Monday, 7 April 2025

आज चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को हनुमान जी का जन्मोत्सव है ---

आज चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को हनुमान जी का जन्मोत्सव है| एक दीपक जलाकर घर के सभी सदस्य मिलकर एक साथ बैठकर भक्तिभाव से हनुमान चालीसा व सुंदर कांड का पाठ करें| फिर भगवान का ध्यान करें| सभी श्रद्धालुओं को अभिनंदन बधाई और नमन!!

हनुमान जी का जन्म कहाँ हुआ था इस पर कुछ विवाद है| दक्षिण भारत में मान्यता है कि हनुमान जी का जन्म कर्णाटक के हम्पी में या गोकर्ण में हुआ था| उत्तरी भारत में मान्यता है कि हनुमान जी का जन्म झारखंड के गुमला में हुआ था| हरियाणा के कुछ भक्त कैथल में जन्म बताते हैं| इस विषय पर वैष्णव रामानंदी संप्रदाय के आचार्य जो भी बतायेंगे वह हमें मान्य है|
मेरे लिए तो हनुमान जी मेरे चैतन्य में हैं| प्राण-तत्व की जो गति है वह हनुमान जी की ही महिमा है| इस से अधिक कुछ भी व्यक्त करने में असमर्थ हूँ|
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भगवत्पाद आचार्य शंकर (आदि शंकराचार्य) कृत हनुमत् स्तोत्र :---
श्रीहनुमत् पञ्चरत्नम्
वीताखिल-विषयेच्छं जातानन्दाश्र पुलकमत्यच्छम् ।
सीतापति दूताद्यं वातात्मजमद्य भावये हृद्यम् ॥ १॥
तरुणारुण मुख-कमलं करुणा-रसपूर-पूरितापाङ्गम् ।
सञ्जीवनमाशासे मञ्जुल-महिमानमञ्जना-भाग्यम् ॥ २॥
शम्बरवैरि-शरातिगमम्बुजदल-विपुल-लोचनोदारम् ।
कम्बुगलमनिलदिष्टम् बिम्ब-ज्वलितोष्ठमेकमवलम्बे ॥ ३॥
दूरीकृत-सीतार्तिः प्रकटीकृत-रामवैभव-स्फूर्तिः ।
दारित-दशमुख-कीर्तिः पुरतो मम भातु हनुमतो मूर्तिः ॥ ४॥
वानर-निकराध्यक्षं दानवकुल-कुमुद-रविकर-सदृशम् ।
दीन-जनावन-दीक्षं पवन तपः पाकपुञ्जमद्राक्षम् ॥ ५॥
एतत्-पवन-सुतस्य स्तोत्रं यः पठति पञ्चरत्नाख्यम् ।
चिरमिह-निखिलान् भोगान् भुङ्क्त्वा श्रीराम-भक्ति-भाग्-भवति ॥ ६॥
इति श्रीमच्छंकर-भगवतः कृतौ हनुमत्-पञ्चरत्नं संपूर्णम् ॥ . ८ अप्रेल २०२०

कोलंबस और वास्कोडीगामा का सत्य ---

 कोलंबस और वास्कोडीगामा का सत्य ---

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ईसाई रिलीजन मुख्यतः दो सिद्धांतों पर खड़ा है, वे हैं -- (१) मूल पाप (Original Sin) और (२) पुनरोत्थान (Resurrection) की अवधारणा|
मूल पाप (Original Sin) की अवधारणा कहती है कि मनुष्य जन्म से ही पापी है, क्योंकि अदन की वाटिका में आदम ने भले/बुरे ज्ञानवृक्ष से परमेश्वर की आज्ञा की अवहेलना कर के वर्जित फल को खा लिया| इससे परमेश्वर बहुत नाराज हुआ, और उस की दृष्टि में आदम की सारी औलादें जन्म से ही पापी हो गईं| आदमी का हर पाप अदन की वाटिका में आदम के पाप का सीधा परिणाम है| परमेश्वर ने करुणा कर के इंसान को इस पाप से मुक्त करने के लिए अपने एकमात्र पुत्र यीशु (Jesus) को पृथ्वी पर भेजा ताकि जो उस पर विश्वास करेंगे, वे इस पाप से मुक्त कर दिये जाएँगे, और जो उस पर विश्वास नहीं करेंगे उन्हें नर्क की अनंत अग्नि में शाश्वत काल के लिए डाल दिया जाएगा|
पुनरोत्थान (Resurrection) की अवधारणा कहती है कि सूली पर मृत्यु के बाद यीशु मृतकों में से जीवित हो गए, और अन्य भी अनेक मृतकों को खड़ा कर दिया| ईसाई मतावलंबी ईसा के पुनरुत्थान को ईसाई रिलीजन के केंद्रीय सिद्धांत के रूप में मानते हैं| यह चमत्कार उनके अवतार होने को मान्यता प्रदान करता है|
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सत्य क्या है मुझे पता नहीं| सत्य का अनुसंधान करना जिज्ञासु विद्वानों का काम है| पश्चिमी जगत में दो-तीन तरह के विचार फैल रहे हैं| कुछ तो परंपरागत श्रद्धालु हैं| कुछ पश्चिमी विद्वान कह रहे हैं कि ईसा मसीह नाम के व्यक्ति ने कभी जन्म ही नहीं लिया| इनके बारे में कही गई सारी बातें सेंट पॉल नाम के एक पादरी के दिमाग की उपज हैं| कुछ विद्वान कह रहे हैं कि ईसा मसीह ने भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षाओं का ही प्रचार किया| उनकी पढ़ाई-लिखाई और मृत्यु भारत में ही हुई|
प्रमाणों और विवेक के आधार पर सत्य का अनुसंधान होना चाहिए| आँख मीच कर किसी की कोई बात नहीं माननी चाहिए|
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वास्तव में चर्च पश्चिमी साम्राज्यवादियों की सेना का अग्रिम अंग था| अपना साम्राज्य फैलाने के लिए साम्राज्यवादियों की सेना जहाँ भी जाती, उस से पूर्व, चर्च के पादरी पहुँच कर आक्रमण की भूमिका तैयार करते थे| विश्व में सबसे अधिक नरसंहार और अत्याचार चर्च ने किए हैं| इसका एक उदाहरण दे रहा हूँ ---
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यह सन १४९२ ई.की बात है| एक बार पुर्तगाल और स्पेन में लूट के माल को लेकर झगड़ा हो गया| दोनों ही देश दुर्दांत समुद्री डाकुओं के देश थे जिनका मुख्य काम ही समुद्रों में लूटपाट और ह्त्या करना होता था| दोनों ही देश कट्टर रोमन कैथोलोक ईसाई थे अतः मामला वेटिकन में उस समय के छठवें पोप के पास पहुँचा| लूट के माल का एक हिस्सा पोप के पास भी आता था| अतः पोप ने सुलह कराने के लिए एक फ़ॉर्मूला खोज निकाला और एक आदेश जारी कर दिया| ७ जून १४९४ को "Treaty of Tordesillas" के अंतर्गत इन्होने पृथ्वी को दो भागों में इस तरह बाँट लिया कि यूरोप से पश्चिमी भाग को स्पेन लूटेगा और पूर्वी भाग को पुर्तगाल|
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वास्कोडिगामा एक लुच्चा लफंगा बदमाश हत्यारा और समुद्री डाकू मात्र था, कोई वीर नाविक नहीं| अपने धर्मगुरु की आज्ञानुसार वह भारत को लूटने के उद्देश्य से ही आया था| कहते हैं कि उसने भारत की खोज की| भारत तो उसके बाप-दादों और उसके देश पुर्तगाल के अस्तित्व में आने से भी पहिले अस्तित्व में था| वर्तमान में तो पुर्तगाल कंगाल और दिवालिया होने की कगार पर है जब कि कभी लूटमार करते करते आधी पृथ्वी का मालिक हो गया था|
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ऐसे ही स्पेन का भी एक लुटेरा बदमाश हत्यारा डाकू था जिसका नाम कोलंबस था| अपने धर्मगुरु की आज्ञानुसार कोलंबस गया था अमेरिका को लूटने के लिए और वास्कोडीगामा आया था भारतवर्ष को लूटने के लिए| कोलंबस अमेरिका पहुंचा तब वहाँ की जनसंख्या दस करोड़ से ऊपर थी| कोलम्बस के पीछे पीछे स्पेन की डाकू सेना भी वहाँ पहुँच गयी| उन डाकुओं ने निर्दयता से वहाँ के दस करोड़ लोगों की ह्त्या कर दी और उनका धन लूट कर यूरोपियन लोगों को वहाँ बसा दिया| वहाँ के मूल निवासी जो करोड़ों में थे, वे कुछ हजार की संख्या में ही जीवित बचे| यूरोप इस तरह अमीर हो गया|
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कितनी दुष्ट राक्षसी सोच वाले वे लोग थे जो उन्होंने मान लिया कि सारा विश्व हमारा है जिसे लूट लो| कोलंबस सन १४९२ ई.में अमरीका पहुँचा, और सन १४९८ ई.में वास्कोडीगामा भारत पहुंचा| ये दोनों ही व्यक्ति नराधम थे, कोई महान नहीं जैसा कि हमें पढ़ाया जाता है|
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आज का अमेरिका उन दस करोड़ मूल निवासियों की लाश पर खडा एक देश है| उन करोड़ों लोगों के हत्यारे आज हमें मानव अधिकार, धर्मनिरपेक्षता, सद्भाव और सहिष्णुता का पाठ पढ़ा रहे हैं|
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ऐसे ही अंग्रेजों ने ऑस्ट्रेलिया में किया| ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में वहाँ के सभी मूल निवासियों की ह्त्या कर के अंग्रेजों को वहाँ बसा दिया गया| भारत में भी अँगरेज़ सभी भारतीयों की ह्त्या करना चाहते थे, पर कर नहीं पाए|
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यह हम सब अपने विवेक से तय करें कि सत्य क्या है| सभी को धन्यवाद!
ॐ तत्सत !! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !!
कृपा शंकर
८ अप्रेल २०२१

