Monday, 31 March 2025

अपनी मौत के कुछ दिनों बाद हर इंसान को वापस आ कर यह बताने का अवसर मिले कि मरने के बाद उसका कैसा अनुभव रहा?

 अपनी मौत के कुछ दिनों बाद हर इंसान को वापस आ कर यह बताने का अवसर मिले कि मरने के बाद उसका कैसा अनुभव रहा?

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जीवन में मेरी अनेक पादरियों से बातचीत हुई है। लगभग सभी ने एक बात कही है कि यदि तुम जीसस क्राइस्ट पर विश्वास नहीं करोगे तो अनंत काल तक नर्क की अग्नि में जलाये जाओगे। ऐसे ही मुसलमान मित्रों ने फरमाया है कि जो हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ईमान नहीं लायेंगे, वे सब दोज़ख की आग में तड़फाए जाएंगे।
पता नहीं वास्तविकता क्या है?
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यदि ऊपर वाला सर्व शक्तिशाली है तो उसने जन्म से ही दिमाग में अपना संदेश डालकर क्यों नहीं भेजा? उसने काफिरों को जन्म ही क्यों दिया? जन्नत या दोज़ख किसने देखी है? आज तक कोई वहाँ से बापस नहीं आया है। पता नहीं वहाँ ७२ हूरें मिलेंगी या यमदूतों के डंडे।
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डरा-धमका कर या प्रलोभन देकर ही सारी बातें क्यों मनवाई जाती हैं? कुछ ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि अपनी मौत के कुछ दिनों बाद हर इंसान को वापस आ कर यह बताने का अवसर मिले कि मरने के बाद उसका कैसा अनुभव रहा?
१ अप्रेल २०२३

सिर्फ राजयोग ही पर्याप्त नहीं है, साधना में सफलता के लिए हठयोग और तंत्र का ज्ञान भी आवश्यक है।

 भगवान के और हमारे मध्य एक परम प्रेममयी सत्ता अवश्य है, जिसे हम जगन्माता या भगवती कहते हैं। इस विषय पर मैंने अपनी अति सीमित व अति अल्प बौद्धिक क्षमतानुसार बहुत अधिक चिंतन-मनन किया है।

सिद्धान्त रूप से इस विषय पर मेरे कुछ संशय थे। मेरे एक परम विद्वान तपस्वी सन्यासी मित्र ने मुझे अपने सिद्ध गुरु महाराज से परिचय करवा कर उनसे अनेक सत्संग करवाये, और यह सुनिश्चित किया कि मेरे सारे संशय दूर हों।
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अब कोई संशय नहीं है, लेकिन अनेक जन्मों से जमा हुआ मैल, इतनी आसानी से नहीं छूटता। अपने पूर्व जन्मों के व इस जन्म में जमा हुए मैल से छुटकारा पाना इतना आसान नहीं है। फिर भी एक ईश्वरीय शक्ति सहायता कर रही है, जिन्हें हम जगन्माता कहते हैं। वे भगवती अपने किसी भी सौम्य या उग्र रूप में स्वयं को व्यक्त कर सकती हैं। मेरे लिए उनके सारे रूप सौम्य ही हैं, उनके किसी भी रूप में कोई उग्रता नहीं है।
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सिर्फ राजयोग ही पर्याप्त नहीं है, साधना में सफलता के लिए हठयोग और तंत्र का ज्ञान भी आवश्यक है। भूख और नींद पर विजय पाना भी एक चुनौती है। पर्याप्त शारीरिक व मानसिक क्षमता, संकल्प शक्ति, लगन, और पराभक्ति का होना भी आवश्यक है। बिना भक्ति के तो एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते।
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भगवान की अनन्य पराभक्ति हमारा स्वभाव हो, और सभी के हृदयों में जागृत हो।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
१ अप्रेल २०२४

Sunday, 30 March 2025

आत्म-साक्षात्कार (Self-Realization) ---

आत्म-साक्षात्कार (Self-Realization) ---
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भगवत्-प्राप्ति, भगवान का साक्षात्कार, आत्म-साक्षात्कार, व ईश्वर की प्राप्ति किसे कहते हैं? क्या भगवान आकाश से उतर कर आने वाले कोई हैं? क्या वे हमारे से पृथक हैं? किसी ने ईश्वर की प्रत्यक्ष अनुभूति की हो, वे ही उत्तर दें।
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मेरी अनुभूति तो यही है कि भगवान हम से पृथक नहीं हैं। हमें स्वयं को ही ईश्वर बनना पड़ता है। भगवान हामारे ही माध्यम से स्वयं को व्यक्त करते हैं। यही आत्म-साक्षात्कार है। यह एक ऐसी अनुभूति है जिसमें हम सब तरह की सीमितताओं से मुक्त होकर, असीम आनंद और असीम प्रेम (भक्ति) से भर जाते हैं। यह असीम प्रेम (भक्ति) और असीम आनंद ही आत्म-साक्षात्कार है, यही भगवत्-प्राप्ति है। यही हमारे जीवन का उद्देश्य है।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३१ मार्च २०२४

भारत कभी पराधीन नहीं था ---

 भारत कभी पराधीन नहीं था। भारत क्यों पराजित हुआ? इस विषय पर मैनें खूब चिंतन किया है और जिन निष्कर्षों पर पहुँचा हूँ, उनका अति संक्षेप में यहाँ वर्णन कर रहा हूँ|

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वह समय ही खराब था| समाज में कई सद्गुण विकृतियाँ आ गयी थीं| समाज व राष्ट्र की अवधारणा व चेतना ही प्रायः लुप्त हो गयी थी| यह मान लिया गया कि राष्ट्ररक्षा का कार्य सिर्फ क्षत्रियों का ही है| जो भी विजेता होता उसी की आधीनता आँख मीच कर स्वीकार कर ली जाती| क्षत्रिय राजा भी निजी स्वार्थों के कारण संगठित न होकर बिखरे बिखरे ही रहे और कुछ ने तो आतताइयों का साथ भी दिया| क्षत्रिय राजाओं में भी समाज-हित और राष्ट्र-हित की चेतना धीरे धीरे लुप्त हो गयी| जिनमें यह चेतना थी वे असहाय हो गए| यदि सारा समाज और राष्ट्र एकजुट होकर आतताइयों का प्रतिकार करता तो भारत कभी भी पराजित नहीं होता, और भारत की ओर आँख उठाकर देखने का भी किसी में साहस नहीं होता|
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अब बीता हुआ समय तो बापस आ नहीं सकता, जो हो गया सो हो गया| अब इसी क्षण से हम इस दिशा में अपना सर्वश्रेष्ठ क्या कर सकते हैं, इस पर ही विचार करना चाहिए| हमारा राष्ट्र एक है| राष्ट्र की एकता कैसे बनी रहे, व राष्ट्र कैसे शक्तिशाली और सुरक्षित रहे, सिर्फ इस पर ही विचार करना चाहिए|
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जय जननी, जय भारत ! वन्दे मातरं ! भारत माता की जय !
३० मार्च २०१९
पुनश्चः :--- उपरोक्त विषय पर मैंने इतिहास और तत्कालीन परिस्थितियों का खूब अध्ययन भी किया है, विश्व के अनेक देशों का भ्रमण भी किया है, और खूब स्वतंत्र चिंतन भी किया है| जो भी लिखा है वह मेरे अपने निजी अनुभवजन्य विचार हैं|

Saturday, 29 March 2025

बेरोजगारी दूर करने का पुराना चीनी तरीका जो वहाँ वर्षों पूर्व माओ के समय में कुछ काल के लिए था ---

