्रों पर मानसिक जाप करते हुए है ---
ॐ भू: ------ मूलाधार चक्र,
ॐ भुवः ---- स्वाधिष्ठान चक्र,
ॐ स्वः ----- मणिपुर चक्र,
ॐ महः ---- अनाहत चक्र,
ॐ जनः -- -- विशुद्धि चक्र,
ॐ तपः ------ आज्ञा चक्र,
ॐ सत्यम् --- सहस्त्रार ||
फिर आज्ञाचक्र और सहस्त्रार के मध्य में विराट सर्वव्यापी श्वेत भर्ग: ज्योति का ध्यान किया जाता है और चित्त जब स्थिर हो जाता है तब फिर प्रार्थना की जाती है ----
"ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं| ॐ भर्गोदेवस्य धीमहि| ॐ धियो योन: प्रचोदयात||"
यह त्रिपदा गायत्री है| इसमें चौबीस अक्षर हैं|
यह एक जप है| जप से पूर्व संकल्प करना पड़ता है कि आप कितने जप करेंगे| जितनों का संकल्प लिया है उतने तो करने ही पड़ेंगे|
फिर उस ज्योति का ध्यान करते रहो और ॐ के साथ साथ ईश्वर की सर्वव्यापकता में मानसिक अजपा-जप करते रहो| ईश्वर की सर्वव्यापकता आप स्वयं ही हैं|
(पूरी विधि किसी शक्तिपात संपन्न सद्गुरु से सीखनी चाहिए)
समापन -- 'ॐ आपो ज्योति रसोsमृतं ब्रह्मभूर्भुवःस्वरोम्' से कर के लम्बे समय तक बैठे रहो अपने आसन पर और सर्वस्व के कल्याण की कामना करो| प्रभु को अपना सम्पूर्ण परम प्रेम अर्पित करो और आप स्वयं ही वह परम प्रेम बन जाओ|
मुझे एक संत ने बताया था कि ऋग्वेद में एक मंत्र है जिस में "गायत्री" शब्द आता है और उस मन्त्र के दर्शन बिश्वामित्र से बहुत पूर्व शव्याश्व्य ऋषि को हुए थे|
प्रचलित गायत्री मन्त्र के दृष्टा विश्वामित्र ऋषि थे| इस के चौबीस अक्षर हैं और तीन पद हैं| अतः यह त्रिपदा चौबीस अक्षरी गायत्री मन्त्र कहलाता है| बाद में अन्य महान ऋषियों ने गायत्री मंत्र से पहले "भू", भुवः, और "स्वः" ये तीन व्याह्रतियाँ भी जोड़ दीं| अतः पूरा मन्त्र अपने प्रचलित वर्त्तमान स्वरुप में आ गया|
यह सप्त व्याह्रातियुक्त गायत्री साधना की विधि बहुत अधिक शक्तिशाली है और प्रभावी है|
ॐ तत्सत्| ॐ नमः शिवाय|
३१ अक्तुबर २०१३

अमानित्व, अदम्भित्व, व सत्यनिष्ठा बहुत बड़े गुण हैं, जो भगवान को प्रिय हैं ---

 अमानित्व, अदम्भित्व, व सत्यनिष्ठा बहुत बड़े गुण हैं, जो भगवान को प्रिय हैं|

हमारे विचारों व व्यवहार में कोई कुटिलता न हो| सारे कार्य ईश्वर प्रदत्त निज विवेक के प्रकाश में करें| अच्छी तरह सोच-समझ कर ही कुछ बोलें| कम से कम शब्दों का प्रयोग करें| अपना मार्गदर्शन अपने हृदय में बिराजमान परमात्मा से ही लें| उनसे बड़ा हितैषी और मित्र अन्य कोई नहीं है| झूठ-कपट से बचें| भगवान ही एकमात्र वरणीय हैं| उनको पाने की अभीप्सा, स्मृति व परमप्रेम निरंतर बना रहे| अन्य कुछ भी नहीं चाहिए|
ॐ तत्सत ! ॐ ॐ ॐ !!
३१ अक्तूबर २०१९

पूर्वाञ्चल (पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार) के सभी श्रद्धालुओं को कार्तिक शुक्ल षष्ठी को आने वाले छठ पर्व पर अभिनन्दन, नमन और शुभ कामनाएँ --------

 पूर्वाञ्चल (पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड और बिहार) के सभी श्रद्धालुओं को कार्तिक शुक्ल षष्ठी को आने वाले छठ पर्व पर अभिनन्दन, नमन और शुभ कामनाएँ --------