मेरे द्वारा आध्यात्मिक प्रेरणादायक लेख लिखने का उद्देश्य अब पूर्ण हो चुका है ---

अब से बाकी बचे अत्यल्प जीवन के प्रत्येक मौन क्षण में परमात्मा की पूर्ण अभिव्यक्ति हो, यही प्रार्थना है। हर आती-जाती साँस परमात्मा की साँस हो, जीवन का हर क्षण, हर स्पंदन, हर विचार परमात्मा को ही समर्पित हो। जीवन में ईश्वर के सिवाय अन्य कुछ भी न हो।

अति आवश्यक होने पर कभी कभी कुछ पुराने लेख पुनर्प्रेषित कर दूँगा। अब और नया लिखने की प्रेरणा नहीं मिल रही है। आप सब को नमन !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
८ अप्रेल २०२२

भगवान को उपलब्ध होना हमारा स्वधर्म और जन्मसिद्ध अधिकार है ---

 भगवान को उपलब्ध होना हमारा स्वधर्म और जन्मसिद्ध अधिकार है ---

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निरंतर ब्रह्म-चिंतन और भक्ति ही हमारा स्वभाव है, अन्यथा हम अभाव-ग्रस्त हैं। जीवन के प्रत्येक मौन क्षण में भगवान की पूर्ण अभिव्यक्ति हो। हर आती-जाती साँस भगवान की साँस हो। जीवन का हर क्षण, हर स्पंदन, हर विचार, -- भगवान को समर्पित हो। जीवन में भगवान के सिवाय अन्य कुछ भी न हो। भगवान को उपलब्ध होना हमारा स्वधर्म और जन्मसिद्ध अधिकार है। यदि सत्यनिष्ठा से हम चाहें, तो भगवान को उपलब्ध होने से हमें विश्व की कोई भी शक्ति नहीं रोक सकती। सत्यनिष्ठा से मेरा अभिप्राय है कि हम भगवान को चाहें, न कि उनके सामान को। या तो उनका सामान ही मिलेगा, या भगवान स्वयं ही मिलेंगे। दोनों एकसाथ नहीं मिल सकते। जिनको दोनों चाहियें, वे मुझे क्षमा करें।
ॐ तत्सत् !!
८ अप्रेल २०२३ पुनश्च: --- अब इस समय लिखने योग्य एक ही बात है कि भगवान को पाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। यदि सत्यनिष्ठा से हम चाहें, तो भगवान को पाने से हमें विश्व की कोई भी शक्ति नहीं रोक सकती। सत्यनिष्ठा से मेरा अभिप्राय है कि हम भगवान को चाहें, न कि उनके सामान को। या तो उनका सामान ही मिलेगा, या भगवान स्वयं ही मिलेंगे। दोनों एकसाथ नहीं मिल सकते। जिनको दोनों चाहियें, वे मुझे क्षमा करें।

इष्टदेव ही दुःखों को दूर कर सकते हैं ---

 इष्टदेव ही दुःखों को दूर कर सकते हैं ---

साक्षी भाव में निमित्त मात्र होकर ही जीवन जीयें। संसार में कष्ट तो आते ही रहेंगे, उन्हें कोई नहीं रोक सकता। हाँ, उनकी पीड़ा अवश्य कम हो सकती है, इष्टदेव की कृपा से। कोई ऐसा सार्वभौमिक नियम नहीं है जिससे संसार के सारे दुःख या कष्ट मिट सकें। हम सिर्फ प्रार्थना कर सकते हैं, और कुछ नहीं। कष्ट हों तो अपने इष्टदेव से उनके निवारण हेतु प्रार्थना करें। वे ही दुःखों को दूर कर सकते हैं। इसके लिए कोई मंत्र, तंत्र या टोटका नहीं है। ठगों से बचकर रहें। ८ अप्रेल २०२३

Saturday, 5 April 2025

कृष्ण मृग यानी काले हिरण को प्राचीन भारत में पवित्र माना गया था ---

कृष्ण मृग यानी काले हिरण को प्राचीन भारत में पवित्र माना गया था| प्राचीन भारत में कृष्ण मृग निर्भय होकर घुमते थे, उनका शिकार प्रतिबंधित था| मनुस्मृति में कहा गया है कि जितनी भूमि पर स्वतन्त्रतापूर्वक घूमता हुआ कृष्ण मृग मिले वह यज्ञ की पुण्यभूमि है|

मुझे एक तपस्वी साधू ने बताया था कि तपस्या करने करने के लिए वह स्थान सर्वश्रेष्ठ है जहाँ .......(१) कृष्ण मृग निर्भय होकर घुमते हों, (२) शमी वृक्ष यानी खेजडी के वृक्ष हों, (३) जहाँ निर्भय होकर मोर पक्षी रहते हों, और (४) कूर्म भूमि हो, यानि कछुए की पीठ के आकार की भूमि हो|
राजस्थान का विश्नोई समाज तो खेजडी के वृक्षों और कृष्ण मृगों की रक्षा के लिए अपने प्राण भी न्योछावर करता आया है| उन विश्नोइयों के गाँव में जाकर सलमान खान फ़िल्मी हीरो ने कृष्ण मृग का शिकार किया| वह वहाँ से तुरंत भाग गया, यदि गाँव वालों के हाथ में आ जाता तो अपने जीवन में अगले दिन का प्रकाश नहीं देख पाता| धन्य है विश्नोई समाज जो हर प्रकार के प्रलोभन और भय के पश्चात भी इस मुकदमें में अडिग खडा रहा और बीस वर्ष तक प्रतीक्षा कर के भी सलमान खान को सजा दिलवाई|
हरियाणा में नवाब पटौदी नाम का पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी भी काले हिरण का शिकार करते पकड़ा गया था| उसको भी सजा अवश्य मिलती पर उसको तो प्रकृति ने ही सजा दे दी| वह अधिक दिन जीवित नहीं रहा| ६ अप्रेल २०१८

