Friday, 21 March 2025

अपने लक्ष्य परमात्मा को कभी भी एक क्षण के लिए भी मत भूलो ---

 अपने लक्ष्य परमात्मा को कभी भी एक क्षण के लिए भी मत भूलो ---

.
इस जीवन में मैनें बड़े बड़े महात्माओं के मुख से जितने भी सत्संग सुने हैं, और जितनी भी साधनानाएं की हैं, उन सब का सार यह है कि अपने लक्ष्य परमात्मा को कभी भी एक क्षण के लिए भी मत भूलो। हर समय उन्हें अपनी स्मृति में रखो। गुरु परंपरा में भी यही सीखा है। श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीक़ृष्ण भी यही कहते हैं --
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥८:७॥"
"अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः।
तस्याहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः॥८:१४॥"
भावार्थ --- अन्तकाल की भावना ही अन्य शरीर की प्राप्ति का कारण है, इसलिये तूँ हर समय मेरा स्मरण कर और शास्त्राज्ञानुसार स्वधर्मरूप युद्ध भी कर। इस प्रकार मुझ वासुदेव में जिस के मनबुद्धि अर्पित हैं, ऐसा तू मुझ में अर्पित किये हुए मनबुद्धि वाला होकर मुझको ही अर्थात् मेरे यथाचिन्तित स्वरूप को ही प्राप्त हो जायगा। इसमें संशय नहीं है।
हे पार्थ ! जो अनन्यचित्त वाला पुरुष मेरा स्मरण करता है, उस नित्ययुक्त योगी के लिए मैं सुलभ हूँ अर्थात् सहज ही प्राप्त हो जाता हूँ॥
.
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने "कूटस्थ" शब्द का प्रयोग अनेक बार किया है। कूटस्थ -- एक अनुभूति है। "ब्राह्मी स्थिति" भी एक अनुभूति है। जब इनकी अनुभूति हो जाये तब इन्हीं की चेतना में रहना चाहिए। बंद आँखों के अंधकार के पीछे हर समय भगवान अपने ज्योतिर्मय रूप में निरंतर रहते हैं। अब तो आँखें खुली हों या बंद हों, वे हर समय हमारे समक्ष रहें।
"जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे॥"
.
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२२ मार्च २०२४

No comments:

Post a Comment