सभी नवविवाहिता महिलाओं व कन्याओं और समस्त मातृशक्ति को गणगौर के पर्व पर अभिनन्दन और शुभ कामनाएँ|
यह त्यौहार पूरे राजस्थान, निकटवर्ती हरयाणा व मालवा के कुछ भागों में धूमधाम से मनाया जाता है| विभाजन से पूर्व सिंध के अमरकोट तक यह पर्व मनाया जाता था| जहाँ भी प्रवासी राजस्थानी हिन्दू रहते हैं उनकी मातृशक्ति यह पर्व मनाती है|
इसमें गौरी की साधना गणगौर के रूप में होती है| होली के दुसरे दिन से ही नवविवाहिताएँ अपने सौभाग्य की रक्षा के लिए व कुंआरी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए गणगौर की स्थापना कर मंगल गीतों के साथ आराधना आरम्भ कर देती हैं, और आज के दिन पूजा कर गणगौर का विसर्जन कर देती हैं|
पश्चिमी प्रभाव के कारण भारतीय संस्कृति धीरे धीरे विलुप्त और क्षीण हो रही है अतः जितने उत्साह और श्रद्धा से लोक पर्व और त्यौहार मनाये जाते थे उस संस्कृति का क्षरण और लोप हो रहा है| कुछ वर्षों बाद ये लोक पर्व इतिहास की पुस्तकों में ही सीमित हो जायेंगे|
कृपा शंकर
२२ मार्च २०१५
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