जीवात्मा जब परमात्मा से लिपटी रहती है, तब वह भी परमात्मा से एकाकार होकर उसी ऊँचाई तक पहुँच जाती है ---

सन २००१ की बात है। अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के कच्छल द्वीप पर एक अति विशाल और बहुत ही ऊँचे वृक्ष को देखा, जिस पर एक लता भी चढ़ी हुई थी| वृक्ष की जितनी ऊँचाई थी, लिपटते-लिपटते वहीं तक वह लता भी पहुँच गई थी| जीवन में पहली बार ऐसे उस दृश्य को देखकर परमात्मा और जीवात्मा की याद आ गई, और एक भाव-समाधि लग गई| वह बड़ा ही शानदार दृश्य था जहाँ मुझे परमात्मा की अनुभूति हुई| प्रभु को समर्पित होने से बड़ी कोई उपलब्धी नहीं है|
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जीवात्मा जब परमात्मा से लिपटी रहती है, तब वह भी परमात्मा से एकाकार होकर उसी ऊँचाई तक पहुँच जाती है| परमात्मा को हम कितना भी भुलायें, पर वे हमें कभी भी नहीं भूलते| सदा याद करते ही रहते हैं| उन्हें भूलने का प्रयास भी करते हैं तो वे और भी अधिक याद आते हैं| वास्तव में वे स्वयं ही हमें याद करते हैं| कभी याद न आए तो मान लेना कि --
"हम में ही न थी कोई बात, याद न तुम को आ सके."
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ॐ तत्सत् ||
कृपा शंकर
6 अप्रेल 2022

खुद की कमी दूर करने का प्रयास हम करें, और भगवान पर दोष न डालें ---

आत्म-विश्लेषण --- सत्य तो यह है कि अपनी कमियों को तो हम दूर नहीं कर पाते, और सारा दोष भगवान को दे रहे हैं। कहते हैं कि "भगवान की मर्जी"। खुद की कमी दूर करने का प्रयास हम करें, और भगवान पर दोष न डालें। यह बात मैं स्वयं के लिए ही नहीं कह रहा, सभी के लिए कह रहा हूँ।

हम धर्म का आचरण करेंगे, तभी धर्म की रक्षा होगी, और तभी धर्म हमारी रक्षा करेगा| धर्म के आचरण से ही जीवन में हमारा सर्वतोमुखी विकास, और सब तरह के दुःखों से मुक्ति होगी| धर्म क्या है और इसका पालन कैसे हो, इसे महाभारत, रामायण, भागवत, मनुस्मृति, आदि ग्रन्थों व श्रुतियों में बड़े विस्तार से और स्पष्ट रूप से समझाया गया है| आवश्यकता धर्मग्रंथों के स्वाध्याय, और परमात्मा के ध्यान की है| गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने तो इतना भी कहा है कि स्वधर्म का थोड़ा-बहुत पालन भी इस संसार के महाभय से हमारी रक्षा करेगा|

लौकिक रूप से हमें यह प्रयास करते रहना चाहिए कि भारत की प्राचीन शिक्षा और कृषि व्यवस्था फिर से जीवित हो| मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर उन्हें धर्माचार्यों की एक प्रबन्धक समिति को सौंपा जाये जो यह सुनिश्चित करे कि मंदिरों के धन का उपयोग सिर्फ सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में ही हो| सनातन हिन्दू धर्म विरोधी जितने भी प्रावधान भारत के संविधान में हैं, उन्हें हटाया जाये| हम सत्य सनातन धर्म की निरंतर रक्षा करें| ५ अप्रेल २०२१

मोक्षमार्ग ---

 मोक्षमार्ग ---

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अब आत्मतत्व, सनातनधर्म व राष्ट्रहित के अतिरिक्त अन्य किसी भी विषय पर विचार के लिए मेरे पास समय नहीं है। मेरे हृदय में क्या है यह मैं किसी को बता नहीं सकता, क्योंकि उसे समझने वाले नगण्य हैं। फिर भी मोक्षमार्ग पर चलने वाले मेरे अनेक मित्र हैं जो नित्य नियमित परमात्मतत्व का ध्यान, मनन, और निदिध्यासन करते हैं, व निरंतर परमात्मा की चेतना (कूटस्थ-चैतन्य) में रहते हैं। भौतिक रूप से वे मुझसे दूर हैं लेकिन परमात्मा में वे मेरे साथ एक हैं।
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गीता के निम्न चार मंत्रों में भगवान ने सम्पूर्ण मोक्षमार्ग बताया है ---
"या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।।२:६९।।"
"आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्।
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी।।२:७०।।"
"विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।
निर्ममो निरहंकारः स शांतिमधिगच्छति।।२:७१।।"
"एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति।
स्थित्वाऽस्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति।।२:७२।।"
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जिन्हें परमात्मा को उपलब्ध होने की अभीप्सा है, वे किन्हीं श्रौत्रीय ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु आचार्य की शरण लें। अन्य कोई दूसरा मार्ग नहीं है। श्रुति भगवती इसका स्पष्ट आदेश देती है। उपरोक्त चारों मंत्रों का स्वाध्याय स्वयं करें। इनमें पूरा मोक्षमार्ग है।
ॐ तत्सत् ॥ ॐ ॐ ॐ ॥
कृपा शंकर
५ अप्रेल २०२३

Friday, 4 April 2025

परमात्मा से जीवात्मा को, यानि परमात्मा से हमें कौन जोड़ कर रखता है? यह ब्रह्मांड टूट कर बिखरता क्यों नहीं है?

परमात्मा से जीवात्मा को, यानि परमात्मा से हमें कौन जोड़ कर रखता है? यह ब्रह्मांड टूट कर बिखरता क्यों नहीं है? किस शक्ति ने ब्रह्मांड को जोड़ कर सुव्यवस्थित रूप से धारण कर रखा है? .

"ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः। शं नो भवत्वर्यमा। शं न इन्द्रो वृहस्पतिः। शं नो विष्णुरुरुक्रमः। ॐ नमो ब्रह्मणे। नमस्ते वायो। त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वमेव प्रत्यक्षम् ब्रह्म वदिष्यामि। ॠतं वदिष्यामि। सत्यं वदिष्यामि। तन्मामवतु। तद्वक्तारमवतु। अवतु माम्। अवतु वक्तारम्। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥"
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हमारे शास्त्रों के अनुसार ध्यान-साधना में प्राप्त "आनंद" ही है, जो जीवात्मा को यानि हमें ब्रह्म से जोड़कर एक रखता है। वह आनंद हमारे प्राण-तत्व की अभिव्यक्ति है। ब्रह्म है -- पूर्णत्व, जिसके बारे में श्रुति भगवती कहती है --
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदच्यते॥
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥"
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हमारी भौतिक सृष्टि में Entangled subatomic particles चाहे वे कितनी भी दूर हों, एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं। एक अदृश्य शक्ति उन्हें आपस में जोड़ कर रखती है।
यह बात कुछ वर्ष पूर्व जेनेवा स्विट्ज़रलैंड के पास Large Hadron Collider में Unified field theory पर चल रहे प्रयोगों में सिद्ध हुई थी। एक बहुत बड़े भारतीय भौतिक वैज्ञानिक ने बहुत लम्बे समय तक चले प्रयोगों के बाद यह पाया कि जिस तरह Electromagnetism, Gravity और Atomic forces होती हैं, उसी तरह की एक और अति सूक्ष्म Pervasive quantum force होती है जो सारे Subatomic particles को आपस में जोड़ती है। वह Force इतनी सूक्ष्म होती है कि हमारे विचारों से भी प्रभावित होती है। वह force यानि वह शक्ति ही है जो सारे ब्रह्मांड को आपस में जोड़ कर एक रखती है।
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यह खोज जिन वैज्ञानिक ने की उन्होनें बड़ी विनम्रता से अपने नाम पर इस शक्ति का नाम रखने से मना कर दिया, जबकि उन्हें इसका अधिकार था। इस आविष्कार के पश्चात वे एक गहरे ध्यान में चले गए और जब उनकी चेतना लौटी तो इस Conscious universal force का नाम उन्होंने "BLISSONITE" रखा जिसका अर्थ ही होता है -- आनंद की शक्ति।
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एक चुनौतीपूर्ण प्रश्न यह भी रहा है कि quantum particles अपना व्यवहार क्यों बदल देते हैं जब उन्हें observe किया जाता है? यह एक वास्तविकता है जिसका ज्ञान प्राचीन भारत के मनीषियों को था। वे अपने संकल्प से आणविक संरचना को परिवर्तित कर किसी भी भौतिक पदार्थ का बाह्य रूप बदल सकते थे।
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आनंद ने ही हमें परमात्मा से जोड़ रखा है। वह आनंद ही प्राण-तत्व है, जो घनीभूत होकर कुंडलिनी महाशक्ति के रूप में व्यक्त होता है। वह कुंडलिनी महाशक्ति ही परमशिव से मिलकर जीव को शिव के साथ एकाकार कर देती है। वह प्राणतत्व ही पंचप्राणों के द्वारा हमारे शरीर को जीवित रखता है। ये पंचप्राण ही वे गण हैं जिनके अधिपति ओंकार रूप में गणेश जी हैं। इन पंचप्राणों के दस सौम्य, और दस उग्र रूप ही दस महाविद्याएँ हैं।
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किसी भी साधना/उपासना में आनंद की अनुभूति ही परमात्मा की अनुभूति है। आनंद का स्त्रोत प्रेम है। भगवान को हम अपना पूर्ण प्रेम जब देते हैं, तब आनंद की अनुभूति होती है। भगवान सारे संबंधों से परे भी हैं, और संबंधों में भी हैं। वे माता भी हैं, और पिता भी। सारे ज्ञात-अज्ञात संबंधी, मित्र, शत्रु, और सारे रूप वे ही हैं। वे ही प्रकाश, अंधकार, ज्ञान, अज्ञान, विचार, ऊर्जा, प्रवाह, गति, स्पंदन, आवृतियां, अनंतता, चेतना, प्राण, और विस्तार आदि हैं। जैसा मुझे समझ में आया वैसा ही अपनी सीमित अल्प बुद्धि से लिख दिया। इससे अधिक मुझे कुछ भी नहीं मालूम।
परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति आप सब को नमन !!

तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
५ अप्रेल २०२३

Thursday, 3 April 2025

शुक्राचार्य द्वारा आराधित असाध्य रोग,अकाल मृत्यु निवारक ।। मृतसंजीवनीमंत्र।।

 शुक्राचार्य द्वारा आराधित असाध्य रोग,अकाल मृत्यु निवारक ।। मृतसंजीवनीमंत्र।।


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ॐहौं ॐजूं ॐ स: ॐभू: ॐभुव: ॐस्व: ॐमह: ॐजनः ॐ तपः ॐ सत्यं

ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं

त्र्यबकं यजामहे सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम्

भर्गोदेवस्य धीमहि उर्वारुकमिव बंधनान्

धियो योन: प्रचोदयात् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्

ॐसत्यं ॐतपः ॐजन: ॐ मह: ॐस्व: ॐभुव: ॐभू: ॐ स: ॐजूं ॐहौं ॐ।।

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इस मंत्र का अर्थ है : हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं... उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए... जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाएं.

इस मंत्र के जप से असाध्य रोग कैंसर, क्षय, टाइफाइड, हैपेटाइटिस बी, गुर्दे, पक्षाघात, ब्रेन ट्यूमर जैसी बीमारियों को दूर करने में भी मदद मिलती है। इस मंत्र का प्रतिदिन विशेषकर सोमवार को 101 जप करने से सामान्य व्याधियों के साथ ही मानसिक रोग, डिप्रैशन व तनाव आदि दूर किए जा सकते हैं।

तेज बुखार से शांति पाने के लिये औंगा की समिधाओं द्वारा पकाई गई दूध की खीर से हवन करवाना चाहिए। मृत्यु-भय व अकाल मृत्यु निवारण के लिए हवन में दही का प्रयोग करना चाहिए।

इतना ही नहीं मृत्युंजय जप व हवन से शनि की साढ़ेसाती, वैधव्य दोष, नाड़ी दोष, राजदंड, अवसादग्रस्त मानसिक स्थिति, चिंता व चिंता से उपजी व्यथा को कम किया जा सकता है। भयंकर बीमारियों के लिए मृत्युंजय मंत्र के सवा लाख जप व उसका दशमांश का हवन करवाना उत्तम रहता है।

सारी सृष्टि सारा ब्रह्मांड -- मेरा शरीर है, सारे प्राणी मेरा परिवार हैं ---


सारी सृष्टि सारा ब्रह्मांड -- मेरा शरीर है, सारे प्राणी मेरा परिवार हैं। मैं कूटस्थ ज्योतिर्मय ब्रह्म (निरंतर विस्तृत, सर्वव्यापक) परमशिव (परम कल्याणकारी) हूँ, जो इस समय यह एक अति साधारण, सामान्य, अकिंचन मनुष्य बन गया है।
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इस समय मैं एक निमित्त मात्र हूँ, कर्ता तो परमशिव है। मैं जो कुछ भी लिखता हूँ, वह मेरा सत्संग है, जिसका एकमात्र उद्देश्य -- अपने स्वयं, सनातन-धर्म और भारत के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त करना है। मैं अपने या किसी अन्य के मनोरंजन के लिए बिल्कुल भी नहीं लिखता। कौन क्या सोचता है यह उसकी समस्या है, मेरी नहीं। ॐ शिव शिव शिव !!
अप्रैल ४, २०२३.

हम भगवान की ओर अग्रसर हैं या नहीं?

हम भगवान की ओर अग्रसर हैं या नहीं? इस पर विचार करते हैं। मैं बहुत गंभीरता से यह लिख रहा हूँ। नीचे लिखा हरेक शब्द अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

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यदि भगवान के प्रति हमारा प्रेम निरंतर बढ़ रहा है, और हमें सच्चिदानंद की अनुभूतियाँ हो रही हैं, तो हम भगवत्-प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर हैं, अन्यथा नहीं।
यदि सांसारिक मान-सम्मान और प्रसिद्धि की कामना का कण मात्र भी अवशेष है, तो हम आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर रहे हैं।
अनेक प्रकार की वासनाओं और कामनाओं से घिरे रहना भी जड़ता और आध्यात्मिक अवनति की निशानी है।
सारी भागदौड़ और प्रयासों के पश्चात जब मैं स्वयं में स्थित होता हूँ, तो पाता हूँ कि जिसे में खोज रहा था, वह तो मैं स्वयं हूँ॥ .
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥७:१९॥"
बहुत जन्मों के अन्त में (किसी एक जन्म विशेष में) ज्ञान को प्राप्त होकर कि 'यह सब वासुदेव है' ज्ञानी भक्त मुझे प्राप्त होता है; ऐसा महात्मा अति दुर्लभ है॥
After many lives, at last the wise man realises Me as I am. A man so enlightened that he sees God everywhere is very difficult to find.
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मंगलमय शुभ कामनाएँ॥ ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
४ अप्रेल २०२४