पूर्वांचल के लोगों के लिए छठ बड़े से बड़ा त्यौहार है| यह पर्व चार चरणों में मनाया जाता है| इस पर्व पर कुंआरी और विधवा महिलाएं व्रत नहीं रखती (१) प्रथम चरण में व्रती महिलाएं उपवास रखती है,यह उपवास का पहला दिन होता है| (२) द्वितीय चरण में व्रती महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं| यह दूसरा दिन होता है| (३) तृतीय चरण में अस्त होते हुए सूर्य को नदी या तालाब के किनारे अर्घ्य दिया जाता है| यह तीसरा दिन होता है| (४) चतुर्थ चरण में प्रातः उगते हुए सूर्य को अर्घ्य, हवन के साथ दिया जाता है| यह चौथा दिन होता है| यह सभी व्रतों में कठिन व्रत माना जाता है| परिवार के सभी सदस्य व्रती महिला के सामने खड़े होकर अर्घ्य देते हैं| इस व्रत में पुत्र एवं पति के कल्याण की कामना की जाती है.पुत्र प्राप्ति के लिए भी यह व्रत किया जाता है| भगवान भुवन भास्कर आदित्य सब का कल्याण करें| ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर
३१ अक्तूबर २०१९

मानित्व (स्वयं में श्रेष्ठता का भाव), और दम्भित्व (झूठा दिखावटीपन) - ये दोनों पतन के मार्ग हैं ---

 मानित्व (स्वयं में श्रेष्ठता का भाव), और दम्भित्व (झूठा दिखावटीपन) - ये दोनों पतन के मार्ग हैं। "मैं कुछ हूँ" -- का भाव निश्चित रूप से पतन के गर्त में धकेल देगा।

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यह शरीर एक मोटर साइकिल मात्र है जो हमें लोकयात्रा के लिए मिली हुई है। इसकी देखभाल भी आवश्यक है, लेकिन हम यह मोटर साइकिल नहीं हैं।
सारा ब्रह्मांड हमारा शरीर है, और हमारे माध्यम से भगवान स्वयं को व्यक्त कर रहे हैं। अपनी पृष्ठभूमि में निरंतर अपने इष्टदेव को रखिये। वे ही कर्ता हैं, हम तो निमित्त मात्र हैं।
विश्व का घटनाक्रम इस समय अकल्पनीय गति से परिवर्तित हो रहा है। कुछ भी कभी भी हो सकता है। अपने स्वधर्म को न भूलें, उसका पालन करते रहें, व परमात्मा की चेतना में रहें। फिर चाहे पूरा ब्रह्मांड टूट कर बिखर जाये, हमारा कोई अहित नहीं होगा।
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गीता के १३वें अध्याय का आज के दिन एक बार अर्थ को समझते हुए पाठ अवश्य कीजिये। बहुत अधिक लाभ होगा जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
३१ अक्तूबर २०२१

३१ अक्टूबर को पश्चिमी ईसाई देशों में मनाये जाने वाला Halloween का त्यौहार ---

 ३१ अक्टूबर को पश्चिमी ईसाई देशों में मनाये जाने वाला Halloween का त्यौहार यदि भारत में भी अंग्रेजों के कुछ मानस पुत्र मनाते हैं तो यह एक फूहड़ता के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है| यह अंधविश्वास की पराकाष्ठा है| यह भूतों को भगाने का त्यौहार है| कुछ लोग भूतों के से कपड़े पहिनते हैं और कुछ लोग उनसे भी अधिक डरावने कपड़े पहिन कर भूतों को डरा कर भगाते हैं| ऐसी कुरीतियों से मन में गलत संस्कार पड़ते हैं| अब तो इस कुत्सित त्योहार पर होने वाली सेक्स पार्टियों ने घोर यौन-पतन और मनोरोग का रूप ले लिया है।

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गोवा में एक बार अपने कुछ रोमन कैथोलिक मित्रों से बात कर रहा था तो उन्होंने बताया कि वे लोग रात में भोर होने तक घर से बाहर तब तक नहीं निकलते जब तक कि चर्च की घंटियाँ नहीं बजतीं। उनके अनुसार आधी रात के बाद से सडकों पर उन हिन्दुओं के भूत घूमते हैं जिन की पुर्तगालियों ने ह्त्या की थी। वे भूत प्रातः चर्च की घंटी की आवाज़ सुनकर भाग जाते हैं।
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पश्चिमी जगत में और भारतीय अंग्रेजों के मानसपुत्रों में जितना ढोंग और अंधविश्वास है, उसके सामने तो सही भारतीयों में कुछ है ही नहीं।
३१ अक्तूबर २०२१

विश्व में शांति कैसे स्थापित हो? ---

 विश्व में शांति कैसे स्थापित हो? --- (भाग १)