सारे बेरोजगार सुबह आठ बजे लाइन में खड़े कर दिए जाते थे| हाथ में झाडू थमा कर सडकों की सफाई पर या कहीं अन्यत्र मजदूरी पर भेज दिया जाता था| किसी भी बेरोजगार को मिले हुए अपने काम को मना करने का अधिकार नहीं था| दो बार भोजन मिल जाता और सिगरेट पीने के लिए कुछ पैसा| कोई वेतन नहीं| जिसकी पदोन्नती हो जाती उसको कुछ अधिक पैसा शराब पीने को मिल जाता| जितनी पदोन्नती उतना ही अच्छा भोजन और एक जोड़ी अतिरिक्त ड्रेस| वेतन नहीं मिलता था| रहने और खाने की व्यवस्था हो जाती थी|

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पुनश्चः :---- सन १९८५ तक चीन भारत से नहुत अधिक पिछड़ा हुआ था| सन १९६२ के युद्ध में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जान-बूझ कर अपने ही देश भारत को हरवा दिया था। जब महा कामुक लंपट लालची व्यक्ति किसी देश का शासक होता है तब उस देश का यही हाल होता है। चीनी लोग तो बहुत अधिक डरपोक होते हैं|

नवरात्रों में हवन ---

इन नवरात्रों में देश-विदेश में अनेक लोग हवन करने लगे हैं| हवन में जिन कंडों (उपलों/छाणो) का उपयोग किया जाये वे देशी गाय के गोबर के हों| घी भी देशी गाय के दूध से निर्मित हो| भैंस के दूध से बने घी का प्रयोग हवन में न करें| यदि संसाधनों की कमी हो तो कम से कम ११ आहुती ही दे दें| पर दें अवश्य| १०८ आहुतियाँ दे सकें तो सर्वश्रेष्ठ है|

"ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ...स्वाहा !!" -----
इस श्लोक से १०८ बार अग्नि में हवन ( होम) करें|
नवार्ण मंत्र का जप विधि-विधान से, या सुंदर कांड व हनुमान चालीसा का पाठ, या रामरक्षा स्तोत्र का पाठ, या इन सभी का, घर के सभी सदस्य दिन में कम से कम एक बार साथ-साथ मिल बैठ करें तो भगवान की कृपा तो होगी ही घर में भी सुख-शांति बनी रहेगी|
जो क्रिया योग की साधना करते हैं, वह भी अपने आप में एक यज्ञ है| पूरी निष्ठा से साधना करें|
३० मार्च २०२०

"राजस्थान स्थापना दिवस" की शुभ कामनाएँ .....

 "राजस्थान स्थापना दिवस" की शुभ कामनाएँ .....

आज राजस्थान स्थापना दिवस है| ३० मार्च १९४९ को कई रियासतों को मिलाकर राजस्थान राज्य बनाया गया था| राजस्थान का अधिकांश भाग तो मारवाड़ है, फिर मेवाड़, हाड़ौती, ढुंढाड़, शेखावाटी, भरतपुर व अलवर का क्षेत्र है| पाकिस्तान में चला गया सिंध का अमरकोट भी मारवाड़ का एक महत्वपूर्ण भाग था जो दुर्भाग्य से इस समय पाकिस्तान में है| राज्य का प्रतीक पशु ऊँट और चिंकारा, पक्षी गोडावण, फूल रोहिड़ा, और वृक्ष खेजड़ी है|
आज़ादी के बाद जितने भी युद्ध हुए हैं उनमें सबसे अधिक वीर गति को प्राप्त सैनिक राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र के थे| भारत की सेना में सबसे अधिक सैनिक भी शेखावाटी के हैं, और भारत के सबसे अधिक उद्योगपति भी शेखावाटी के हैं| दुर्भाग्य से यह राजस्थान का सबसे अधिक पिछड़ा हुआ क्षेत्र है, जब कि राजस्थान में महिला-साक्षरता यहाँ शत-प्रतिशत है, और सबसे अधिक पढे-लिखे लोग भी यहाँ के हैं| कोई प्रभावशाली राजनेता यहाँ नहीं हुआ है, इसलिए यह पिछड़ा हुआ क्षेत्र है|
हमारी चेतना किसी प्रदेश विशेष में न होकर पूरे भारत में और समष्टि में हो| समष्टि का कल्याण ही हमारा कल्याण है| 30 march 2020

यह हमारी नहीं, भगवान की समस्या है कि वे कब हमें दर्शन दें ---

 यह हमारी नहीं, भगवान की समस्या है कि वे कब हमें दर्शन दें ---

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जैसे जैसे जब से भगवान के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना बढ़ी है, तब से उन को पाने की अब कोई जल्दी नहीं रही है| जैसे कल प्रातः का सूर्योदय सुनिश्चित है, वैसे ही उन का मिलना भी अब सुनिश्चित ही है| एक तो उन्होने मेरे हृदय में आकर अब अपना डेरा जमा लिया है, यहीं बैठे हैं, और कहीं दूर भी नहीं हैं| दूसरा वे मुझे अपना एक उपकरण यानि निमित्त-मात्र बनाकर सारा कार्य स्वयं कर रहे हैं, अतः उनको पाना अब मेरी समस्या नहीं रही है| यह उनकी ही समस्या है कि वे कब प्रत्यक्ष हों| वियोग का भी एक आनंद है जो योग में नहीं है| वियोग और योग -- दोनों का आनंद उन्हीं का है| ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
३० मार्च २०२१

धर्मं-निरपेक्ष और धर्महीन व्यक्ति जीवन में कभी सुखी नहीं हो सकता ---

धर्मं-निरपेक्ष और धर्महीन व्यक्ति जीवन में कभी सुखी नहीं हो सकता। जीवन में सुख-शांति-सुरक्षा व संपन्नता का एकमात्र स्त्रोत परमात्मा है। मार्क्सवादी देशों का मुझे प्रत्यक्ष अनुभव है, वहाँ कोई सुख-शांति नहीं है। यही हाल इस्लामी व ईसाई देशों का है। भारत में लोग सुखी थे, क्योंकि वे संतुष्ट थे। अन्न की कोई कमी नहीं थी। उनके जीवन में आध्यात्म था। देश की सत्ता में शासक वर्ग ऐसा हो जिसे इस राष्ट्र की संस्कृति और अस्मिता से प्रेम हो। . हृदय के द्वार खुले हैं, और खुले ही रहेंगे। भगवान हर समय मेरे साथ एक हैं। वे एक क्षण के लिए भी मेरी दृष्टि से अब ओझल नहीं हो सकते। सारा वर्तमान उनको समर्पित है। भूत और भविष्य का विचार अब कभी जन्म नहीं ले सकता। कोई अंधकार नहीं, प्रकाश ही प्रकाश है। उनके सिवाय कोई भी अन्य नहीं है। केवल वे ही वे हैं। वे ही यह मैं बन गए हैं। .

भक्ति से क्या मिलता है ?
कुछ भी नहीं| जिसे कुछ चाहिए वह इस मार्ग में नहीं आये| उससे जो कुछ उसके पास है वह भी छीन लिया जाता है| यहाँ का नियम है कि जिसके पास कुछ है उसे और भी अधिक दिया जाता है, पर जिस के पास कुछ नहीं है उससे वह सब कुछ छीन लिया जाता है जो कुछ भी उसके पास है| भिखारी को कुछ नहीं मिलता लेकिन पुत्र को सब कुछ दे दिया जाता है|
. तुम भक्ति क्यों करते हो?
यह मेरा स्वभाव और जीवन है| मैं भक्ति के बिना जीवित नहीं रह सकता|
. भक्ति से तुमको क्या मिला?
भगवान का प्रेम| प्रेम के अतिरिक्त कुछ चाहिए भी नहीं था|
इस मार्ग में पाने को कुछ है ही नहीं| सब कुछ खोना ही खोना है| मिलेगा तो सिर्फ प्रेम ही| प्राण भी देना पड़ सकता है|
“कबीरा खड़ा बाजार में, लिए लुकाठी हाथ, जो घर फूंके आपनौ, चले हमारे साथ|" .
कृपा शंकर
३० मार्च २०१९

"किसी भी परिस्थिति में हमें यज्ञ, दान व तप रूपी कर्मों को (यानि भक्ति व साधना को) नहीं छोडना चाहिए।"