भगवान "श्री स्वर्णाकर्षण भैरव" जी का मंदिर

 भगवान "श्री स्वर्णाकर्षण भैरव" जी का मंदिर

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"श्री स्वर्णाकर्षण भैरव" जी का एक ही मंदिर मैंने पूरे भारत में देखा है, जो राजस्थान के चुरू जिले के राजलदेसर नगर में है। अन्यत्र भी इस तरह का कोई मंदिर है तो मुझे नहीं पता।
ॐ पीतवर्णं चतुर्बाहुं त्रिनेत्रं पीतवाससम्।
अक्षयं स्वर्णमाणिक्य तड़ित पूरित पात्रकम्॥
अभिलसन् महाशूलं चामरं तोमरोद्वहम्।
सततं चिन्तये देवं भैरवं सर्वसिद्धिदम्॥
मंदारद्रुमकल्पमूलमहिते माणिक्य सिंहासने।
संविष्टोदरभिन्न चम्पकरुचा देव्या समालिंगितः॥
भक्तेभ्यः कररत्नपात्रभरितं स्वर्णददानो भृशं।
स्वर्णाकर्षण भैरवो विजयते स्वर्णाकृति: सर्वदा॥"
भावार्थ :--- श्रीस्वर्णाकर्षण भैरव जी मंदार (सफेद आक) के नीचे माणिक्य के सिंहासन पर बैठे हैं ! उनके वाम भाग में देवि उनसे समालिंगित हैं ! उनकी देह आभा पीली है तथा उन्होंने पीले ही वस्त्र धारण किये हैं ! उनके तीन नेत्र हैं ! चार बाहु हैं जिन्में उन्होंने स्वर्ण-माणिक्य से भरे हुए पात्र, महाशूल, चामर तथा तोमर को धारण कर रखा है ! वे अपने भक्तों को स्वर्ण देने के लिए तत्पर हैं। ऐसे सर्वसिद्धि प्रदाता श्री स्वर्णाकर्षण भैरव का मैं अपने हृदय में ध्यान व आह्वान करता हूं, उनकी शरण ग्रहण करता हूं ! आप मेरे दारिद्रय का नाश कर मुझे अक्षय अचल धन समृद्धि और स्वर्ण राशि प्रदान करे और मुझ पर अपनी कृपा द्रष्टि करें।
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राजस्थान के चुरू जिले के राजलदेसर नगर में स्थित "भद्रकाली सिद्धपीठ" में स्वर्णाकर्षण भैरव का मंदिर है। इस मंदिर के ठीक नीचे एक अन्य मंदिर "बटुक भैरव" और "काल भैरव" का है। इस मंदिर के ठीक सामने एक मंदिर "श्रीराधा-कृष्ण" का है, जिसके ऊपर "दक्षिणमुखी हनुमान जी" का मंदिर है। पास में ही एक विशाल "शिवालय" है, और एक भूमिगत मंदिर "भगवती भद्रकाली" का है। इस सिद्धपीठ की स्थापना अनंतश्रीविभूषित दण्डी स्वामी जोगेन्द्राश्रम जी महाराज ने की थी। वे एक सिद्ध संत हैं। इस समय इस सिद्धपीठ के पीठाधीश्वर स्वामी शिवेंद्रस्वरूपाश्रम जी महाराज हैं। यहाँ एक अन्य मौनी अवधूतस्वामी विश्वेन्द्राश्रम जी महाराज भी विराजते हैं। यह एक पूर्ण रूप से जागृत सिद्धपीठ है।
एक गौशाला भी यहाँ है, और सीमित मात्रा में आयुर्वेदिक औषधियों का वितरण भी होता है। समय समय पर अनेक तपस्वी दण्डी सन्यासी यहाँ पधारते रहते हैं। यह सिद्धपीठ मुख्यतः भगवती भद्रकाली को समर्पित है। ४ अप्रेल २०२४

Wednesday, 2 April 2025

ब्रह्म एक है, तो अपने संकल्प से अनेक कैसे हुआ? जीवात्मा, परमात्मा से भिन्न कैसे किस विधि से हुआ?

 (प्रश्न) ब्रह्म एक है, तो अपने संकल्प से अनेक कैसे हुआ? जीवात्मा, परमात्मा से भिन्न कैसे किस विधि से हुआ?

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(उत्तर) यह अगम्य विषय मेरी अत्यल्प व सीमित बुद्धि की समझ से परे का है, अतः कुछ भी नहीं कह सकता। लेकिन महात्माओं के मुख से सुना है कि कारण शरीर ही हमारे पुनर्जन्म, कर्मफलों की प्राप्ति, और सारे बंधनों का कारण है। इसीलिए उसे कारण शरीर कहते हैं। हमारा अंतःकरण (मन बुद्धि चित्त अहंकार), सूक्ष्म शरीर का भाग है। हमारी सोच विचार और भाव हमारे कर्म हैं जिनका सारा हिसाब कारण शरीर में रहता है। बहुत गहरे ध्यान यानि समाधि की अवस्था में हमारा संबंध कारण शरीर से टूटता रहता है, और कारण शरीर का पतन ही मोक्ष है, क्योंकि तब बंधन का कोई कारण नहीं रहता।
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सत्य का ज्ञान तो हमें भगवान की परम कृपा से ही हो सकता है, तब तक यह अनुमान ही सत्य लगता है। इस भौतिक विश्व में हम इस भौतिक देह में व्यक्त है, और यह भौतिक देह ही हमारी यहाँ पहिचान है।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
३ अप्रेल २०२३

Tuesday, 1 April 2025

समस्त नवविवाहिता व कुआंरी कन्याओं को गणगौर पर्व की शुभ कामनाएँ|

 समस्त नवविवाहिता व कुआंरी कन्याओं को गणगौर पर्व की शुभ कामनाएँ|

यह पर्व बहुत धूमधाम से प्रायः सारे राजस्थान और हरियाणा व मालवा के कुछ भागों में आज चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जा रहा है| इस दिन नवविवाहिताएँ अपने वैवाहिक जीवन की सफलता, और कुंआरी कन्याएँ अच्छे पति की प्राप्ति के लिए गौरी (पार्वती) जी की आराधना करती हैं|
होली के दूसरे दिन से ही यह आराधना आरम्भ हो जाती है और चैत्र शुक्ल तृतीया तक चलती है|
राजस्थानी प्रवासी चाहे वे कहीं भी हों, इस पर्व को अवश्य मनाते हैं| कल द्वितीया के दिन सिंजारे थे| इस दिन कन्याओं व नव विवाहिताओं को उनके माता पिता व भाई खूब लाड करते हैं, उनकी मन पसंद मिठाइयाँ आदि देते हैं और उनकी हर इच्छा यथासंभव पूरी करते हैं|
आज सायं गणगौर की सवारी राजस्थान के प्रायः प्रत्येक नगर में बहुत धूमधाम से निकलेगी|
पुनश्चः समस्त मातृशक्ति को शुभ कामनाएँ|
२ अप्रैल २०१४

"रामनवमी" पर सभी का अभिनंदन, बधाई व शुभ कामनायें.

 "रामनवमी" पर सभी का अभिनंदन, बधाई व शुभ कामनायें.