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इस पृथ्वी पर सत् तत्व का अभाव है, और द्वन्द्वात्मक सृष्टि है, इसलिए यहाँ कभी शांति स्थापित नहीं हो सकती। यहाँ हम एक पाठ सीखने के लिये आते हैं। वह पाठ निरंतर पुनरावृत होता रहता है। जितना शीघ्र उस पाठ को सीख लें उतना ही अच्छा है, अन्यथा हम उस पाठ को सीखने के लिए बाध्य कर दिये जाते हैं।
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द्वंद्व से ऊपर अद्वैत में हमें जागृत होना होगा। सर्वप्रथम तो यह समझना होगा कि हम यह नश्वर शरीर नहीं, एक शाश्वत आत्मा हैं। फिर यह समझना होगा कि हम अपने कर्मफलों को भोगने के लिए ही बार बार जन्म लेते हैं। हमारे कर्म क्या हैं? हमारे विचार, हमारी आकांक्षाएँ, हमारा लोभ, और हमारा अहंकार -- ही हमारे कर्म हैं जो हमें पाशों में बांधते हैं। जब तक हम इन पाशों में बंधे हैं, तब तक पशु ही हैं। जब तक हमारा आचरण पाशविक है, तब तक कैसा सुख और कैसी शांति?
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हम कितना भी स्वस्ति-वाचन कर लें, लेकिन शांति एक दुःस्वप्न ही बनी रहती है।
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष शान्ति:
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:
सर्वं शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥
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श्रीमद्भगवद्गीता का सांख्य-योग नामक द्वितीय अध्याय इस विषय पर स्पष्ट प्रकाश डालता है। पहले हमें निज जीवन में शांति स्थापित करनी होगी। वह कैसे करें? इसी समय भगवान श्रीकृष्ण की शरण लें और उन्हें निज जीवन में अवतरित करें। गीता के सांख्य-योग का स्वाध्याय करें। उसे समझ कर पूरी गीता का स्वाध्याय करें। निज जीवन में शांति आएगी तभी समाज में, राष्ट्र में, और विश्व में शांति स्थापित होगी। इस द्वन्द्वात्मक सृष्टि से ऊपर हमें उठना होगा।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३१ अक्तूबर २०२३
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पुनश्च: ----
विश्व में शांति कैसे स्थापित हो? (भाग२)
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इस विषय पर देश-विदेश में अनेक मज़हबी/रिलीजियस विचारकों से मेरी चर्चा हुई है।
(१) लगभग सभी इस्लामिक विचारकों ने कहा कि इस्लाम ही एकमात्र मानव धर्म है। यदि धरती पर रहने वाले सभी इंसान अल्लाह के पैगंबर में ईमान ले आयें तभी विश्व शांति स्थापित हो सकती है। सभी का कहना था कि सबसे पहिले हम अच्छे इंसान बनें। अच्छे इंसान का अर्थ है कि हम उन के अनुयायी बनें, अन्यथा हम अच्छे इंसान नहीं हैं। सिर्फ ईमान वाले अच्छे इंसान ही जन्नत में जाएँगे। बाकी सब को दोज़ख की आग में भुनना पड़ेगा।
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(२) ईसाई मत के विभिन्न संप्रदायों के अनेक पादरियों से विदेशों में मेरी खूब बातचीत हुई है। सभी पादरियों ने ही यह कहा कि हम स्वयं को पापी मानें और परमात्मा के एकमात्र पुत्र में विश्वास करें, तभी पृथ्वी पर सुख-शांति स्थापित हो सकती है, अन्यथा नहीं। एक बार एक पादरी मुझे देखकर बहुत उदास हो गया। मैंने उससे उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने कहा कि तुम इतने अच्छे आदमी हो, लेकिन कयामत के दिन तुम नर्क की शाश्वत अग्नि में तड़फाये जाओगे। उसने कहा कि ईसा मसीह खुद गवाही देंगे कि किस किस व्यक्ति ने उन पर विश्वास किया। जिन के बारे में वे स्वयं गवाही देंगे, सिर्फ उनको ही स्वर्ग में जाने दिया जाएगा। बाकी सब नर्क की अग्नि में तड़फाये जाएँगे।
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(३) भारत के धर्मनिरपेक्ष सेकुलर मार्क्सवादी सभी भारतियों को मूर्ख समझते हैं। वे सिखाते है कि --
सभी धर्म एक समान हैं। सभी में एक ही बात लिखी है। कोई भी मजहब आपस में वैर करना नहीं सिखाता। जो बात गीता में लिखी है, वही कुरान में और बाइबिल में लिखी है। सभी धर्म-ग्रन्थों में एक ही बात है। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता।
अंततः वे एक ही बात पर आ जाते हैं कि सारे धर्म एक अफीम का नशा है। अतः सब धर्मों को छोड़कर धर्मनिरपेक्ष सेकुलर बन जाओ। मार्क्सवाद में तो ईश्वर में आस्था रखना एक ऐसा भयंकर अपराध है जिसकी सजा मृत्यु दंड है।
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मुझे लगता है कयामत के दिन बहुत अधिक शोरगुल होगा, और खुद का नंबर आते आते ही पता नहीं कितने वर्ष लग जाएँगे। लाखों वर्षों से कब्र में पड़े हुए इंसान उठेंगे और लाइन में लग जाएँगे। लेकिन फिर भी कुछ लोग ऐसे है जो अपनी कब्रों में आराम से सो रहे होंगे। उर्दू के प्रसिद्ध शायर मीर ने लिखा है --
"हम सोते ही न रह जावें ऐ शोर-ए-क़यामत
इस राह से निकलो तो हम को भी जगा जाना"
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आजकल महँगी से महँगी शराब पीते हुए हुए वातानुकूलित कमरों में ईश्वर पर चर्चा करना फैशन है। हो गया है। लेकिन मैं इस फैशन से दूर हूँ। यही नहीं, आजकल लोग सब तरह के पाप जैसे जूआ, परस्त्री/पुरुष गमन, घूसख़ोरी व चोरी करते हुए भी भगवान से सहायता मांगते हैं।
वर्तमान समाज में मैं स्वयं को अपात्र (Misfit) पाता हूँ। आप सब ने यह लेख पढ़ा, जिस के लिए आपको धन्यवाद ॥ ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
१ नवंबर २०२३

