मृत्यु के देवता द्वारा मुझे एक अंतिम चेतावनी ---
जो कुछ भी मेरे द्वारा लिखा जाता है, उसका Source और Link सब ठाकुर जी हैं| जैसी उनसे प्रेरणा मिलती है, वैसा ही लिखा जाता है| जिनको source या link चाहिए, वे ईश्वर की साधना करें|
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मेरी कोई आकांक्षा, कामना या अपेक्षा नहीं है| पूर्व जन्मों में मुक्ति का उपाय नहीं किया, इसलिए संचित कर्मफलों को भोगने के लिए यह जन्म लेना पड़ा| मेरे साथ अच्छा या बुरा जो कुछ भी हुआ, वह मेरे कर्मों का फल था| अतः किसी से मुझे कोई शिकायत नहीं है|
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इस आयु में, भविष्य में मैं कभी भी अकेले यात्रा नहीं करना चाहूँगा| साथ में एक परिचारक भी होना चाहिए| अभी ६ मार्च २०२१ को यह भौतिक देह, मृत्यु को प्राप्त होते होते बची| जीवन में कभी भी मुझे कोई चक्कर नहीं आया, और कभी भी मैं बेहोश नहीं हुआ था| ६ मार्च को मुझे जयपुर से 'पोरबंदर-मुजफ्फरपुर एक्सप्रेस' से एक बहुत लंबी यात्रा करनी थी| वातानुकूलित प्रतीक्षालय में ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहा था| जब ट्रेन आई तब मैं अपने आरक्षित डिब्बे की ओर चल पड़ा| पता नहीं क्या हुआ, मैं अचानक ही बेहोश होकर गिर पड़ा| देखने वालों ने बताया कि मैं बेहोश होकर पहले तो बाईं ओर खड़ी हुई ट्रेन के एक डिब्बे से टकराया, फिर दाईं ओर प्लेटफॉर्म पर धड़ाम से गिर गया| सिर में हल्की चोट और खरोंच भी आई| मेरा मोबाइल, चश्मा, और सामान सब नीचे इधर-उधर बिखर गया|
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मेरे सौभाग्य से जोधपुर के एक सत्संगी परम शिवभक्त मित्र श्री महेश कुमार सोनी ने मुझे पहिचान लिया| वे वहाँ विद्युत वितरण निगम में एक्जेक्यूटिव इंजीनियर हैं| वे दौड़ते हुए आए, और मेरा हाथ पकड़कर, मेरा नाम लेकर, तीन-चार बार झकझोरते हुए मुझे ज़ोर-ज़ोर से आवाज दी| बेहोशी में मुझे लगा कि कोई मुझे पुकार रहा है| चौथी बार की आवाज में मैं खड़ा हो गया जैसे कुछ हुआ ही न हो| मैंने भी उन्हें पहिचान लिया| उन्होने मुझे पानी पिलाया और मेरा सारा सामान सुरक्षित रूप से लेकर मुझे आरक्षित वातानुकूलित डिब्बे की मेरी सीट पर लिटा दिया| उनका उपकार मैं मानता हूँ|
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कहते हैं -- "चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः" अर्थात् भगवान चन्द्रशेखर शिव की जिसने शरण ले रखी हो, यमराज उसका क्या बिगाड़ सकता है? मैं भगवान शिव की ही शरणागत था, इसलिये प्राणरक्षा हो गई| भगवान शिव ही प्राणरक्षक के रूप में आए थे| लेकिन मेरे लिए यह एक चेतावनी भी थी कि अब से अवशिष्ट जीवन परमशिव की ध्यान साधना में ही बिताना है|
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बापसी यात्रा में भी सत्संगी मित्रों ने मुझे जयपुर तक छोड़ दिया, जहाँ से मैं बस द्वारा यात्रा कर के सूरक्षित घर आ गया| जोधपुर के सत्संगी मित्र श्री नवीन कुमार डागा जी का भी उपकार मैं मानता हूँ| उन्होने किसी भी तरह का कोई कष्ट मुझे नहीं होने दिया| उपकार तो मैं अन्य भी अनेक सत्संगी मित्रों का मानता हूँ| लेकिन भगवान परमशिव ही थे जो इन सब रूपों में आए| जो भी समय व्यतीत हुआ वह अनेक दिव्य अनुभूतियों से परिपूर्ण था|
ॐ स्वस्ति | ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२२ मार्च २०२१
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॥चंद्रशेखरऽष्टकम्॥ ऋषि मार्कण्डेय कृत ---
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर पाहिमाम्।
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर रक्षमाम्॥
रत्नसानुशरासनं रजताद्रि शृङ्ग निकेतनम्।
सिन्जिनीकृत पन्नगेश्वर अच्युतानन सायकम्॥
क्षिप्र दग्ध पुरत्रयं त्रिदिवालयैरभि वन्दितम्।
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः॥१॥
पञ्च पादप पुष्प गंध पदाम्बुज द्वय शोभितम्।
भाललोचन जातपावक दग्ध मन्मथ विग्रहम्॥
भस्म दग्ध कलेवरं भव नाशनं भवमाव्ययम्।
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः॥२॥
मत्त वारण मुख्य चर्म कृतोत्तरीय मनोहरम्।
पङ्कजासन पद्मलोचन पूजिताङ्घ्रि सरोरुहम्॥
देव सिन्धु तरङ्गसीकर सिक्त शुभ्र जटाधरम्।
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः॥३॥
यक्षराजसखं भगाक्षहरं भुजङ्ग विभूषणम्।
शैलराजसुतापरिष्कृत चारु वाम कलेवरम्॥
क्ष्वेडनीलगलं परश्वधधारिणं मृगधारिणम्।
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः॥४॥
कुण्डलीकृत कुण्डलेश्वर कुण्डलं वृष वाहनम्।
नारदादिमुनीश्वरस्तुत वैभवं भुवनेश्वरम्॥
अन्धकान्धकमाश्रित अमरपादपं श्रमनान्तकम्।
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः॥५॥
भेषजं भवरोगिणं अखिला पदामपहारिणम्।
दक्षयज्ञविनाशनं त्रिगुणात्मकं त्रिविलोचनम्॥
भुक्तिमुक्ति फलप्रदं सकलाघसङ्घ निबर्हणं।
चन्द्रशेखर माश्रये मम किं करिष्यति वै यमः॥६॥
भक्तवत्सलमर्चितं निधिमक्षयं हरिदंबरं
सर्वभूतपतिं परात्परमप्रमेयमनुत्तमम् ।
सोमवारिदभूहुताशनसोमपानिलखाकृतिं
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः ॥७॥
विश्व सृष्टि विधायिनं पुनरेव पालन तत्परम्।
संहरन्तमपि प्रपञ्चमशेषलोकनिवासिनम्॥
क्रीडयन्तमहर्निशं गणनाथयूथसमन्वितम्।
चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः॥८॥
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर पाहिमाम्।
चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर चन्द्रशेखर राक्षमाम्॥
॥इतिश्री॥
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