हम भगवान की ओर अग्रसर हैं या नहीं? इस पर विचार करते हैं। मैं बहुत गंभीरता से यह लिख रहा हूँ। नीचे लिखा हरेक शब्द अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
.
यदि भगवान के प्रति हमारा प्रेम निरंतर बढ़ रहा है, और हमें सच्चिदानंद की अनुभूतियाँ हो रही हैं, तो हम भगवत्-प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर हैं, अन्यथा नहीं।
यदि सांसारिक मान-सम्मान और प्रसिद्धि की कामना का कण मात्र भी अवशेष है, तो हम आध्यात्मिक प्रगति नहीं कर रहे हैं।
अनेक प्रकार की वासनाओं और कामनाओं से घिरे रहना भी जड़ता और आध्यात्मिक अवनति की निशानी है।
सारी भागदौड़ और प्रयासों के पश्चात जब मैं स्वयं में स्थित होता हूँ, तो पाता हूँ कि जिसे में खोज रहा था, वह तो मैं स्वयं हूँ॥
.
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥७:१९॥"
बहुत जन्मों के अन्त में (किसी एक जन्म विशेष में) ज्ञान को प्राप्त होकर कि 'यह सब वासुदेव है' ज्ञानी भक्त मुझे प्राप्त होता है; ऐसा महात्मा अति दुर्लभ है॥
After many lives, at last the wise man realises Me as I am. A man so enlightened that he sees God everywhere is very difficult to find. .
मंगलमय शुभ कामनाएँ॥ ॐ स्वस्ति !! ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
४ अप्रेल २०२४
No comments:
Post a Comment