Tuesday, 12 May 2020

हमें अपने कर्तव्य-कर्म तो नित्य करने ही पड़ेंगे ....

हमें अपने कर्तव्य-कर्म तो नित्य करने ही पड़ेंगे| यज्ञ, दान और तप हमारे नित्यकर्म हैं जिनके न करने पर उनका परिणाम भी भुगतना ही पड़ता है| अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करने पर कोई क्षमा नहीं है| भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं .....
"उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम्| सङ्करस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः||३:२४||"
अर्थात् यदि मैं कर्म न करूँ, तो ये समस्त लोक नष्ट हो जायेंगे; और मैं वर्णसंकर का कर्ता तथा इस प्रजा का हनन करने वाला होऊँगा||
भगवान कहते हैं .....
"यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्| यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्||१८:५||"
अर्थात् यज्ञ, दान और तपरूप कर्म त्याज्य नहीं है, किन्तु वह नि:सन्देह कर्तव्य है; यज्ञ, दान और तप ये मनीषियों (साधकों) को पवित्र करने वाले हैं|
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भगवान एक अति गोपनीय सूक्ष्म यज्ञ के बारे में बताते हैं .....
"अपाने जुह्वति प्राण प्राणेऽपानं तथाऽपरे| प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः||४:२९||"
अर्थात् अन्य (योगीजन) अपानवायु में प्राणवायु को हवन करते हैं, तथा प्राण में अपान की आहुति देते हैं, प्राण और अपान की गति को रोककर, वे प्राणायाम के ही समलक्ष्य समझने वाले होते हैं||
उपरोक्त एक गोपनीय विद्या है जो भगवान की विशेष कृपा से ही समझ में आती है| इसे कोई सिद्ध गुरु ही समझा सकता है| एक बार यह समझ में आ जाये तो यह भी नित्य कर्म हो जाती है|
इनके अतिरिक्त हंसयोग (अजपा-जप) यानि शिवयोग व नादानुसंधान आदि भी बहुत अधिक प्रभावशाली सहायक साधनायें हैं, जिनका नित्य अभ्यास करना चाहिए| ये भी हमारे नित्य कर्मों में हो|
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अपनी शंकाओं के निवारण हेतु संतों से मार्गदर्शन अवश्य प्राप्त करें| संत सदा जन-कल्याण की ही सोचते हैं, वे कभी गलत बात नहीं बताएँगे|
१० मई २०२०

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