परमात्मा के ध्यान में जो आनंद मिलता है वही वास्तविक सुख है .....
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सुख और दुःख ये दोनों ही मन की एक अवस्था है| ये अवचेतन मन द्वारा आनंद की खोज का प्रयास है| मेरा अब तक का अनुभव तो यही कहता है कि हम जिस सुख को इन्द्रियों में ढूँढ रहे हैं, अंततः वह दुखदायी है| हमें ध्यान साधना द्वारा स्वयं ही आनंदमय होना होगा| इन्द्रियों द्वारा प्राप्त सुख हमारे आत्मबल को क्षीण करता है| उससे बुद्धि भी क्षीण होती है, और किसी भी परिस्थिति का सामना करने की सामर्थ्य कम हो जाती है| एक आध्यात्मिक साधक के लिए यह उसे परमात्मा से विमुख करने वाला है| परमात्मा के ध्यान में जो आनंद मिलता है वही वास्तविक सुख है|
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सभी साधक अन्तर्मुखी साधना में समय अधिक से अधिक दें| साधना के नाम पर इन्द्रियों के मनोरंजन को विष के सामान त्याग दें, क्योंकि यह माया का एक धोखा है| परमात्मा से हमारा वही सम्बन्ध है जो जल की एक बूँद का महासागर से है| जल की बूँद का महासागर से वियोग ही दुःखदाई है|
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भगवान की पराभक्ति, और वेदांत व योग दर्शन की बड़ी बड़ी बातें सुनने में और चर्चा करने में बहुत मीठी और अमृत के समान लगती हैं| पर व्यवहारिक रूप से साधना पक्ष अति कठिन है| परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग ऐसा है जिसमें साधना तो स्वयं को ही करनी पड़ती है जो एक बार तो अत्यधिक कष्टमय परिश्रम है| गुरु तो मार्गदर्शन करते हैं, पर चलना तो स्वयं को ही पड़ता है| इसमें कोई लघुमार्ग यानि Short cut नहीं है| बाद में तो यह स्वभाव बन जाता है| प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठना, संध्या, नामजप, अष्टांग योग आदि में बहुत अधिक उत्साह और ऊर्जा चाहिए| कहीं हम साधना के स्थान पर आध्यात्मिक/धार्मिक मनोरंजन में न फँस जाएँ| अतः सतर्क रहें| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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कृपा शंकर
९ जून २०१७
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सुख और दुःख ये दोनों ही मन की एक अवस्था है| ये अवचेतन मन द्वारा आनंद की खोज का प्रयास है| मेरा अब तक का अनुभव तो यही कहता है कि हम जिस सुख को इन्द्रियों में ढूँढ रहे हैं, अंततः वह दुखदायी है| हमें ध्यान साधना द्वारा स्वयं ही आनंदमय होना होगा| इन्द्रियों द्वारा प्राप्त सुख हमारे आत्मबल को क्षीण करता है| उससे बुद्धि भी क्षीण होती है, और किसी भी परिस्थिति का सामना करने की सामर्थ्य कम हो जाती है| एक आध्यात्मिक साधक के लिए यह उसे परमात्मा से विमुख करने वाला है| परमात्मा के ध्यान में जो आनंद मिलता है वही वास्तविक सुख है|
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सभी साधक अन्तर्मुखी साधना में समय अधिक से अधिक दें| साधना के नाम पर इन्द्रियों के मनोरंजन को विष के सामान त्याग दें, क्योंकि यह माया का एक धोखा है| परमात्मा से हमारा वही सम्बन्ध है जो जल की एक बूँद का महासागर से है| जल की बूँद का महासागर से वियोग ही दुःखदाई है|
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भगवान की पराभक्ति, और वेदांत व योग दर्शन की बड़ी बड़ी बातें सुनने में और चर्चा करने में बहुत मीठी और अमृत के समान लगती हैं| पर व्यवहारिक रूप से साधना पक्ष अति कठिन है| परमात्मा की प्राप्ति का मार्ग ऐसा है जिसमें साधना तो स्वयं को ही करनी पड़ती है जो एक बार तो अत्यधिक कष्टमय परिश्रम है| गुरु तो मार्गदर्शन करते हैं, पर चलना तो स्वयं को ही पड़ता है| इसमें कोई लघुमार्ग यानि Short cut नहीं है| बाद में तो यह स्वभाव बन जाता है| प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठना, संध्या, नामजप, अष्टांग योग आदि में बहुत अधिक उत्साह और ऊर्जा चाहिए| कहीं हम साधना के स्थान पर आध्यात्मिक/धार्मिक मनोरंजन में न फँस जाएँ| अतः सतर्क रहें| ॐ तत्सत् | ॐ ॐ ॐ ||
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कृपा शंकर
९ जून २०१७
जप व ध्यान साधना के पश्चात मिलने वाली शान्ति और प्रेम की अनुभूति सबसे अधिक महत्वपूर्ण है| यह साधना का फल है| उस शान्ति का भरपूर आनंद लीजिये| उसका आनंद लिए बिना उठ जाना ऐसे ही है जैसे आपने एक दूध की बाल्टी भरी और उसको ठोकर मार कर चल दिए|
ReplyDeleteकर्ता होने का या कुछ भी होने का अभिमान ना हो| जब भी शान्ति और प्रेम की अनुभूति हो उसका पूरा अनुभव और आनंद लीजिये| ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||