अपना एक हाथ भगवान को थमा दो; भगवान हमारे दोनों हाथों को पकड़ कर हमारा उद्धार कर देंगे ---

 अपना एक हाथ भगवान को थमा दो; भगवान हमारे दोनों हाथों को पकड़ कर हमारा उद्धार कर देंगे| हमारे जीवन में हमारी चाहे लाखों भूलें हों, यदि हम सत्यनिष्ठा से सुधरना चाहें तो भगवान हमारी हिमालय जितनी बड़ी-बड़ी लाखों भूलों को भी क्षमा कर देते हैं| अपना बुरा-भला सब कुछ भगवान को सौंप दो और उन्हीं के होकर रह जाओ|

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"उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्| आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः||६:५||"
मनुष्य को अपने द्वारा अपना उद्धार करना चाहिये और अपना अध: पतन नहीं करना चाहिये; क्योंकि आत्मा ही आत्मा का मित्र है और आत्मा (मनुष्य स्वयं) ही आत्मा का (अपना) शत्रु है||
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"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज| अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः||१८:६६||"
सब धर्मों का परित्याग करके तुम एक मेरी ही शरण में आओ, मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा, तुम शोक मत करो| .
हे जगन्माता, रक्षा करो| बालक विष्ठा में पड़ा होता है तब माँ ही उसे उज्ज्वल कर सकती है| अपने आप तो वह कभी स्वच्छ हो नहीं सकता| यह सांसारिकता भी किसी विष्ठा से कम नहीं है| हम ने तो कहा नहीं था कि आप हमें इस माया-मोह में डालो| आप ने ही "बलादाकृष्य मोहाय, महामाया प्रयच्छति" यानि बलात् आकर्षित कर के इस माया-मोह रूपी घोर नर्ककुंड में डाला| अब आप को ही हमें मुक्त करना होगा| हमारा सामर्थ्य आप ही हो| हमारे में स्वयं में कोई सामर्थ्य नहीं है| बड़ी बड़ी बातें, बड़ा बड़ा ज्ञान अब हमें अच्छा नहीं लगता| हमें सिर्फ आपका प्रेम चाहिए, और कुछ भी नहीं| आपका प्रेम ही हमारा मोक्ष है, वही हमारी मुक्ति है| आपके पूर्णप्रेम के अतिरिक्त हमें और कुछ ही नहीं चाहिए| हम आपकी शरणागत हूँ| हमारा कल्याण करो, हमारी निरंतर रक्षा करो| कृपा शंकर ३० अक्तूबर २०१९

दुर्भाग्य से वर्तमान में हिन्दू जाति का कोई भी राजनेता -- धर्मनिष्ठ और तेजस्वी नहीं है ---

दुर्भाग्य से वर्तमान में हिन्दू जाति का कोई भी राजनेता -- धर्मनिष्ठ और तेजस्वी नहीं है। धर्मनिष्ठ और तेजस्वी व्यक्ति तो बहुत हैं, लेकिन कोई राजनेता नहीं है। क्या ऐसा कोई तेजस्वी हिन्दू-धर्मनिष्ठ राजनेता है जिसे ---