"किसी भी परिस्थिति में हमें यज्ञ, दान व तप रूपी कर्मों को (यानि भक्ति व साधना को) नहीं छोडना चाहिए।"
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान का यह स्पष्ट आदेश है --
"यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्।
यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम् ॥१८:५॥"
एतान्यपि तु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा फलानि च।
कर्तव्यानीति मे पार्थ निश्चितं मतमुत्तमम् ॥१८:६॥"
अर्थात् -
यज्ञ, दान और तपरूप कर्मोंका त्याग नहीं करना चाहिये, प्रत्युत उनको तो करना ही चाहिये क्योंकि यज्ञ, दान और तप -- ये तीनों ही कर्म मनीषियों को पवित्र करनेवाले हैं।
हे पार्थ ! इन कर्मों को भी, फल और आसक्ति को त्यागकर करना चाहिए, यह मेरा निश्चय किया हुआ उत्तम मत है।
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"मन लगे या न लगे, चाहे यंत्र की तरह ही करनी पड़े, किसी भी परिस्थिति में ईश्वर की भक्ति और साधना हमें नहीं छोड़नी चाहिए।
हमारी निष्काम साधना एक यज्ञ है, जिसमें हम अपने अन्तःकरण (मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार) की आहुतियाँ भगवान को देते हैं। यज्ञों में स्वयं को भगवान ने जपयज्ञ बताया है। अतः किसी भी परिस्थिति में जपयज्ञ नहीं छोड़ना चाहिए। जो भी जितनी भी मात्रा में जप का संकल्प लिया है, उसे भगवान की प्रसन्नता के लिए करना ही चाहिए।
अपने सदविचारों से हम समष्टि का कल्याण करते हैं, यह बहुत बड़ा दान है।
इन सब के लिए जो प्रयास करते हैं, वह तप है।
कर्मफल और आसक्ति का त्याग ही वास्तविक त्याग है।
हमारी चेतना में हर समय केवल भगवान छाये रहें। सम्पूर्ण जीवन उन्हें समर्पित हो।
कितनी भी बार असफलता मिले, अपने प्रयास को छोड़ो मत। भगवान के पीछे ढीठ की तरह पड़े रहो। सफलता अवश्य मिलेगी।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
३० मार्च २०२४ 

पप्पी दुश्चरित्र पुराण !

 पप्पी दुश्चरित्र पुराण !

