Thursday, 3 April 2025

भगवान "श्री स्वर्णाकर्षण भैरव" जी का मंदिर

 भगवान "श्री स्वर्णाकर्षण भैरव" जी का मंदिर

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"श्री स्वर्णाकर्षण भैरव" जी का एक ही मंदिर मैंने पूरे भारत में देखा है, जो राजस्थान के चुरू जिले के राजलदेसर नगर में है। अन्यत्र भी इस तरह का कोई मंदिर है तो मुझे नहीं पता।
ॐ पीतवर्णं चतुर्बाहुं त्रिनेत्रं पीतवाससम्।
अक्षयं स्वर्णमाणिक्य तड़ित पूरित पात्रकम्॥
अभिलसन् महाशूलं चामरं तोमरोद्वहम्।
सततं चिन्तये देवं भैरवं सर्वसिद्धिदम्॥
मंदारद्रुमकल्पमूलमहिते माणिक्य सिंहासने।
संविष्टोदरभिन्न चम्पकरुचा देव्या समालिंगितः॥
भक्तेभ्यः कररत्नपात्रभरितं स्वर्णददानो भृशं।
स्वर्णाकर्षण भैरवो विजयते स्वर्णाकृति: सर्वदा॥"
भावार्थ :--- श्रीस्वर्णाकर्षण भैरव जी मंदार (सफेद आक) के नीचे माणिक्य के सिंहासन पर बैठे हैं ! उनके वाम भाग में देवि उनसे समालिंगित हैं ! उनकी देह आभा पीली है तथा उन्होंने पीले ही वस्त्र धारण किये हैं ! उनके तीन नेत्र हैं ! चार बाहु हैं जिन्में उन्होंने स्वर्ण-माणिक्य से भरे हुए पात्र, महाशूल, चामर तथा तोमर को धारण कर रखा है ! वे अपने भक्तों को स्वर्ण देने के लिए तत्पर हैं। ऐसे सर्वसिद्धि प्रदाता श्री स्वर्णाकर्षण भैरव का मैं अपने हृदय में ध्यान व आह्वान करता हूं, उनकी शरण ग्रहण करता हूं ! आप मेरे दारिद्रय का नाश कर मुझे अक्षय अचल धन समृद्धि और स्वर्ण राशि प्रदान करे और मुझ पर अपनी कृपा द्रष्टि करें।
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राजस्थान के चुरू जिले के राजलदेसर नगर में स्थित "भद्रकाली सिद्धपीठ" में स्वर्णाकर्षण भैरव का मंदिर है। इस मंदिर के ठीक नीचे एक अन्य मंदिर "बटुक भैरव" और "काल भैरव" का है। इस मंदिर के ठीक सामने एक मंदिर "श्रीराधा-कृष्ण" का है, जिसके ऊपर "दक्षिणमुखी हनुमान जी" का मंदिर है। पास में ही एक विशाल "शिवालय" है, और एक भूमिगत मंदिर "भगवती भद्रकाली" का है। इस सिद्धपीठ की स्थापना अनंतश्रीविभूषित दण्डी स्वामी जोगेन्द्राश्रम जी महाराज ने की थी। वे एक सिद्ध संत हैं। इस समय इस सिद्धपीठ के पीठाधीश्वर स्वामी शिवेंद्रस्वरूपाश्रम जी महाराज हैं। यहाँ एक अन्य मौनी अवधूतस्वामी विश्वेन्द्राश्रम जी महाराज भी विराजते हैं। यह एक पूर्ण रूप से जागृत सिद्धपीठ है।
एक गौशाला भी यहाँ है, और सीमित मात्रा में आयुर्वेदिक औषधियों का वितरण भी होता है। समय समय पर अनेक तपस्वी दण्डी सन्यासी यहाँ पधारते रहते हैं। यह सिद्धपीठ मुख्यतः भगवती भद्रकाली को समर्पित है। ४ अप्रेल २०२४

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