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(१) हिन्दू समाज से प्रेम हो? (२) जो हिन्दू समाज की रक्षा और वृद्धि के लिए सक्रिय कार्य कर रहा हो? (३) हिन्दू समाज पर प्राणों का संकट आ जाने पर अधिकतम बुद्धि और विवेक लगाकर रक्षा का प्रयास करे।
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बांग्लादेश और पाकिस्तान में मारे जा रहे हिंदुओं के लिए शासन में आने पर भी भारत के हिन्दू राजनेता आज तक यह नहीं कह पाये कि विश्व में कहीं भी हिंदुओं पर संकट होगा तो भारत सरकार चुप नहीं बैठेगी, और हम उसके लिए सक्रिय हस्तक्षेप करेंगे। वे धर्मनिष्ठ कैसे हो सकते हैं? भारत में हिंदुओं के विरुद्ध अनेक संवैधानिक प्रावधान हैं जिन्हें समाप्त नहीं किया गया है। उनके विरुद्ध कोई भी राजनेता नहीं बोल रहा है।
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हे माँ भारती, हिन्दू जाति में तेजस्वी वीर पुरुषों को जन्म दे, जो हिंदुओं का नेतृत्व और रक्षा कर सकें।
सत्य-सनातन-धर्म की जय !
काशी विश्वनाथ की जय !
मोर-मुकुट बंसीवाले की जय !
हर हर महादेव !
३० अक्तूबर २०२१

जहाँ पर हम हैं, वहीं पर भगवान भी हर समय हमारे साथ एक हैं ---

 जहाँ पर हम हैं, वहीं पर भगवान भी हर समय हमारे साथ एक हैं। वे हमारे बिना नहीं रह सकते। जिस आसन में स्थिर होकर हम सुख से बैठ सकते हैं - वही योगासन है। जिस आसन पर हम बैठे हैं, वहाँ से अनंत ब्रह्मांड में जहाँ तक हमारी कल्पना जाती है, वह सम्पूर्ण ब्रह्मांड हम स्वयं हैं, यह नश्वर देह नहीं।

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इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड में ओंकार रूपी एक नाद निःसृत हो रहा है। उस अनाहत-नाद का निरंतर श्रवण सर्वश्रेष्ठ जप है। अनाहत नाद का निरंतर श्रवण - प्राण तत्व की चंचलता को स्थिर करता है, जिसके बिना मन स्थिर नहीं हो सकता।
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कोई कामना, मांग, या अपेक्षा न रहे। आत्मा की अभीप्सा - परमप्रेम में रूपांतरित हो जाये। इस प्रेम में कोई भी अन्य नहीं है। वह असीम परमप्रेम और अनंत आनंद ही परमात्मा है, जो हम स्वयं हैं।
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इस संसार चक्र में बार बार हम आने को बाध्य हैं क्योंकि हम देह की चेतना से जुड़े हुए हैं। श्रुति भगवती कहती है - "अयमात्मा ब्रह़म्", अर्थात जो आत्मा है, वही ब्रह्म है, वही ईश्वर है, वही हम हैं। हम यह देह नहीं, शाश्वत आत्मा हैं। इसी आत्मा का निरंतर चिंतन करो। स्वयं की पृथकता के बोध को उसमें समर्पित कर दो। यही कल्याण का मोक्ष-मार्ग है।
ॐ तत्सत् !!
३० अक्तूबर २०२१

हमारे शरीर का भ्रूमध्य -- पूर्व दिशा है, सहस्त्रार -- उत्तर दिशा है, बिंदु विसर्ग (शिखास्थल) -- पश्चिम दिशा है, और उससे नीचे का क्षेत्र दक्षिण दिशा है।

 हमारे शरीर का भ्रूमध्य -- पूर्व दिशा है, सहस्त्रार -- उत्तर दिशा है, बिंदु विसर्ग (शिखास्थल) -- पश्चिम दिशा है, और उससे नीचे का क्षेत्र दक्षिण दिशा है।

सूक्ष्म देह में सहस्त्रार से परे का क्षेत्र -- परा है। (कुछ रहस्य की भी बातें हैं, जिनकी चर्चा सार्वजनिक रूप से नहीं की जा सकती)
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कहीं कोई पृथकता नहीं है। भगवान के परमप्रेममय रूप पर हम सदा ध्यान करें। जब हम कहते हैं कि पूर्व दिशा में मुँह कर के ध्यान करो, इसका अर्थ है अंतर्दृष्टि भ्रूमध्य में रख कर ध्यान करो। जब हम कहे हैं कि उत्तर दिशा में मुँह कर के ध्यान करो, इसका अर्थ है सहस्त्रार पर अंतर्दृष्टि रख कर ध्यान करो। दक्षिण दिशा में ध्यान मत करो का अर्थ है -- आज्ञा चक्र से नीचे दृष्टी मत रखो ध्यान के समय।
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परमशिव का ध्यान -- सूक्ष्म देह द्वारा देहातीत अवस्था में अनुभूत हो रही अनंतता में और उस से भी परे होता है। ये अनुभूतियाँ बड़ी दुर्लभ हैं, जो अनेक जन्मों के पुण्यों से प्राप्त होती हैं।
ॐ तत्सत् !!
३० अक्तूबर २०२१