बहुत कम लोग जानते होंगे कि विदेशी मूल की वर्णसंकर पापिनी महिला ने अपने कुपुत्र "पप्पू " को देश का प्रधान मंत्री बनाने की योजना उसी दिन से शुरू कर दी थी , जिस दिन पप्पू पैदा हुआ था , इसके लिए पापिनी ने कई कांग्रेसी नेताओं को रास्ते से हटा कर जन्नत भेज दिया , लेख के अगले भाग में यह बात विस्तार से देंगे ,आप ने देखा होगा की आजकल "पप्पी " हिन्दुओ के वोट समेटने के बनारस के घाटों का पानी पी रही है , हिंदी में घाट घाट का पानी पीने वाली औरत को दुश्चरित्र माना जाता जिस तरह पप्पू की मम्मी पापिनी ने बड़ी चालाकी से विरोधी कान्ग्रेसिओं को साफ़ करा दिया , और उसी अनुसरण पप्पी ने भी ससुराल के लोगों को साफ कर दिया ,
जिस दिन 16/2/1998 को राजेन्द्र वडेरा ने अपने छोटे बेटे रॉबर्ट की शादी प्रियंका से की थी ,उसी दिन से उसके सारे परिवार पर मौत का साया मंडरा रहा था। देश विभाजन के बाद राजेन्द्र के पिता एच आर वडेरा सियालकोट से मुरादाबाद आकर बस गए थे। वह पंजाबी हिन्दू थे। उनके दो लड़के थे ,ओमप्रकाश और राजेन्द्र। इनका परिवार पीतल के हस्तशिल्प का व्यवसाय करता था। राजेन्द्र ने मौरीन मेक डोनाड नामकी एक एंग्लो इंडियन महिला से प्रेम विवाह किया था। मौरीन का बाप अँगरेज़ और माँ भारतीय थे। मौरीन हमेशा राजेन्द्र पर ईसाई बनने का दवाब डालती थी ,जिसे वह मना कर देते थे। लेकिन फ़िर भी मौरीन ने अपनी मर्जी से राजेन्द्र का नाम एरिक और अपने ससुर का नाम हैरी रख दिया। इसके लिए मौरीन ने यह तर्क दिया की ऐसा करने से विदेशी ग्राहक आकर्षित होंगे। क्योंकि विदेशी भारतीय वस्तुएं पसंद करते हैं।राजेन्द्र की तीन संतानें हुयीं ,रिचार्ड,मिशेल और रॉबर्ट। धीमे धीमे राजेन्द्र और मौरीन के बीच में इतना मनमुटाव बढ़ गया की मौरीन दिल्ली चली गयी। और वहाँ उसने दक्षिण दिल्ली की अमर कालोनी में अपना एक शोरूम खोल लिया ,जो आज भी चल रहा है। राजेन्द्र ने अपने बड़े लड़के रिचार्ड और लड़की मिशेल की पाहिले ही शादी कर दी थी। जो अपना अपना व्यवसाय कर रहे थे। रॉबर्ट मुरादाबाद की एक गेरेज में मेकेनिक था। दिल्ली में आकर मौरीन की दोस्ती सोनिया से हो गयी ।बाद में यह दोस्ती इतनी बढ़ गयी की सोनिया ने प्रियंका की शादी रॉबर्ट से करदी। और आख़िर प्रियंका राजेन्द्र वडेरा के परिवार के लिए एक यमदूती साबित हुयी।
7-मिशेल वडेरा (-मृत्य 16 अप्रैल 2001 )
यह राजेन्द्र वडेरा की दूसरी संतान थी .अपने पिता की तरह मिशेल भी रॉबर्ट और प्रियंका की शादी के ख़िलाफ़ थी। क्योंकि शादी के बाद प्रियंका कभी ससुराल नहीं गयी। बल्कि रॉबर्ट को ही अपने साथ ले गयी। और वडेरा परिवार के किसी भी व्यक्ति को रॉबर्ट से नहीं मिलने देती थी। रॉबर्ट भी सोनिया और प्रियंका के इशारों पर नाचता था। प्रियंका ने रॉबर्ट को अपना रखैला बना रखा था। मिशेल दिल्ली में ज्वैलरी डिजायनिंग का कम करती थी। वह लोगों को प्रियंका के इस व्यवहार के बारे में बताती थी। और कहती थी की सोनिया और प्रियंका ने मेरे परिवार में फूट दाल दी है। प्रियंका वडेरा परिवार में नफरत के बीज बो रही है.मिशेल प्रियंका के चरित्र पर भी उंगली उठाती थी। फैलते फैलते यह बात सोनिया के कानों तक पहुँच गयी। और जब एक दिन मिशेल जरूरी काम के लिए अपनी कार से जयपुर जा रही थी तो अलवर के पास बेहरोर नाम की जगह पर अचानक उसकी कार पलट गयी। कार में 2 बच्चों को मिला कर 6 लोग थे। स्थानीय लोगों ने काफी मदद की लेकिन मेडिकल सहायता आने से पूर्व ही मिशेल की मौत हो चुकी थी।पुलिस का कहना था की कार के एक तरफ के दोनों टायर फट गए थे .जिस से दुर्घटना हुयी थी। लेकिन गांव वालों का कहना था की उन्होंने गोलियों की आवाज़ सुनी और देखा की एक दूसरी गाडी ने बगल से टक्कर मारी थी। बाद ने मिशेल की लाश को दिल्ली लाया गया जहाँ उसका अन्तिम संस्कार किया गया था। सिर्फ़ उसी दिन राजेन्द्र अपने बेटे से दूसरी बार मिले थे। पहिली बार वह सोनिया द्वारा आयोजित एक समारोह में अपने बेटे से मिले थे। क्योंकि सोनिया ने रॉबर्ट को अपने पिता से मिलने पर रोक लगा थी। जिस से राजेन्द्र ख़ुद को काफी अपमानित महसूस करते थे.
8-रिचार्ड वडेरा-(मृत्यु 20 सितम्बर 2003 )
यह राजेन्द्र वडेरा के बड़े पुत्र थे,और अपनी पत्नी सिमरन के साथ मुरादाबाद में वसंत विहार कालोनी में रहते थे।मौरीन ने सिमरन का ईसाई नाम सायरा कर दिया था। उसकी एक बच्ची भी है। रिचार्ड आर्टेक्स एक्सपोर्ट के नाम से हैंडीक्राफ्ट का व्यवसाय चलाते थे। अपने पिता की तरह रिचार्ड को भी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी .लेकिन जब उसके छोटे भी रॉबर्ट की प्रियंका से शादी हो गयी तो उसके पास कई कांग्रेसी नेता तरह तरह की सिफारासें लेकर आने लगे। और उसे अपने यहाँ भी बुलाने लगे। इसी तरह महाराष्ट्र के गृह राज्य मंत्री कृपा शंकर ने रिचार्ड को दो बार मुम्बई बुलाया था.और उस से अपने ख़ास लोगों को टिकिट दिलवाने के लिए सोनिया से सिफारिश करने को कहा था। कृपा शंकर ने रिचार्ड को पहली बार मुम्बई के सन एंड सैंड होटल में ठहराया था। जिसका 50,000/- का बिल कृपा शंकर ने चुकाया था। दूसरी बार रिचार्ड को सरकारी गेस्ट हाउस "हाई माउन्ट "में ठहराया गया था जिसका इंतजाम विलास राव देशमुख ने किया था। जब यह बात तत्कालीन मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री दिग्विजय सिंह ,और कर्णाटक के मुख्य मंत्री एस एम् कृष्णा को पता चली तो उन्होंने इसकी शिकायत सोनिया को कर दी। इस पर सोनिया ने रॉबर्ट पर दवाब डाला की वह सार्वजनिक रूप से यह घोषणा करे की उसका अपने पिता और भाई से कोई सम्बन्ध नहीं है। सोनिया के कहने पर रॉबर्ट ने 16 जनवरी 2002 को अपने वकील अरुण भारद्वाज के माध्यम से अपने पिता और भाई को नोटिस भेज दिया। इस नोटिस में रॉबर्ट ने अपने पिता को अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया था। उसने पिता के स्थान पर "एक व्यक्ति"शब्द लिखा था.नोटिस में कहा गया था की "एक राजेन्द्र वडेरा नाम का आदमी मेरी पत्नी ओर उसके साथ रिचार्ड नामका व्यक्ति मेरी पत्नी प्रियंका के नाम से लोगों को नौकरी दिलाने के बहाने धोखा दे रहे हैं । मेरा इन लोगों से किसी भी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं है "यह सूचना सभी अखबारों में छपी थी। जब राजेन्द्र को इस नोटिस के बारे में पता चला तो उन्होंने अपने वकील छेदीलाल मौर्य के माध्यम से रॉबर्ट ,सोनिया, ओर प्रियंका पर मानहानि का दावा करने की धमकी देते हुए जवाब देने को कहा था। उन्होंने अपने नोटिस में रॉबर्ट पर आरोप लगाया था की वह सोनिया ओर प्रियंका के इशारों पर नाच रहा है ओर एक औरत के चक्कर में अपने बाप तक को भूल गया है। राजेन्द्र ने यह भी कहा था की वह रोवेर्ट को अपनी संपत्ति से बेदखल कर देंगे। यह सारी बातें 21 जनवरी 2002 के इंडिया टू डे में विस्तार से छपी थीं। इस घटना के कुछ ही दिनों के बाद रिचार्ड अचानक गायब हो गया था। उसकी पत्नी सिमरन ने काफी खोज की थी। लेकिन वहाँ की पुलिस ने उसकी कोई मदद नहीं की। ओर एक दिन 20/9/2003को रिचार्ड मुरादाबाद के सिविल लाइन की वसंत विहार कालोनी में रहस्यमय रूप से मरा हुआ पाया गया था। राजेन्द्र ने मौत की जांच काने की मांग की थी लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी । ओर मौत को आत्महत्या का मामला बताकर केस बंद कर दिया.
9-राजेन्द्र वडेरा -(म्रत्यु 3 अप्रैल 2003)
यह प्रियंका के ससुर थे। यह दक्षिण दिल्ली के हौज ख़ास इलाके के सिटी इन नामके एक गेस्ट हाउस में रहस्य पूर्ण रूप से मरे पाये गए। इसकी कोई ऍफ़ आई आर दर्ज नहीं की गयी। उनकी आयु 60 वर्ष थी। पुलिस की औपचारिक खानापूर्ति के बाद उनके शव का लोधी रोड के श्मशान में संस्कार कर दिया गया। पाहिले मौत का कारण हार्ट अटैक बताया गया था। लेकिन बाद में पुलिस अपने बयान से मुकर गयी। प्रतक्ष्य दर्शिओं के अनुसार राजेन्द्र के गले और शरीर पर चोट के निशान पाते गए थे।इसलिए प्रियंका और सोनिया ने इसे आत्मह्त्या बताने की कोशिश की थी। लेकिन आधिकारिक रूप से कुछ भी कहने से मना कर दिया। पुलिस ने भी अपना मुंह बंद कर लिया। जब पुलिस अपनी कार्यवाही कर रही थी तो मीडिया वालों को काफी दूर हटा दिया था। मौत की खबर मिलने पर राहुल पटना से दिल्ली आया और केवल 12 मिनट वहां रुका। और बाद में मृतक को श्रृद्धांजली देकर सोनिया और प्रियंका को साथ लेकर अमेठी के लिए रवाना हो गया। जहाँ उसे अपने चुनाव का पर्चा दाखिल करना था। जब अमेठी में राहुल का और रायबरेली में सोनिया का जुलूस निकल रहा था तो प्रियंका उसके साथ साथ चल रही थी ,और खुशी से फूली नहीं समा रही थी। उसके चेहरे पर दुःख का कोई लक्षण नहीं दिखाई दे रहा था। अपने पुत्र और पुत्री की मौत के बाद राजेन्द्र अकेले हो गए थे। उनकी पत्नी मौरीन तो पाहिले ही उनसे अलग रह रही थी। इस लिए काफी सालों से राजेन्द्र सिटी इन नामके एक गेस्ट हाउस में रह रहे थे। उनका लड़का पूरी तरह से सोनिया और प्रियंका के चंगुल में था और अपने बाप से कोई मतलब नहीं रखता था। लगभग एक साल से राजेन्द्र लीवर की बीमारी से पीडित थे ।और मेक्स हॉस्पिटल में अपना इलाज करा थे ।इस दौरान रॉबर्ट ,सोनिया या प्रियंका कोई भी उनका हाल पूछने अस्पताल नहीं आया। अपने लड़के के इस व्यवहार से राजेन्द्र बहुत नाराज़ और दुखी थे। लगभग दो हफ्ता पहले उनको अस्पताल से छुट्टी मिल गयी थी। अस्पताल से निकलने के बाद उन्होंने पहिला काम यह किया की ,अपने बड़े भाई ओमप्रकाश की तरह अपनी ज़मीन एक ऐसे ट्रस्ट को दे दी जिसका सम्बन्ध आर एस एस था। आजकल वहाँ सरस्वती मन्दिर स्कूल चल रहा ।जब यह बात सोनिया को पता चली तो हड़कंप मच गया। पहले सोनिया ने कुछ प्रभावशाली कांग्रेसी नेताओं के माध्यम से राजेन्द्र पर दवाब डलवाया की की वह दान में दी गयी ज़मीन वापिस ले ले । लेकिन राजेन्द्र ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। तबसे राजेन्द्र को बार बार धमकियां दी जा रही थीं। और आख़िर उसे अपनी जान से हाथ धोना पडा। उक्त सभी घटनाओं को मात्र संयोग या दुर्घता मानना ठीक नहीं होगा। सभी घटनाओं का गहराई से विश्लेषण करने पर जो तथ्य निकल कर आते हैं वह इस प्रकार हैं -सभी मरने वाले सोनिया के आलोचक,और प्रतिस्पर्धी थे। और सोनिया उनको अपने रास्ते का काँटा मानती थी। यह सभी सोनिया के राजनीतिक प्रतिद्वंदी थे। इन लोगों ने सोनिया के कुछ ऐसे गुप्त रहस्य मालूम कर लिए थे ,जिनके प्रकट हो जाने से सोनिया को जेल हो सकती थी। इन लोगों की मौत से सोनिया को निष्कंटक, असीमित ,और एकछत्र सत्ता हासिल हो गयी। और भविष्य में राहुल को प्रधान मंत्री बनाने के लिए रास्ता साफ़ हो गया। सोनिया ने अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक एक करके इन सब का सफाया करा दिया। प्रियंका भी कुछ कम नहीं है। यदि प्रियंका नेहरू गांधी परिवार की इसी परम्परा को निबाहते हुए ,भविष्य में रॉबर्ट को भी इसी तरह से रास्ते से हटा दे ,तो हमें कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिए। ऎसी महिलाओं को ही डायन कहा जाता है ।'लोग ठीक ही कहते हैं "माँ हत्यारिनी तो बेटी कुलघातिनी। !
जय भारत २९ मार्च २०१९ (संकलित लेख)