भगवान श्रीराम का ध्यान, उपासना व निज जीवन में उनका अवतरण/प्राकट्य ही भारतवर्ष की रक्षा और सत्य सनातन धर्म का पुनरोत्थान व वेश्वीकरण कर सकेगा| हम सब के हृदय में भगवाम श्रीराम का निरंतर जन्म हो, हम सब उन के हनुमान बनें, तभी हम स्वयं की और समाज व राष्ट्र की रक्षा कर पायेंगे|
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पुनि दसकंठ क्रुद्ध होइ छाँड़ी सक्ति प्रचंड। चली बिभीषन सन्मुख मनहुँ काल कर दंड॥
आवत देखि सक्ति अति घोरा। प्रनतारति भंजन पन मोरा॥
तुरत बिभीषन पाछें मेला। सन्मुख राम सहेउ सोइ सेला॥
लागि सक्ति मुरुछा कछु भई। प्रभु कृत खेल सुरन्ह बिकलई॥
देखि बिभीषन प्रभु श्रम पायो। गहि कर गदा क्रुद्ध होइ धायो॥
रे कुभाग्य सठ मंद कुबुद्धे। तैं सुर नर मुनि नाग बिरुद्धे॥
सादर सिव कहुँ सीस चढ़ाए। एक एक के कोटिन्ह पाए॥
तेहि कारन खल अब लगि बाँच्यो। अब तव कालु सीस पर नाच्यो॥
राम बिमुख सठ चहसि संपदा। अस कहि हनेसि माझ उर गदा॥
उर माझ गदा प्रहार घोर कठोर लागत महि पर्‌यो।
दस बदन सोनित स्रवत पुनि संभारि धायो रिस भर्‌यो॥
द्वौ भिरे अतिबल मल्लजुद्ध बिरुद्ध एकु एकहि हनै।
रघुबीर बल दर्पित बिभीषनु घालि नहिं ता कहुँ गनै॥
उमा बिभीषनु रावनहि सन्मुख चितव कि काउ। सो अब भिरत काल ज्यों श्री रघुबीर प्रभाउ॥
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रावण ने क्रोधित होकर प्रचण्ड शक्ति छोड़ी। वह विभीषण के सामने ऐसी चली जैसे काल (यमराज) का दण्ड हो॥
अत्यंत भयानक शक्ति को आती देख और यह विचार कर कि मेरा प्रण शरणागत के दुःख का नाश करना है, श्री रामजी ने तुरंत ही विभीषण को पीछे कर लिया और सामने होकर वह शक्ति स्वयं सह ली॥
शक्ति लगने से उन्हें कुछ मूर्छा हो गई। प्रभु ने तो यह लीला की, पर देवताओं को व्याकुलता हुई। प्रभु को श्रम (शारीरिक कष्ट) प्राप्त हुआ देखकर विभीषण क्रोधित हो हाथ में गदा लेकर दौड़े॥
(और बोले-) अरे अभागे! मूर्ख, नीच दुर्बुद्धि! तूने देवता, मनुष्य, मुनि, नाग सभी से विरोध किया। तूने आदर सहित शिवजी को सिर चढ़ाए। इसी से एक-एक के बदले में करोड़ों पाए॥
उसी कारण से अरे दुष्ट! तू अब तक बचा है, (किन्तु) अब काल तेरे सिर पर नाच रहा है। अरे मूर्ख! तू राम विमुख होकर सम्पत्ति (सुख) चाहता है? ऐसा कहकर विभीषण ने रावण की छाती के बीचों-बीच गदा मारी॥
बीच छाती में कठोर गदा की घोर और कठिन चोट लगते ही वह पृथ्वी पर गिर पड़ा। उसके दसों मुखों से रुधिर बहने लगा, वह अपने को फिर संभालकर क्रोध में भरा हुआ दौड़ा। दोनों अत्यंत बलवान्‌ योद्धा भिड़ गए और मल्लयुद्ध में एक-दूसरे के विरुद्ध होकर मारने लगे। श्री रघुवीर के बल से गर्वित विभीषण उसको (रावण जैसे जगद्विजयी योद्धा को) पासंग के बराबर भी नहीं समझते।
(शिवजी कहते हैं-) हे उमा! विभीषण क्या कभी रावण के सामने आँख उठाकर भी देख सकता था? परन्तु अब वही काल के समान उससे भिड़ रहा है। यह श्री रघुवीर का ही प्रभाव है॥)
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इस संसार में जैसी कुटिलता भरी पड़ी है, उस से मेरा मन भर गया है| अब यहाँ और रहने की इच्छा नहीं है, परमात्मा का साथ ही सर्वश्रेष्ठ है|
परमशिव का ध्यान ही हिमालय से भी बड़ी-बड़ी मेरी कमियों को दूर करेगा| मुझ अकिंचन में अदम्य भयहीन साहस व निरंतर अध्यवसाय की भावना शून्य है| मुझे लगता है कि आध्यात्म के नाम पर मैं अकर्मण्य बन गया हूँ और अपनी कमियों को बड़े बड़े सिद्धांतों के आवरण से ढक लिया है| शरणागति के भ्रम में अपने "अच्युत" स्वरूप को भूलकर "च्युत" हो गया हूँ| जैसा प्रमाद मुझ में छा गया है वह मेरे लिए मृत्यु है ... "प्रमादो वै मृत्युमहं ब्रवीमि"|
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हे परात्पर गुरु, आपके उपदेश मेरे जीवन में निरंतर परिलक्षित हों, आपकी पूर्णता और अनंतता ही मेरा जीवन हो, कहीं कोई भेद न हो| सब बंधनों व पाशों से मुझे मुक्त कर मेरी रक्षा करो| इन सब पाशों से मुझे इसी क्षण मुक्त करो| ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२ अप्रेल २०२०

हम लोग पश्चिमी प्रचार-तंत्र से प्रभावित हैं ---

 हम लोग पश्चिमी प्रचार-तंत्र से प्रभावित हैं। भारत की बिकी हुई टीवी समाचार मीडिया वही समाचार दिखा रही है, जैसा उसको अमेरिकी गुप्तचर संस्था CIA द्वारा निर्देशित किया जा रहा है। दो दिन पहले ही रूस ने घोषणा कर दी थी कि युद्ध का उसका पहला लक्ष्य पूरा हो गया है। अब दूसरा लक्ष्य भी वे शीघ्र ही प्राप्त कर लेंगे। कुछ महत्वपूर्ण बाते हैं ---

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(१) युद्ध के आरंभ होते ही उकराइन की वायुसेना और नौसेना को रूस ने पंगु कर के निष्क्रिय कर दिया था। आज तक उकराइन की वायुसेना के एक भी विमान ने युद्ध में भाग नहीं लिया है। इसी तरह उकराइन की नौसेना भी निष्क्रिय कर दी गई थी, और कुछ भी करने में असमर्थ है।
(२) उकराइन की ओर से लड़ने में वहाँ की नियमित थलसेना के वरिष्ठ अधिकारियों की कोई रुचि नहीं है। वे सब रूस द्वारा प्रशिक्षित हैं। उनको पता है कि वर्तमान युद्ध का एकमात्र कारण NATO द्वारा रूस की घेराबन्दी करने में उकराइन का दुरुपयोग है।
(३) उकराइन की ओर से -- अमेरिका द्वारा गठित नात्सी विचारधारा की अवैध "अजोव बटालियन", और विभिन्न देशों में NATO द्वारा प्रशिक्षित भाड़े के सिपाही और आतंकवादी लड़ रहे हैं। उकराइन अपने नागरिकों का ढाल की तरह उपयोग कर रहा है। उनकी महिलाओं और बच्चों को तो शरणार्थी बनाकर पोलेंड में भेज दिया गया है, और पुरुषों को सैनिक वेशभूषा पहिनाकर लड़ने को बाध्य किया जा रहा है।
(४) अजोव बटालियन की स्थापना उकराइनी सेना की एक नयी शाखा के तौर पर तब की गयी थी जब उकराइन के रूसी भाषियों का नरसंहार करने का निर्णय CIA, और उसके द्वारा अवैध तरीके से गठन की गई वर्तमान उकराइनी सरकार ने लिया। उकराइन की सेना एक professional army है, वह नरसंहार नहीं कर सकती। दूसरे देशों से CIA द्वारा प्रशिक्षित आतंकी गुण्डों को बुलाकर नयी बटालियनें बनायी गई थी, वे ही यूक्रेनी सेना के नाम पर लड़ रहे हैं।
(५) अजोव बटालियन ने रूसी भाषी जनसंख्या के दुधमुँहे बच्चों की सामूहिक हत्या की है जिसके प्रमाण रूस के पास हैं। उनमें से कई हत्यारों को पकड़ा गया है, और युद्ध समाप्त होते ही उन पर मुकदमा चलाया जाएगा।
(६) रूसी समाचार मीडिया पर पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगा दिया गया है। अतः उनका पक्ष कहीं भी नहीं सुना जाता।
(७) रूस ने अब तक क्यिव पर अधिकार करने का प्रयास ही नहीं किया। क्यिव के तीन ओर भयानक दलदल है, जिसे पार करने के पुल उकराइन ने उड़ा दिये थे। अब सिर्फ दक्षिण दिशा से ही क्यिव में प्रवेश किया जा सकता है, जहाँ रूसी सेना अभी तक गई ही नहीं है। एक रणनीति के अंतर्गत क्यिव के पास इरपिन नगर पर रूसी सेना ने अधिकार किया था जिससे लगे कि अगला लक्ष्य क्यिव है। अब अपनी रणनीति के अंतर्गत वहाँ से भी रूसी सेना पीछे हट गई है। उकराइन की सरकार यह झूठा प्रचार कर रही है कि उसकी सेना ने रूस को पीछे खदेड़ दिया है।
(८) अब रूस सिर्फ उन्हीं क्षेत्रों पर अपना अधिकार कर रहा है जहाँ रूसी-भाषी बहुसंख्यक हैं। जहाँ जहाँ उकराइनी-भाषी बहुसंख्यक हैं, उन क्षेत्रों से रूस पीछे हट रहा है।
(९) अमेरिका झूठे प्रचार द्वारा स्केंडेनेवियन देशों को भी NATO में लाने का प्रयास कर रहा है।
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भारत को अमेरिकी डॉलर की गुलामी से मुक्त हो जाना चाहिए। भारत की राजनीति में और प्रशासन में बहुत सारे अमेरिका-भक्त बैठे हुए हैं जो ऐसा नहीं होने दे रहे हैं। रूस और चीन दोनों ही अमेरिकी डॉलर के विरुद्ध हैं।
इस युद्ध में अमेरिका व NATO के देश हारेंगे। अंततः रूस विजयी होगा। इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
२ अप्रेल २०२२