सनातन-धर्म अमर है, यह कभी नष्ट नहीं हो सकता ---

 सनातन-धर्म अमर है, यह कभी नष्ट नहीं हो सकता, क्योंकि यह उन सत्य सनातन सिद्धांतों पर आधारित है, जिनसे यह सृष्टि चल रही है ---

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कभी कभी मैं नकारात्मक और निराश हो जाता हूँ, पर परमात्मा की कृपा मुझे सदा बचा लेती है। कुछ दिनों पूर्व मैंने लिखा था कि मनुष्य जाति की चेतना इस समय उत्तरोत्तर सकारात्मक ऊर्ध्व दिशा में विस्तृत हो रही है। जिस दिन पुनर्जन्म और कर्मफलों का सिद्धान्त आधुनिक विज्ञान-सम्मत हो जाएगा, उसी दिन से तमोगुणी कलियुगी मत-मतांतर ध्वस्त होने आरंभ हो जाएँगे, और सनातन-धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण आरंभ हो जाएगा।
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सनातन-धर्म कभी नष्ट नहीं हो सकता, क्योंकि यह इस सनातन सत्य पर आधारित है कि प्रत्येक जीवात्मा शाश्वत है, और अपने कर्मफलों को भोगने के लिए बारंबार नूतन जन्म लेती है। प्रत्येक आत्मा की अभीप्सा परमात्मा को पाने की होती है। परमात्मा को पाने का यानि भगवत्-प्राप्ति का मार्ग सिर्फ सनातन-धर्म ही बताता है। वास्तव में भगवत्-प्राप्ति ही सनातन धर्म है। परमात्मा से अहैतुकी परम-प्रेम यानि भक्ति और समर्पण की शिक्षा सिर्फ सनातन धर्म ही देता है। सनातन धर्म ही पूरी सृष्टि को अपना परिवार मानता है।
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यह सृष्टि भगवान की है, जिसे उनकी प्रकृति अपने नियमानुसार चला रही है। भगवान का दिया हुआ वचन है कि वे धर्म का अभ्युत्थान और अधर्म का नाश करेंगे। उनकी दी हुई शक्ति को जागृत कर हम स्वधर्म का सत्यनिष्ठा से पालन करते रहें, और निमित्त मात्र बनकर, अधर्म का प्रतिकार करते हुए अपनी रक्षा करने में समर्थवान बनें।
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ॐ तत्सत् !!
३० अक्तूबर २०२१

Monday, 27 October 2025

सुषुम्ना के छः चक्रों में भागवत मन्त्र का जाप ....

 सुषुम्ना के छः चक्रों में भागवत मन्त्र का जाप .....


इस विषय पर मैं पूर्व में अनेक प्रस्तुतियाँ दे चुका हूँ | कुछ मित्रों ने जिज्ञासा व्यक्त की है अतः मैं उनकी जिज्ञासा को शांत करने मात्र के लिए नए सिरे से संक्षिप्त में पुनश्चः यह लघु लेख लिख रहा हूँ|
द्वादसाक्षरी भागवत मंत्र का जाप अति लाभप्रद और निरापद है| जितना अधिक जाप भक्ति से किया जाए उतना ही कम है|
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योग मार्ग की कुछ अति उन्नत साधनाओं में सूक्ष्म देह की सुषुम्ना नाड़ी के षट्चक्रों में इसके जाप का विधान है, जिसको सदा गोपनीय रखा गया है| ये साधनाएँ गुरु के मार्गदर्शन में ही करनी चाहियें क्योंकि इन साधनाओं से कुछ सूक्ष्म शक्तियों का जागरण होता है| जब सूक्ष्म शक्तियाँ जागृत होती हैं, उस समय साधक के आचार-विचार यदि सही न हों तो वे लाभ के बजाय बहुत अधिक हानि पहुँचाती हैं|
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सामान्यतः योग साधक मूलाधार से सहस्त्रार तक मानसिक रूप से क्रमशः --- लं, वं, रं, यं, हं, ॐ,ॐ, इन बीज मन्त्रों के साथ आरोहण करते हैं और विपरीत क्रम से अवरोहण करते हैं|
पर उन्नत योगी मेरुदंड व मस्तिष्क के चक्रों में भागवत मन्त्र का मानसिक जाप करते हैं| इसके जप का क्रम इस प्रकार है .... पूर्ण प्रेम सहित .... भगवान वासुदेव का ध्यान करते हुए .... स्वाभाविक रूप से साँस लेते हुए सुषुम्ना नाडी में .... दृष्टी को भ्रूमध्य पर रखते हुए ....
ॐ ---- मूलाधार
न ----- स्वाधिष्ठान
मो ---- मणिपुर
भ ----- अनाहत
ग ----- विशुद्धि
व ----- सहस्त्रार (आज्ञा चक्र पर रुके बिना)
ते ----- आज्ञा
वा ----- विशुद्धि
सु ----- अनाहत
दे ----- मणिपुर
वा ----- स्वाधिष्ठान
य ----- मूलाधार ||
इस विधि से कम से कम १२ बार जप कर के आज्ञाचक्र पर ॐ का ध्यान करें|
पूरे मन्त्र का भी आज्ञाचक्र पर यथासंभव खूब जप करें| विशेष ध्यान की बात यह है कि अवरोहण के क्रम में आज्ञा, अनाहत और मूलाधार पर पूर्ण शक्ति से मानसिक रूप से प्रहार करते हैं, इससे तीनों ग्रंथियों का भेदन होता है| इसी की प्रतीक त्रिभंग मुद्रा है|
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दीक्षा देते समय सिद्ध गुरु की शक्ति सुषुम्ना का द्वार खोल देती है जिससे सुषुम्ना चैतन्य हो जाती है और प्राण प्रवाह सुषुम्ना में आरम्भ हो जाता है|
किन्हीं शक्तिपात संपन्न गुरु से दीक्षा लेकर यह साधना करनी चाहिए| उनकी कृपा प्राप्ति से आगे का मार्ग प्रशस्त हो जाता है|
इस विधि से साधना करने पर सामान्य से बारह गुणा अधिक फल मिलता है|
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इस विषय पर मेरी यह अंतिम प्रस्तुति है| इस विषय पर न तो और लिखूँगा, और न ही किसी के प्रश्न का कोई उत्तर दूँगा| सप्रेम सादर धन्यवाद!
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय| ॐ तत्सत्| २८ अक्टूबर २०१६