हे चित्तचोर, तुम्हारी जय हो ---

 भगवान श्रीहरिः जब तक हमारा चित्त न चुराएँ, तब तक कोई भी आध्यात्मिक साधना सफल नहीं हो सकती| वे हमारा चित्त ही नहीं, पूरा अंतःकरण ही चुराएँ, तभी हम सफल हो सकते हैं| जो सफल हुए हैं उनका रहस्य उनसे पूछिये| पहिले उनका मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार ..... चोरी हुआ, तभी वे सफल हुए| आध्यात्म में खुद के प्रयासों से कभी सफलता नहीं मिलती| माँ भगवती स्वयं ही हृदय में आकर भक्ति करे तभी हम सफल हो सकते हैं|

जब तक हमारे में कर्ताभाव का अहंकार है, तब तक विफलता के नर्क-कुंडों में ही हम गिरेंगे| यह बिलकुल सत्य है जिसे मैं अपने अनुभवों से लिख रहा हूँ| अहंकारी लोग या तो नर्कगामी हुये हैं या आसुरी लोकों में गए हैं|
भगवान ने कृपा कर के अपने कई रहस्य अनावृत कर दिये हैं| हे चित्तचोर, तुम्हारी जय हो| २९ मार्च २०२०

Friday, 28 March 2025

आज नहीं तो कल, कभी तो उनकी कृपा होगी ही, हम सदा अंधकार में नहीं रह सकते ---

आज नहीं तो कल, कभी तो उनकी कृपा होगी ही| हम सदा अंधकार में नहीं रह सकते| हमारी उच्च प्रकृति में परमात्मा के सिवाय अन्य कुछ भी नहीं है| लेकिन निम्न प्रकृति दलदल में है| कोई भी माता हो अपनी संतान को संकट में नहीं देख सकती| जगन्माता जिसने इस सारे ब्रह्मांड को धारण कर रखा है, वह कभी निष्ठुर नहीं हो सकती| इस दलदल से मुझे विरक्त और मुक्त तो उन्हें करना ही होगा|

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भगवान ने अनेक अनुभव दिए हैं, लेकिन हमें तो अनुभव नहीं, स्वयं भगवान की प्रत्यक्ष उपस्थिति चाहिए| वर्षों पहिले की बात है| एक बार इस शरीर से संबंध टूट गया और मैं एक ऐसे स्थान पर पहुँच गया जहाँ अंधकार ही अंधकार था| एक खड़ी सीधी विशाल अंधकारमय सुरंग थी जिसमें इतना गहरा काला अंधकार था कि कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था| मुझे ऊपर-नीचे विचरण करने में कोई कठिनाई नहीं हो रही थी, लेकिन समझ में नहीं आ रहा था कि इतना अंधकार क्यों हैं| इतना अवश्य अनुभूत हो रहा था कि वहाँ अनेक जीवात्माएं हैं जो अत्यधिक कष्ट में हैं| अचानक किसी ने चिल्लाकर कर्कश आवाज में मुझ से कहा कि तुम यहाँ कैसे आ गए ? निकलो बाहर ! और मुझे धक्का देकर बाहर फेंक दिया गया| उसी क्षण बापस इस शरीर में आ गया| यह कुछ डरावना अनुभव था| भगवान से प्रार्थना की कि ऐसे अनुभव दुबारा न हों| फिर कभी ऐसे अनुभव नहीं हुए| भगवान की कृपा से एक विधि अवश्य समझ में आई कि अंत समय में ब्रह्मरंध्र से कैसे निकला जाये| इस शरीर के बाहर की अनुभूतियाँ अनेक बार हुई हैं जिनसे मृत्यु का भय नहीं रहा| लेकिन इन सब से संतोष और तृप्ति नहीं हुई है| संतोष और तृप्ति तो भगवान की प्रत्यक्ष उपस्थिती से ही हो सकती है|
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हमारा उद्देश्य किसी तरह के अनुभव लेना नहीं, बल्कि परमात्मा का साक्षात्कार है| भगवान एक न दिन तो अवश्य कृपा करेंगे और इस सांसारिक महामोह से विरक्त और मुक्त करेंगे| और कुछ लिखा ही नहीं जा रहा है| इस लेख को आधा-अधूरा ऐसे ही छोड़ रहा हूँ|
ॐ तत्सत् !!
२९ मार्च २०२१

हमारी रक्षा धर्म ही करेगा, लेकिन तभी करेगा -- जब हम धर्म की रक्षा करेंगे ---

हमारी रक्षा धर्म ही करेगा, लेकिन तभी करेगा -- जब हम धर्म की रक्षा करेंगे ---
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धर्म सदा हम सब भारतीयों के जीवन का केंद्र बिंदु है, और धर्म ही भारत का प्राण है| अतः हमारा आचरण धर्ममय हो, यह धर्म ही हमारी रक्षा करेगा| भगवान से हमारी प्रार्थना है कि हमारा आचरण धर्ममय हो और धर्म सदा हमारी सदा रक्षा करे| धर्म उसी की रक्षा करेगा जो धर्म की रक्षा करेंगे ---
"धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः| तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्|| (म.स्म.८:१५)"
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धर्म के दस लक्षण बताए गए हैं ---
"धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:| धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌|| (म.स्म.६:९२)"
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धर्म को इस प्रकार परिभाषित किया है --- "यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धि: स धर्म:| (वै.सू.१:१:२)"
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गीता में भगवान ने कहा है ---
"नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते| स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्||२:४०||"