हमारा यह शरीर ही नहीं, यह समस्त सृष्टि --- ऊर्जा व प्राण का घनीभूत स्पंदन और प्रवाह है ---

हमारा यह शरीर ही नहीं, यह समस्त सृष्टि --- ऊर्जा व प्राण का घनीभूत स्पंदन और प्रवाह है, जिसके पीछे परमात्मा का एक विचार है। हम उस परमात्मा के साथ पुनश्च एक हों, यही इस जीवन का उद्देश्य है। एकमात्र शाश्वत उपलब्धि और महत्व -- कुछ बनने का है, पाने का नहीं। पूर्णतः समर्पित होकर हम अपने मूल स्त्रोत परमात्मा के साथ एक हों, यही शाश्वत उपलब्धि है, जिसका महत्व है। अन्य सब कुछ महत्वहीन और नश्वर है। आध्यात्मिक दृष्टी से हम क्या बनते हैं, महत्व इसी का है, कुछ प्राप्त करने का नहीं। परमात्मा को प्राप्त करने की कामना भी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि परमात्मा तो पहले से ही प्राप्त है। अपने अहं को परमात्मा में पूर्णतः समर्पित करने की साधना निरंतर करते रहनी चाहिए। हमारा यह समर्पण हमें परमात्मा में मिलायेगा, कोई अन्य साधन नहीं।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२ अप्रेल २०२२

मनसा, वाचा, कर्मणा मैंने कभी किसी का कोई अहित किया हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ ---

मनसा, वाचा, कर्मणा मैंने कभी किसी का कोई अहित किया हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। जीवन के हर क्षेत्र में मैंने खूब मनमानी की है। प्राय सभी से मेरा व्यवहार बहुत ही गलत था। भगवान ने तो मुझे क्षमा कर दिया है, आप भी क्षमा कर दीजिए।
सारे संचित और प्रारब्ध कर्मफल भी एक न एक दिन कट ही जाएंगे।
महत्व वर्तमान क्षण का है। निमित्त मात्र रहते हुए भगवान को ही कर्ता बनाओ। जीवन में सब सही होगा। किसी भी तरह की किसी कामना या आकांक्षा का जन्म ही न हो।
जय सियाराम !!
ॐ ॐ ॐ !! २ अप्रेल २०२३

इस समय पूरे विश्व में ज्ञात-अज्ञात रूप से अच्छा-बुरा बहुत कुछ हो रहा है, और बहुत कुछ होने वाला है ---

इसकी झलक भी मुझे दिखाई दे रही है। अनेक नकारात्मक और सकारात्मक शक्तियाँ अपना प्रभाव दिखायेंगी। पूरी समष्टि के साथ हम एक हैं, कोई भी या कुछ भी हम से पृथक नहीं है। अगले तीन वर्षों में आप बहुत कुछ देखोगे, और बहुत कुछ सीखोगे। प्रकृति के निर्देशों का पालन करें जिनकी अब और उपेक्षा नहीं कर सकते।
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आज २१ मार्च को अपना सूर्य इस पृथ्वी की भूमध्य रेखा पर रहेगा, जिस कारण पूरी पृथ्वी पर महाबसंत विषुव (Equinox) होगा, यानि दिन और रात की अवधि लगभग बराबर रहेगी। पृथ्वी अपनी धुरी पर २३½° झुके हुए, सूर्य के चक्कर लगाती है, इस प्रकार वर्ष में एक बार पृथ्वी इस स्थिति में होती है जब वह सूर्य की ओर झुकी रहती है, व एक बार सूर्य से दूसरी ओर झुकी रहती है। वर्ष में दो बार ऐसी स्थिति आती है, जब पृथ्वी का झुकाव न सूर्य की ओर होता है, और न ही सूर्य से दूसरी ओर, बल्कि बीच में होता है। इस स्थिति को विषुव या Equinox कहा जाता है। इन दोनों तिथियों में दिन और रात की लंबाई लगभग बराबर होती है।
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पुराण पुरुष को नमन ---
"त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते॥
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
अर्थात् - आप ही आदिदेव और पुराणपुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं। आप ही सब को जानने वाले, जानने योग्य और परमधाम हैं। हे अनन्तरूप ! आपसे ही सम्पूर्ण संसार व्याप्त है।
आप वायु (अनाहतचक्र), यम (मूलाधारचक्र), अग्नि (मणिपुरचक्र), वरुण (स्वाधिष्ठानचक्र) , चन्द्रमा (विशुद्धिचक्र), प्रजापति (ब्रह्मा) (आज्ञाचक्र), और प्रपितामह (ब्रह्मा के भी कारण) (सहस्त्रारचक्र) हैं; आपके लिए सहस्र बार नमस्कार, नमस्कार है, पुन: आपको बारम्बार नमस्कार, नमस्कार है॥
हे अनन्तसार्मथ्य वाले भगवन्! आपके लिए अग्रत: और पृष्ठत: नमस्कार है, हे सर्वात्मन्! आपको सब ओर से नमस्कार है। आप अमित विक्रमशाली हैं और आप सबको व्याप्त किये हुए हैं, इससे आप सर्वरूप हैं॥
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सब का कल्याण हो, सब का जीवन कृतकृत्य और कृतार्थ हो।
कहीं कोई पृथकता का बोध न रहे। ॐ तत्सत्॥ ॐ ॐ ॐ॥
कृपा शंकर
२१ मार्च २०२५

जीसस क्राइस्ट एक काल्पनिक चरित्र हैं, जिनको सेंट पॉल नाम के एक पादरी ने परियोजित किया। जीसस क्राइस्ट की कल्पना सेंट पॉल के दिमाग की उपज थी जो बाद में एक सामाजिक/राजनीतिक व्यवस्था बन गयी

 (निम्न पोस्ट मैंने अपनी भावनाएं व्यक्त करने के लिए लिखी है, किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए नहीं। सनातन धर्म पर सब आघात करते हैं, व इसे नष्ट करना चाहते हैं। अपने धर्म की रक्षा मेरा दायित्व है। किसी को मेरी पोस्ट अच्छी लगे तो कॉपी/पेस्ट कर के रख लें)।