यह लेख प्रत्येक गौभक्त को अवश्य पढना चाहिए ---

 महेषभाई गजेरा

1966 का वह गो_हत्या बंदी आंदोलन, जिसमें हजारों साधुओं को इंदिरा सरकार ने गोलियों से भुनवा दिया था! आंखों देखा वर्णन!
देश के त्याग, बलिदान और राष्ट्रीय ध्वज में मौजूद 'भगवा' रंग से पता नहीं कांग्रेस को क्या एलर्जी है कि वह आजाद भारत में संतों के हर आंदोलन को कुचलती रही है। आजाद भारत में कांग्रेस पार्टी की सरकार भगवा वस्त्रधारी संतों पर गोलियां तक चलवा चुकी है! गो-रक्षा के लिए कानून बनाने की मांग लेकर जुटे हजारों साधु-संत इस गांलीकांड में मारे गए थे। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में हुए उस खूनी इतिहास को कांग्रेस ने ठीक उसी तरह दबा दिया, जिस कारण आज की युवा पीढ़ी उस दिन के खूनी कृत्य से आज भी अनजान है!
गोरक्षा महाभियान समिति के तत्कालीन मंत्रियों में से एक मंत्री और पूरी घटना के गवाह, प्रसिद्ध इतिहासकार एवं लेखक आचार्य सोहनलाल रामरंग के अनुसार, ''7 नवंबर 1966 की सुबह आठ बजे से ही संसद के बाहर लोग जुटने शुरू हो गए थे। उस दिन कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि थी, जिसे हम-आप गोपाष्ठमी नाम से जानते हैं। गोरक्षा महाभियान समिति के संचालक व सनातनी करपात्री जी महाराज ने चांदनी चैक स्थित आर्य समाज मंदिर से अपना सत्याग्रह आरंभ किया। करपात्री जी महाराज के नेतृत्व में जगन्नाथपुरी, ज्योतिष पीठ व द्वारका पीठ के शंकराचार्य, वल्लभ संप्रदाय के सातों पीठ के पीठाधिपति, रामानुज संप्रदाय, मध्व संप्रदाय, रामानंदाचार्य, आर्य समाज, नाथ संप्रदाय, जैन, बौद्ध व सिख समाज के प्रतिनिधि, सिखों के निहंग व हजारों की संख्या में मौजूद नागा साधुओं को पंडित लक्ष्मीनारायण जी ने चंदन तिलक लगाकर विदा कर रहे थे। लालकिला मैदान से आरंभ होकर नई सड़क व चावड़ी बाजार से होते हुए पटेल चैक के पास से संसद भवन पहुंचने के लिए इस विशाल जुलूस ने पैदल चलना आरंभ किया। रास्ते में अपने घरों से लोग फूलों की वर्षा कर रहे थे। हर गली फूलों का बिछौना बन गया था।''
आचार्य सोहनलाल रामरंग के अनुसार, '' यह हिंदू समाज के लिए सबसे बड़ा ऐतिहासिक दिन था। इतने विवाद और अहं की लड़ाई होते हुए भी सभी शंकराचार्य और पीठाधिपतियों ने अपने छत्र, सिंहासन आदि का त्याग किया और पैदल चलते हुए संसद भवन के पास मंच पर समान कतार में बैठे। उसके बाद से आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ। नई दिल्ली का पूरा इलाका लोगों की भीड़ से भरा था। संसद गेट से लेकर चांदनी चैक तक सिर ही सिर दिखाई दे रहा था। कम से कम 10 लाख लोगों की भीड़ जुटी थी, जिसमें 10 से 20 हजार तो केवल महिलाएं ही शामिल थीं। जम्मू-कश्मीर से लेकर केरल तक के लोग गो हत्या बंद कराने के लिए कानून बनाने की मांग लेकर संसद के समक्ष जुटे थे। उस वक्त इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी और गुलजारी लाल नंदा गृहमंत्री। गो हत्या रोकने के लिए इंदिरा सरकार केवल आश्वासन ही दे रही थी, ठोस कदम कुछ भी नहीं उठा रही थी। सरकार के झूठे वादे से उकता कर संत समाज ने संसद के बाहर प्रदर्शन करने का निर्णय लिया था।''