२९ मार्च २०२१ 

पशुपतिनाथ भगवान शिव से प्रार्थना :---

 पशुपतिनाथ भगवान शिव से प्रार्थना :---

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हे पशुपतिनाथ, मैंने चारों ओर घूर-घूर कर खूब अच्छी तरह से देख लिया है| आपके आसपास मुझे तो कोई पशु दिखाई नहीं देता| आपके तो स्मरण मात्र से ही सारे पाश नष्ट हो जाते हैं, जिनसे बंधा मनुष्य अपने पशुत्व से मुक्त हो जाता है| फिर आपने अपना एक नाम पशुपतिनाथ क्यों रखा है? अपना नाम सार्थक करो, और मुझे ही पशु बनाकर सदा के लिए स्थायी रूप से अपने साथ रख लो|
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आध्यात्मिक दृष्टि से पशु का अर्थ जानवर यानि Animal नहीं है| जो पाशों (बंधनों) से बंधा है, वह पशु है| इन पाशों से मुक्ति भगवान की कृपा ही दिला सकती है|
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पशुपतिनाथ स्तोत्र :--
पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम।
जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।१।
महेशं सुरेशं सुरारार्तिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्।
विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।२।
गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्।
भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।३।
शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्।
त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।४।
परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्।
यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।५।
न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायुर्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा।
न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीड।६।
अजं शाश्वतं कारणं कारणानां शिवं केवलं भासकं भासकानाम्।
तुरीयं तम:पारमाद्यन्तहीनं प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम।७।
नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।
नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।८।
प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।
शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।९।
शंभो महेश करुणामय शूलपाणे गौरीपते पशुपते पशुपाशनाशिन्।
काशीपते करुणया जगदेतदेक-स्त्वंहंसि पासि विदधासि महेश्वरोऽसि।१०।
त्वत्तो जगद्भवति देव भव स्मरारे त्वय्येव तिष्ठति जगन्मृड विश्वनाथ।
त्वय्येव गच्छति लयं जगदेतदीश लिङ्गात्मके हर चराचरविश्वरूपिन।११।
ॐ ॐ ॐ !!
२९ मार्च २०२१

मन लगे या न लगे, चाहे यंत्र की तरह ही करनी पड़े, किसी भी परिस्थिति में ईश्वर की साधना हमें नहीं छोड़नी चाहिए ---

मन लगे या न लगे, चाहे यंत्र की तरह ही करनी पड़े, किसी भी परिस्थिति में ईश्वर की साधना हमें नहीं छोड़नी चाहिए ---
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जीवन की यह एक बहुत बड़ी शिक्षा है जो स्वयं भगवान ने गीता में दी है। मन लगे या न लगे, चाहे यंत्र की तरह ही करनी पड़े, किसी भी परिस्थिति में ईश्वर की साधना नहीं छोड़नी चाहिए। गीता में भगवान श्रीकृष्ण हमें स्पष्ट आदेश देते हैं कि यज्ञ, दान और तप -- किसी भी परिस्थिति में नहीं छोड़ने चाहियें। हमारी निष्काम साधना एक यज्ञ है, जिसमें हम अपने मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार की आहुतियाँ भगवान को देते हैं। अपने सदविचारों से हम समष्टि का कल्याण करते हैं, यह बहुत बड़ा दान है। इन सब के लिए जो प्रयास करते हैं, वह तप है। कर्मफल और आसक्ति का त्याग ही वास्तविक त्याग है जो भगवान ने गुरु रूप में हमें सिखाया है।
यज्ञों में स्वयं को भगवान ने जपयज्ञ बताया है। अतः किसी भी परिस्थिति में जपयज्ञ नहीं छोड़ना चाहिए। जो भी जितनी भी मात्रा में जप का संकल्प लिया है, उसे भगवान की प्रसन्नता के लिए करना ही चाहिए। अनेक बातें हैं जो भगवान ने हमें सिखाई हैं। हृदय में भगवान के प्रति परमप्रेम हो तो वे अपने सारे रहस्य अपने भक्तों के लिए अनावृत कर देते हैं। चेतना में इस समय केवल भगवान छाए हुये हैं। यह सम्पूर्ण जीवन उन्हें समर्पित है।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर

२९ मार्च २०२३ 

रामनवमी के त्योहार और माँ सिद्धिदात्री की आराधना के साथ नवरात्रों के समापन की अनंत मंगलमय शुभ कामनायें ---

 राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे। सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने॥"

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भगवान श्रीराम अपने परम ज्योतिर्मय रूप में हमारे चैतन्य में प्रकट हों, और हमारे राष्ट्र भारत के भीतर छाए हुए असत्य का सारा अंधकार दूर करें। उनके प्रति हमारा समर्पण पूर्ण हो। हमारी हर कमी दूर हो। "रां रामाय नमः।"
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रामनवमी के त्योहार और माँ सिद्धिदात्री की आराधना के साथ नवरात्रों के समापन की अनंत मंगलमय शुभ कामनायें।
कृपा शंकर
३० मार्च २०२३

मेरे पास अधिक समय नहीं बचा है, मेरे समक्ष दो मार्ग हैं ---

 मेरे पास अधिक समय नहीं बचा है। मेरे समक्ष दो मार्ग हैं। दो शक्तियाँ मुझ पर कार्य कर रही हैं। एक शक्ति मुझे अधोमार्ग पर ले जाना चाहती है। यह पतन का मार्ग बहुत अधिक आकर्षक और सरल है। मेरे चारों ओर का वातावरण, लगभग सारी परिस्थितियाँ, और सभी लोग उसमें सहायक हैं। अज्ञानतावश लगभग सभी उसी पर अग्रसर हो रहे हैं। मेरी अंतर्रात्मा विद्रोह कर रही है। मैं उस मार्ग का पथिक नहीं हो सकता। जो लोग बाहर से आध्यात्म की बड़ी बड़ी बातें करते हैं, उन सब का अन्तःकरण लालसाओं से भरा हुआ है, और वे सब पतन के मार्ग पर अग्रसर पथिक हैं।

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एक दूसरा ऊर्ध्वमार्ग है, जिसमें सहायक मेरे पूर्व जन्मों के गुरुगण और स्वयं भगवान वासुदेव हैं। वे पूर्ण समर्पण मांगते हैं, अन्यथा वे भी तटस्थ हैं। पूर्ण रूप से समर्पित होने पर ही वे सहायता और रक्षा करते हैं। मुझे बहुत अधिक तप करना बाकी है। इसे टाला नहीं जा सकता। इसलिए बचे हुए पूरे जीवन का सारा समय आध्यात्मिक साधना को समर्पित करना होगा। गीता का बार बार पूरी तरह स्वाध्याय बहुत आवश्यक है। गीता के शब्दों का सही अर्थ भगवान की कृपा से ही समझ में आ सकता है।
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श्रीमद्भगवद्गीता के निम्न श्लोकों में भगवान कहते हैं --
"यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति।
तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति॥६:३०॥"
(जो सबमें मुझे देखता है और सबको मुझमें देखता है, उसके लिये मैं अदृश्य नहीं होता और वह मेरे लिये अदृश्य नहीं होता।
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"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥९:२२॥"
(अनन्य भाव से मेरा चिन्तन करते हुए जो भक्तजन मेरी ही उपासना करते हैं, उन नित्ययुक्त पुरुषों का योगक्षेम मैं वहन करता हूँ।
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"मयि चानन्ययोगेन भक्तिर्व्यभिचारिणी।
विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि॥१३:११॥"
(अनन्ययोग के द्वारा मुझमें अव्यभिचारिणी भक्ति; एकान्त स्थान में रहने का स्वभाव और (असंस्कृत) जनों के समुदाय में अरुचि।
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रामचरितमानस में हनुमान जी कहते हैं --
"कह हनुमंत बिपति प्रभु सोई। जब तव सुमिरन भजन न होई॥"
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बाहर की दुनियाँ का आकर्षण बड़ा प्रबल है। यह संसार आनंद का आश्वासन देता है, लेकिन देता दुःख और कष्ट ही है। गीता मे भगवान कहते हैं --
"इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यवस्थितौ।
तयोर्न वशमागच्छेत्तौ ह्यस्य परिपन्थिनौ॥३:३४॥"
(इन्द्रियइन्द्रिय (अर्थात् प्रत्येक इन्द्रिय) के विषय के प्रति (मन में) रागद्वेष रहते हैं; मनुष्य को चाहिये कि वह उन दोनों के वश में न हो; क्योंकि वे इसके (मनुष्य के) शत्रु हैं।
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"श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥३:३५॥"
(सम्यक् प्रकार से अनुष्ठित परधर्म की अपेक्षा गुणरहित स्वधर्म का पालन श्रेयष्कर है; स्वधर्म में मरण कल्याणकारक है (किन्तु) परधर्म भय को देने वाला है।
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इस विषय को और अधिक अच्छा समझाने की क्षमता मुझमें नहीं हैं। जिस पर भगवान की महती कृपा होगी, वह तो समझ जाएगा। बिना उनकी कृपा के कुछ भी समझना असंभव है।
"त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणः त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥११:३८॥"
"वायुर्यमोग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च
नमो नमस्तेस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोपि नमो नमस्ते॥११:३९॥"
"नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥११:४०॥"
आप आदिदेव और पुराण (सनातन) पुरुष हैं। आप इस जगत् के परम आश्रय, ज्ञाता, ज्ञेय, (जानने योग्य) और परम धाम हैं। हे अनन्तरूप आपसे ही यह विश्व व्याप्त है।
आप वायु, यम, अग्नि, वरुण, चन्द्रमा, प्रजापति (ब्रह्मा) और प्रपितामह (ब्रह्मा के भी कारण) हैं; आपके लिए सहस्र बार नमस्कार, नमस्कार है, पुन: आपको बारम्बार नमस्कार, नमस्कार है।
हे अनन्तसार्मथ्य वाले भगवन्! आपके लिए अग्रत: और पृष्ठत: नमस्कार है, हे सर्वात्मन्! आपको सब ओर से नमस्कार है। आप अमित विक्रमशाली हैं और आप सबको व्याप्त किये हुए हैं, इससे आप सर्वरूप हैं।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२९ मार्च २०२४

