वीर शैव मत ...........
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कर्णाटक में वीरशैव सम्प्रदाय के मतानुयायी बहुत अच्छी संख्या में हैं, जिनमें मेरे कुछ मित्र भी हैं| उन्हीं के लिए यह लेख लिख रहा हूँ| इस मत के सिद्धांतों की गहराई में न जाकर जो ऊपरी सतह है उसी की चर्चा कर रहा हूँ|
इस सम्प्रदाय का नाम "वीरशैव", भगवन शिव के गण 'वीरभद्र' के नाम पर पड़ा है जिन्होंने रेणुकाचार्य के रूप में अवतृत होकर वीरपीठ की स्थापना की और इस मत को प्रतिपादित किया|
स्कन्द पुराण के अंतर्गत शंकर संहिता और माहेश्वर खंड के केदारखंड के सप्तम अध्याय में दिए हुए सिद्धांत और साधन मार्ग ही वीर शैव मत द्वारा स्वीकार्य हैं|
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इस मत के अनुयायियों का मानना है कि ------ वीरभद्र, नंदी, भृंगी, वृषभ और कार्तिकेय ---- इन पाँचों ने पाँच आचार्यों के रूप में जन्म लेकर इस मत का प्रचार किया| इस मत के ये ही जगत्गुरू हैं| इन पाँच आचार्यों ने भारत में पाँच मठों की स्थापना की|
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(1) भगवान रेणुकाचार्य ने वीरपीठ की स्थापना कर्णाटक में भद्रा नदी के किनारे मलय पर्वत के निकट रम्भापुरी में की|
(2) भगवान दारुकाचार्य ने सद्धर्मपीठ की स्थापना उज्जैन में महाकाल मन्दिर के निकट की|
(3) भगवान एकोरामाराध्याचार्य ने वैराग्यपीठ की स्थापना हिमालय में केदारनाथ मंदिर के पास की|
(4) भगवान पंडिताराध्य ने सूर्यपीठ की स्थापना श्रीशैलम में मल्लिकार्जुन मंदिर के पास की|
(5) भगवान विश्वाराध्य ने ज्ञानपीठ की स्थापना वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर के पास की| इसे जंगमवाटिका या जंगमवाड़ी भी कहते हैं|
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वीरशैव मत की तीन शाखाएँ हैं ------- (1) लिंगायत, (2) लिंग्वंत, (३) जंगम|
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सन 1160 ई. में वीरशैव सम्प्रदाय के एक ब्राह्मण परिवार में आचार्य बासव का जन्म हुआ| उन्होंने भगवान शिव की गहन साधना की और भगवान शिव का साक्षात्कार किया| उन्होंने इसी सम्प्रदाय में एक और उप संप्रदाय --- जंगम -- की स्थापना की| जंगम उपसंप्रदाय में शिखा, यज्ञोपवीत, शिवलिंग, व रुद्राक्ष धारण और भस्म लेपन को अनिवार्य मानते हैं|
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वीरशैव के अतिरिक्त अन्य भी अनेक महान शैव परम्पराएँ हैं| सब के दर्शन अति गहन हैं| सब में गहन आध्यात्मिकता है अतः उन पर इन मंचों पर चर्चा करना असंभव है| कौन सी परंपरा किस के अनुकूल है इसका निर्णय तो स्वयं सृष्टिकर्ता परमात्मा या उनकी शक्ति माँ भगवती ही कर सकती है| शैवाचार्यों के अनुसार सभी शैवागमों के आचार्य दुर्वासा ऋषि हैं| इति|
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ॐ स्वस्ति ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ शिव शिव शिव शिव शिव !
कृपाशंकर
०६ जून २०१३
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कर्णाटक में वीरशैव सम्प्रदाय के मतानुयायी बहुत अच्छी संख्या में हैं, जिनमें मेरे कुछ मित्र भी हैं| उन्हीं के लिए यह लेख लिख रहा हूँ| इस मत के सिद्धांतों की गहराई में न जाकर जो ऊपरी सतह है उसी की चर्चा कर रहा हूँ|
इस सम्प्रदाय का नाम "वीरशैव", भगवन शिव के गण 'वीरभद्र' के नाम पर पड़ा है जिन्होंने रेणुकाचार्य के रूप में अवतृत होकर वीरपीठ की स्थापना की और इस मत को प्रतिपादित किया|
स्कन्द पुराण के अंतर्गत शंकर संहिता और माहेश्वर खंड के केदारखंड के सप्तम अध्याय में दिए हुए सिद्धांत और साधन मार्ग ही वीर शैव मत द्वारा स्वीकार्य हैं|
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इस मत के अनुयायियों का मानना है कि ------ वीरभद्र, नंदी, भृंगी, वृषभ और कार्तिकेय ---- इन पाँचों ने पाँच आचार्यों के रूप में जन्म लेकर इस मत का प्रचार किया| इस मत के ये ही जगत्गुरू हैं| इन पाँच आचार्यों ने भारत में पाँच मठों की स्थापना की|
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(1) भगवान रेणुकाचार्य ने वीरपीठ की स्थापना कर्णाटक में भद्रा नदी के किनारे मलय पर्वत के निकट रम्भापुरी में की|
(2) भगवान दारुकाचार्य ने सद्धर्मपीठ की स्थापना उज्जैन में महाकाल मन्दिर के निकट की|
(3) भगवान एकोरामाराध्याचार्य ने वैराग्यपीठ की स्थापना हिमालय में केदारनाथ मंदिर के पास की|
(4) भगवान पंडिताराध्य ने सूर्यपीठ की स्थापना श्रीशैलम में मल्लिकार्जुन मंदिर के पास की|
(5) भगवान विश्वाराध्य ने ज्ञानपीठ की स्थापना वाराणसी में विश्वनाथ मंदिर के पास की| इसे जंगमवाटिका या जंगमवाड़ी भी कहते हैं|
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वीरशैव मत की तीन शाखाएँ हैं ------- (1) लिंगायत, (2) लिंग्वंत, (३) जंगम|
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सन 1160 ई. में वीरशैव सम्प्रदाय के एक ब्राह्मण परिवार में आचार्य बासव का जन्म हुआ| उन्होंने भगवान शिव की गहन साधना की और भगवान शिव का साक्षात्कार किया| उन्होंने इसी सम्प्रदाय में एक और उप संप्रदाय --- जंगम -- की स्थापना की| जंगम उपसंप्रदाय में शिखा, यज्ञोपवीत, शिवलिंग, व रुद्राक्ष धारण और भस्म लेपन को अनिवार्य मानते हैं|
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वीरशैव के अतिरिक्त अन्य भी अनेक महान शैव परम्पराएँ हैं| सब के दर्शन अति गहन हैं| सब में गहन आध्यात्मिकता है अतः उन पर इन मंचों पर चर्चा करना असंभव है| कौन सी परंपरा किस के अनुकूल है इसका निर्णय तो स्वयं सृष्टिकर्ता परमात्मा या उनकी शक्ति माँ भगवती ही कर सकती है| शैवाचार्यों के अनुसार सभी शैवागमों के आचार्य दुर्वासा ऋषि हैं| इति|
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ॐ स्वस्ति ! ॐ नमः शिवाय ! ॐ शिव शिव शिव शिव शिव !
कृपाशंकर
०६ जून २०१३
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