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(Re-Posted) मुझे बहुत लंबे समय से अनुभूत हो रहा है कि जीसस क्राइस्ट एक काल्पनिक चरित्र हैं, जिनको सेंट पॉल नाम के एक पादरी ने परियोजित किया। जीसस क्राइस्ट की कल्पना सेंट पॉल के दिमाग की उपज थी जो बाद में एक सामाजिक/राजनीतिक व्यवस्था बन गयी। ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं जिनसे किसी को आहत नहीं होना चाहिए| मुझे तो यही अनुभूत होता है कि जीसस क्राइस्ट का कभी जन्म ही नहीं हुआ था, और उनके बारे में लिखी गयी सारी कथाएँ काल्पनिक हैं| उनके जन्म का कोई प्रमाण नहीं है|
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यूरोप के शासकों ने अपने उपनिवेशों व साम्राज्य का विस्तार करने के लिए ईसाईयत का प्रयोग किया| उनकी सेना का अग्रिम अंग चर्च होता था| रोम के सम्राट कांस्टेंटाइन द ग्रेट ने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए ईसाईयत का सबसे आक्रामक प्रयोग किया| कांस्टेंटिनोपल यानि कुस्तुन्तुनिया उसी ने बसाया था जो आजकल इस्तांबूल के नाम से जाना जाता है| यूरोप का सब से बड़ा धर्मयुद्ध (ईसाइयों व मुसलमानों के मध्य) वहीं लड़ा गया था| कांस्टेंटाइन द ग्रेट एक सूर्योपासक था इसलिए उसी ने रविवार को छुट्टी की व्यवस्था की| उसी ने यह तय किया कि जीसस क्राइस्ट का जन्म २५ दिसंबर को हुआ, क्योंकी उन दिनों उत्तरी गोलार्ध में सबसे छोटा दिन २४ दिसंबर को होता था, और २५ दिसंबर को सबसे पहिला बड़ा दिन होता था| आश्चर्य की बात यह है कि ईसाई पंथ का यह सबसे बड़ा प्रचारक स्वयं ईसाई नहीं बल्कि एक सूर्योपासक था| अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए उसने ईसाईयत का उपयोग किया| मृत्यु शैय्या पर जब वह मर रहा था तब पादरियों ने बलात् उसका बपतिस्मा कर के उसे ईसाई बना दिया|
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जीसस क्राइस्ट के नाम पर ही युरोपीय साम्राज्य के विस्तार के लिए वेटिकन के आदेश से पुर्तगाल के वास्कोडिगामा को युरोप के पूर्व में, और स्पेन के कोलंबस को युरोप के पश्चिम में भेजा गया था| युरोप से गए ईसाईयों ने ही दोनों अमेरिकी महाद्वीपों के प्रायः सभी करोड़ों मनुष्यों की ह्त्या कर के वहाँ युरोपीय लोगों को बसा दिया| वहां के जो बचे-खुचे मूल निवासी थे उन्हें बड़ी भयानक यातनाएँ देकर ईसाई बना दिया गया| कालान्तर में यही काम ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड में किया गया|
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पुर्तगालियों ने यही काम गोवा में किया| गोवा में यदि कुछ हिन्दू बचे हैं तो वे भगवान की कृपा से ही बचे हैं| अंग्रेजों ने भी चाहा था सभी भारतवासियों की ह्त्या कर यहाँ सिर्फ अंग्रेजों को ही बसा देना| ब्रिटिश सरकार ने इस कार्य के लिए ब्रिगेडियर जनरल जेम्स जॉर्ज स्मिथ नील को नियुक्त किया था। उसने बिहार में, और उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में लाखों भारतीयों की हत्या करवाई थी। उसको २५ सितंबर १८५७ को लखनऊ में क्रांतिकारियों ने मार दिया। अंग्रेजों ने मद्रास के माउंट रोड़ पर उसकी मूर्ति लगवाई, और अंडमान द्वीप समूह में एक द्वीप का नाम उसके नाम पर रखा। ब्रिटिश फील्ड मार्शल हयूग हेनरी रोज जैसे दुर्दांत हत्यारे भी इसी काम के लिए भारत में भेजे गए थे। उसके नाम पर भी अंडमान के एक द्वीप का नाम रखा गया, जो वहाँ का मुख्यालय था। भगवान की यह भारत पर कृपा थी कि अंग्रेजों को इस कार्य में सफलता नहीं मिली|
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अंग्रेजों ने जब देखा कि वे सारे भारतियों को नहीं मार सकेंगे तो उन्होने भारत की शिक्षा व्यवस्था को ही नष्ट कर दिया। भारत में लाखों गुरुकुल थे, वे बंद करवा दिये गए, संस्कृत भाषा के प्रयोग पर प्रतिबंध लगवा दिया, और अङ्ग्रेज़ी पढ़ाई आरंभ करवाई व सरकारी स्कूलों में हिन्दू धर्म की पढ़ाई पर प्रतिबंध लगा दिया जो आज तक चालू है।
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मुस्लिम शासकों ने अत्याचार करना ईसाईयों से ही सीखा| ईसाइयों ने इतिहास में जितने अत्याचार और छल-कपट किया है, उतना तो ज्ञात इतिहास में किसी ने भी नहीं किया है। सार की बात यह है कि जीसस क्राइस्ट की कल्पना एक राजनीतिक उद्देश्य के लिए की गई थी, जिसका उद्देश्य युरोपीय साम्राज्य का विस्तार था।
२३ मार्च २०१९
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पुनश्च: --- यह सन १४९२ ई.की बात है| एक बार पुर्तगाल और स्पेन में लूट के माल को लेकर झगड़ा हो गया| दोनों ही देश दुर्दांत समुद्री डाकुओं के देश थे जिनका मुख्य काम ही समुद्रों में लूटपाट और ह्त्या करना होता था| दोनों ही देश कट्टर रोमन कैथोलोक ईसाई थे अतः मामला वेटिकन में उस समय के छठवें पोप के पास पहुँचा| लूट के माल का एक हिस्सा पोप के पास भी आता था| अतः पोप ने सुलह कराने के लिए एक फ़ॉर्मूला खोज निकाला और एक आदेश जारी कर दिया| ७ जून १४९४ को "Treaty of Tordesillas" के अंतर्गत इन्होने पृथ्वी को दो भागों में इस तरह बाँट लिया कि यूरोप से पश्चिमी भाग को स्पेन लूटेगा और पूर्वी भाग को पुर्तगाल|
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वास्कोडिगामा एक लुच्चा लफंगा बदमाश हत्यारा और समुद्री डाकू मात्र था, कोई वीर नाविक नहीं| अपने धर्मगुरु की आज्ञानुसार वह भारत को लूटने के उद्देश्य से आया था| कहते हैं कि उसने भारत की खोज की| भारत तो उसके बाप-दादों और उसके देश पुर्तगाल के अस्तित्व में आने से भी पहिले अस्तित्व में था| वर्तमान में तो पुर्तगाल कंगाल और दिवालिया होने की कगार पर है जब कि कभी लूटमार करते करते आधी पृथ्वी का मालिक हो गया था|
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ऐसे ही स्पेन का भी एक लुटेरा बदमाश हत्यारा डाकू था जिसका नाम कोलंबस था| अपने धर्मगुरु की आज्ञानुसार कोलंबस गया था अमेरिका को लूटने के लिए और वास्कोडीगामा आया था भारतवर्ष को लूटने के लिए| कोलंबस अमेरिका पहुंचा तब वहाँ की जनसंख्या दस करोड़ से ऊपर थी| कोलम्बस के पीछे पीछे स्पेन की डाकू सेना भी वहाँ पहुँच गयी| उन डाकुओं ने निर्दयता से वहाँ के दस करोड़ लोगों की ह्त्या कर दी और उनका धन लूट कर यूरोपियन लोगों को वहाँ बसा दिया| वहाँ के मूल निवासी जो करोड़ों में थे, वे कुछ हजार की संख्या में ही जीवित बचे| यूरोप इस तरह अमीर हो गया|
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कितनी दुष्ट राक्षसी सोच वाले वे लोग थे जो उन्होंने मान लिया कि सारा विश्व हमारा है जिसे लूट लो| कोलंबस सन १४९२ ई.में अमरीका पहुँचा, और सन १४९८ ई.में वास्कोडीगामा भारत पहुंचा| ये दोनों ही व्यक्ति नराधम थे, कोई महान नहीं जैसा कि हमें पढ़ाया जाता है|