इतना स्वार्थी नहीं हूँ, कि अपने समक्ष आई हुई विकट परिस्थितियों में निरपेक्ष रह सकूँ ---

 मेरी पीड़ा :--- कल २६ मार्च को मैंने तय किया था कि फेसबुक और ट्वीटर पर सात दिन तक नहीं आऊँगा| पर अब परिस्थितियाँ बदल गई हैं| इतना स्वार्थी नहीं हूँ, कि अपने समक्ष आई हुई विकट परिस्थितियों में निरपेक्ष रह सकूँ| जिस समाज में मैं रहता हूँ उस की स्थिति वास्तव में बड़ी खराब है| इस समाज में जैसी लोगों की सोच है उससे उत्पन्न परिस्थितियाँ बड़ी दयनीय हैं| अपनी पीड़ा और अपनी भावनाओं को व्यक्त किए बिना मैं नहीं रह सकता| इस अभिव्यक्ति का माध्यम वर्तमान में फेसबुक ही है| अतः घूम-फिर कर बापस यहीं आ जाता हूँ|

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समाज में और परिवारों में जैसी स्थिति है उस से लगता है कि या तो मैं स्वयं ही गलत हूँ, या परिस्थितियाँ| परिस्थितियों को मैं दोष नहीं दूँगा, मैं स्वयं ही गलत हूँ, इसी लिए गलत स्थान पर हूँ| मैं अपनी सारी कमियों को भी देख रहा हूँ, मुझे कोई भ्रम या संदेह नहीं है| मुझे पता है कि मेरी क्या क्षमता है, और क्या अभीप्सा|
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सांसारिक दुनियाँ में हम इस शताब्दी के सबसे बड़े संकट में हैं| पूरी मानवता सहमी हुयी है| स्वयं को सर्वशक्तिमान समझने वाली मनुष्य जाति आज एक अदृश्य वायरस के समक्ष असहाय है| हमारी पीढ़ी का यह सबसे बड़ा संकट है| अगले कुछ सप्ताहों में आम लोग और सरकारें जिस तरह के निर्णय लेंगी वह तय करेगा कि भविष्य में दुनिया की तक़दीर कैसी होगी|
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यह सत्य नहीं है कि केवल सच बोलना ही सत्य है| सत्य तो हमारा धर्म और और हमारा अस्तित्व है| जिसकी सत्ता सदैव रहे वह ही सत्य है| सिर्फ परमात्मा की सत्ता ही नित्य है अतः परमात्मा ही सत्य है| उसकी रचना यह जगत मिथ्या और दुःखदायी है|
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भगवान की पूजा करनी चाहिए लेकिन पूजा करने से भगवान नहीं मिलते| अपने भीतर के देवत्व को जगाने से ही भगवान मिलते हैं| हमें स्वयं में ही भगवान को जागृत करना पड़ेगा, तभी हम भगवान को उपलब्ध हो सकते हैं| भगवान कोई आसमान से या अन्य कहीं से उड़कर आने वाली चीज नहीं है| हमें स्वयं में ही भगवान को व्यक्त करना पड़ता है| बाकी बातें किसी काम की नहीं हैं| भगवान कहीं बाहर नहीं, हमारे में ही अव्यक्त है जिसे व्यक्त करना पड़ेगा| जिनके पीछे पीछे हम भागते हैं, उनसे कुछ भी मिलने वाला नहीं है| सभी का मंगल हो|
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ मार्च २०२०

विजय सदा धर्म की ही हो, और अधर्म का नाश हो| भगवान हमें इस योग्य बनाए कि हम धर्म की रक्षा कर सकें| भगवान ने भी वचन दिया है .....

 विजय सदा धर्म की ही हो, और अधर्म का नाश हो| भगवान हमें इस योग्य बनाए कि हम धर्म की रक्षा कर सकें| भगवान ने भी वचन दिया है .....

"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत| अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्||४:७||"
"परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्| धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे||४:८||"
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जिन्होंने आतताइयों के नाश के लिए हाथ में धनुष धारण कर रखा है, वे भगवान श्रीराम हमें अपना उपकरण बनाकर भारतवर्ष और सनातन धर्म की रक्षा करें .....
"रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा।।
अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा।।
नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना।।
सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना।।
सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका।।
बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे।।
ईस भजनु सारथी सुजाना। बिरति चर्म संतोष कृपाना।।
दान परसु बुधि सक्ति प्रचंड़ा। बर बिग्यान कठिन कोदंडा।।
अमल अचल मन त्रोन समाना। सम जम नियम सिलीमुख नाना।।
कवच अभेद बिप्र गुर पूजा। एहि सम बिजय उपाय न दूजा।।
सखा धर्ममय अस रथ जाकें। जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें।।"
"महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर।
जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर।।"
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जो मनुष्यता की हानि कर रहे हैं, जो गोहत्या का समर्थन कर रहे हैं, जो अपनी विचारधारा और पंथों की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए हिंसा कर रहे हैं, उन सब का नाश हो| जिस संस्कृति की रक्षा के लिए महाराणा प्रताप, क्षत्रपति शिवाजी, गुरु तेगबहादुर, गुरु गोविंदसिंह, बन्दा बैरागी, भाई मतिदास, संभाजी आदि आदि, और स्वतन्त्रता संग्राम के लाखों बलिदानी भारतियों ने अपनी अप्रतिम आहुति दी, उस सनातन संस्कृति की रक्षा हो| ॐ तत्सत् ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ मार्च २०२० . पुनश्च: -- विकट परिस्थितियों में ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ प्रकट होता है| भगवान ने जो भी कार्य सौंपा है वह हम निष्ठापूर्वक करेंगे| वास्तव में कर्ता तो वे स्वयं ही हैं| किसी की निंदा, आलोचना व शिकायत से कोई लाभ नहीं है| हम अपने धर्म का पालन करेंगे| हमारा धर्म है .... हर परिस्थिति में ईश्वर प्रदत्त विवेक के प्रकाश में पूर्ण मनोयोग से सर्वश्रेष्ठ कार्य का सम्पादन| अब हम कभी निराश नहीं होंगे और अपना सर्वश्रेष्ठ करेंगे|

भगवान विष्णु की आराधना के पर्व 'होली' पर आपकी आध्यात्मिक सफलता, स्वास्थ्य (स्व+स्थः), सुख-शान्ति, सद्भावना, निरंतर अभ्युदय व निःश्रेयस की सिद्धि, और सभी आध्यात्मिक विभूतियों की उपलब्धि, के लिए प्रार्थना करता हूँ|