रामरंग जी के अनुसार, ''दोपहर एक बजे जुलूस संसद भवन पर पहुंच गया और संत समाज के संबोधन का सिलसिला शुरू हुआ। करीब तीन बजे का समय होगा, जब आर्य समाज के स्वामी रामेश्वरानंद भाषण देने के लिए खड़े हुए। स्वामी रामेश्वरानंद ने कहा, 'यह सरकार बहरी है। यह गो हत्या को रोकने के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाएगी। इसे झकझोरना होगा। मैं यहां उपस्थित सभी लोगों से आह्वान करता हूं कि सभी संसद के अंदर घुस जाओ और सारे सांसदों को खींच-खींच कर बाहर ले आओ, तभी गो हत्या बंदी कानून बन सकेगा।' ''
''इतना सुनना था कि नौजवान संसद भवन की दीवार फांद-फांद कर अंदर घुसने लगे। लोगों ने संसद भवन को घेर लिया और दरवाजा तोड़ने के लिए आगे बढ़े। पुलिसकर्मी पहले से ही लाठी-बंदूक के साथ तैनात थे। पुलिस ने लाठी और अश्रुगैस चलाना शुरू कर दिया। भीड़ और आक्रामक हो गई। इतने में अंदर से गोली चलाने का आदेश हुआ और पुलिस ने भीड़ पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। संसद के सामने की पूरी सड़क खून से लाल हो गई। लोग मर रहे थे, एक-दूसरे के शरीर पर गिर रहे थे और पुलिस की गोलीबारी जारी थी। नहीं भी तो कम से कम, पांच हजार लोग उस गोलीबारी में मारे गए थे।''
''बड़ी त्रासदी हो गई थी और सरकार के लिए इसे दबाना जरूरी था। ट्रक बुलाकर मृत, घायल, जिंदा-सभी को उसमें ठूंसा जाने लगा। जिन घायलों के बचने की संभावना थी, उनकी भी ट्रक में लाशों के नीचे दबकर मौत हो गई। हमें आखिरी समय तक पता ही नहीं चला कि सरकार ने उन लाशों को कहां ले जाकर फूंक डाला या जमीन में दबा डाला। पूरे शहर में कफ्र्यू लागू कर दिया गया और संतों को तिहाड़ जेल में ठूंस दिया गया। केवल शंकराचार्य को छोड़ कर अन्य सभी संतों को तिहाड़ जेल में डाल दिया गया। करपात्री जी महाराज ने जेल से ही सत्याग्रह शुरू कर दिया। जेल उनके ओजस्वी भाषणों से गूंजने लगा। उस समय जेल में करीब 50 हजार लोगों को ठूंसा गया था।''
रामरंग जी के अनुसार, ''शहर की टेलिफोन लाइन काट दी गई। 8 नवंबर की रात मुझे भी घर से उठा कर तिहाड़ जेल पहुंचा दिया गया। नागा साधु छत के नीचे नहीं रहते, इसलिए उन्होंने तिहाड़ जेल के अदंर रहने की जगह आंगन में ही रहने की जिद की, लेकिन ठंड बहुत थी। नागा साधुओं ने जेल का गेट, फर्निचर आदि को तोड़ कर जलाना शुरू किया। उधर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गुलजारीलाल नंदा पर इस पूरे गोलीकांड की जिम्मेवारी डालते हुए उनका इस्तीफा ले लिया। जबकि सच यह था कि गुलजारीलाल नंदा गो हत्या कानून के पक्ष में थे और वह किसी भी सूरत में संतों पर गोली चलाने के पक्षधर नहीं थे, लेकिन इंदिरा गांधी को तो बलि का बकरा चाहिए था! गुलजारीलाल नंदा को इसकी सजा मिली और उसके बाद कभी भी इंदिरा ने उन्हें अपने किसी मंत्रीमंडल में मंत्री नहीं बनाया। तत्काल महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री व चीन से हार के बाद देश के रक्षा मंत्री बने यशवंत राव बलवतंराव चैहान को गृहमंत्री बना।