 भगवान विष्णु की आराधना के पर्व 'होली' पर आपकी आध्यात्मिक सफलता, स्वास्थ्य (स्व+स्थः), सुख-शान्ति, सद्भावना, निरंतर अभ्युदय व निःश्रेयस की सिद्धि, और सभी आध्यात्मिक विभूतियों की उपलब्धि, के लिए प्रार्थना करता हूँ| यह पर्व भगवान विष्णु को समर्पित है| आज की दारुण-रात्री का पूरा लाभ उठाएँ और अपने आत्म-स्वरुप यानि सर्वव्यापी परमात्मा का ध्यान रात्रि में कम से कम पाँच-छः घंटों तक करें| इस रात्रि को किया गया ध्यान, जप-तप, भजन --- कई गुणा अधिक फलदायी होता है| गीता के छठे अध्याय का स्वाध्याय, और द्वादशाक्षरी भागवत मंत्र का यथासंभव खूब जाप करें|

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ मार्च २०२१

भगवान हमें निमित्त बनाकर सनातन-धर्म और भारत की रक्षा करें ---

 भगवान हमें निमित्त बनाकर सनातन-धर्म और भारत की रक्षा करें ---

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जिन्होंने आतताइयों के नाश के लिए हाथ में धनुष धारण कर रखा है, वे भगवान श्रीराम हमें अपना उपकरण बनाकर भारतवर्ष और धर्म की रक्षा करें। विजय सदा धर्म की ही हो, और अधर्म का नाश हो। असत्य का अंधकार दूर हो। भगवान ने वचन दिया है --
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽऽत्मानं सृजाम्यहम्॥४:७॥"
"परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥४:८॥"
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धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा और वैश्वीकरण हो। असत्य और अंधकार की शक्तियों का नाश हो। भारत एक सत्यनिष्ठ धर्मावलम्बी अखंड राष्ट्र हो। ॐ तत्सत् ! ॐ स्वस्ति !
कृपा शंकर
२८ मार्च २०२२

Thursday, 27 March 2025

हमारी सबसे बड़ी समस्या है --- निरंतर भगवान की चेतना में कैसे रहें?

 हमारी सबसे बड़ी समस्या है --- निरंतर भगवान की चेतना में कैसे रहें? भगवान से हमारा अनुराग/परमप्रेम कैसे हर समय बढ़ता रहे?

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विरक्त ही होना था तो ६० वर्ष पूर्व १५-१६ वर्ष की आयु में ही होना चाहिए था। उस समय विवेक और साहस नहीं था। लगता है पिछले जन्मों में अच्छे कर्म नहीं किये थे, इसलिए इस जन्म में वैराग्य लाभ नहीं हुआ, और वीतराग नहीं बन पाए; स्थितप्रज्ञता तो बहुत दूर की बात है। अवशिष्ट जीवन पूर्णतः परमात्मा को समर्पित है। जीवन का सब अच्छा-बुरा, सारे गुण-दोष, सब भगवान को समर्पित हैं। जो परमात्मा को उपलब्ध होना चाहते हैं, उन्हें मेरी सलाह यही है कि जीवन में जब भी परमात्मा की एक छोटी सी भी झलक मिले तो उसी समय विरक्त हो जाना चाहिए। लेकिन कुछ कर्म हैं जिनका त्याग नहीं किया जा सकता।
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गीता में भगवान कहते हैं --
"यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्।
यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्॥१८:५॥"
"एतान्यपि तु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा फलानि च।
कर्तव्यानीति मे पार्थ निश्िचतं मतमुत्तमम्॥१८:६॥"
"न हि देहभृता शक्यं त्यक्तुं कर्माण्यशेषतः।
यस्तु कर्मफलत्यागी स त्यागीत्यभिधीयते॥१८:११॥"
अर्थात् - यज्ञ, दान और तपरूप कर्म त्याज्य नहीं है, किन्तु वह नि:सन्देह कर्तव्य है; यज्ञ, दान और तप - ये मनीषियों (साधकों) को पवित्र करने वाले हैं॥
हे पार्थ ! इन कर्मों को भी, फल और आसक्ति को त्यागकर करना चाहिए, यह मेरा निश्चय किया हुआ उत्तम मत है॥
क्योंकि देहधारी पुरुष के द्वारा अशेष कर्मों का त्याग संभव नहीं है, इसलिए जो कर्मफल त्यागी है, वही पुरुष त्यागी कहा जाता है॥
भगवान के उपरोक्त वचन बड़े आनंद और संतोष देते है। कोई क्षोभ नहीं है। हम तो निमित्त मात्र हैं। कर्ता तो वे ही हैं।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२८ मार्च २०२३

Wednesday, 26 March 2025

मेरा कर्मयोग परमात्मा में पूर्ण समर्पण है।

 मेरा कर्मयोग परमात्मा में पूर्ण समर्पण है। यह शरीर रहे या न रहे, इसका कोई महत्व नहीं है। महत्व इसी बात का है कि निज जीवन में परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति हो। जहाँ तक मेरी कल्पना जाती है, भगवान के सिवाय कोई अन्य नहीं है। केवल वे ही हैं। सारे दुःख-सुख, अभाव और भाव -- सब कुछ वे ही हैं। .

भक्ति और सेवा के मार्ग में श्रीहनुमान जी से बड़ा अन्य कोई भक्त या सेवक, भगवान का नहीं है। वे स्वयं प्रत्यक्ष देवता हैं। सफलता उनके पीछे पीछे चलती है। उन्होंने कभी कोई विफलता नहीं देखी। असत्य और अंधकार की कोई आसुरी शक्ति उनके समक्ष नहीं टिक सकती। उनसे अधिक शक्तिशाली और ज्ञानी अन्य कोई नहीं है।
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।। .
"आपदां पहर्तारं दातारं सर्व सम्पदां, लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्।
श्रीरामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे, रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः॥"
"॥ रां रामाय नमः॥ ॥ रां रामाय नमः॥ ॥ रां रामाय नमः॥"
(तारक मंत्र "रां" के निरंतर मानसिक जप [दिन में चौबीस घंटे, सप्ताह में सातों दिन] से हमारी चेतना राममय हो जाती है। जिनको शक्ति चाहिए, वे इसके साथ शक्ति बीज का प्रयोग भी कर सकते हैं।) .
आध्यात्मिक उन्नति के लिए हमारी दृष्टि समष्टि-दृष्टि हो, न कि व्यक्तिगत। परमात्मा की सर्वव्यापकता और पूर्णता पर हमारा ध्यान और समर्पण होगा तभी हमारी आध्यात्मिक उन्नति होगी। एक साधक के लिए उन्नति का आधार और मापदंड उसका ब्रह्मज्ञान हो, न कि कुछ अन्य।
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पुनश्च: --- जो बीत गया सो बीत गया, जो हो गया सो हो गया। भूतकाल को तो बदल नहीं सकते, अभी जब से होश आया है, तब इसी समय से परमात्मा की चेतना में रहें। हमारा कार्य परमात्मा में पूर्ण समर्पण है। यह शरीर रहे या न रहे, इसका कोई महत्व नहीं है। महत्व इसी बात का है कि निज जीवन में परमात्मा का अवतरण हो।
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥
काम कोह मद मान न मोहा। लोभ न छोभ न राग न द्रोहा॥
जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया। तिन्ह कें हृदय बसहु रघुराया॥
तुम्हहि छाड़ि गति दूसरि नाहीं। राम बसहु तिन्ह के मन माहीं॥
जननी सम जानहिं परनारी। धनु पराव बिष तें बिष भारी॥
जाति पाँति धनु धरमु बड़ाई। प्रिय परिवार सदन सुखदाई॥
सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई। तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई॥
ॐ तत्सत् !! कृपा शंकर
२७ मार्च २०२२