Sunday, 30 March 2025

आत्म-साक्षात्कार (Self-Realization) ---

आत्म-साक्षात्कार (Self-Realization) ---
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भगवत्-प्राप्ति, भगवान का साक्षात्कार, आत्म-साक्षात्कार, व ईश्वर की प्राप्ति किसे कहते हैं? क्या भगवान आकाश से उतर कर आने वाले कोई हैं? क्या वे हमारे से पृथक हैं? किसी ने ईश्वर की प्रत्यक्ष अनुभूति की हो, वे ही उत्तर दें।
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मेरी अनुभूति तो यही है कि भगवान हम से पृथक नहीं हैं। हमें स्वयं को ही ईश्वर बनना पड़ता है। भगवान हामारे ही माध्यम से स्वयं को व्यक्त करते हैं। यही आत्म-साक्षात्कार है। यह एक ऐसी अनुभूति है जिसमें हम सब तरह की सीमितताओं से मुक्त होकर, असीम आनंद और असीम प्रेम (भक्ति) से भर जाते हैं। यह असीम प्रेम (भक्ति) और असीम आनंद ही आत्म-साक्षात्कार है, यही भगवत्-प्राप्ति है। यही हमारे जीवन का उद्देश्य है।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३१ मार्च २०२४

2 comments:

  1. Manna Lal
    आदरणीय Kripa Shankar Bawalia Mudgal जी , आपकी इस पोस्ट के लिये एक दोहा सटीक है -
    " सुनि समुझहिं अति मुदित मन ,
    मज्जहिं अति अनुराग ।।"
    अर्थात इस पोस्ट को पढकर , समझ कर पाठकगण अनुरागपूर्वक , प्रसन्नचित्त होकर मनन करेंगे और
    अपना कल्याण करेंगे ।

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  2. Manna Lal
    आदरणीय श्री Kripa Shankar Bawalia Mudgal जी , सादर प्रणाम ! आपने अपने प्रश्न का उत्तर लिख दिया है जिसे पढ़कर पाठकों को ईश्वरीय अनुभूति के बारे में सुंदर जानकारी मिलेगी और वे भी अपने अपने भीतर विराजमान ईश्वर की अनुभूति करने की जिज्ञासा लेकर उस गुरु की खोज करेंगें जो उन्हें अपने भीतर विराजमान ईश्वर की अनुभूति ( प्राप्ति ) की विधि बताए ।
    आपने लिखा है कि ईश्वर सर्वव्यापी सत्ता है जो हम सब के भीतर भी विराजमान है और हम अपने भीतर ईश्वरीय सत्ता की अनुभूति कर सकते हैं । आपने लिखा है कि ईश्वरीय सत्ता की अनुभूति की पहचान यह है कि जब हमें ईश्वरीय सत्ता की अनुभूति होती है तब हमारा हृदय आनन्द से भरता है क्योंकि आनन्द का गुण ईश्वर का गुण है -
    " ईश्वर अंश जीव अविनाशी ।
    चेतन अमल सहज सुख राशी ।।"
    ( ईश्वर सुख का भंडार है )
    तथा
    " व्यापकु एक ब्रह्म अविनाशी ।
    सत चेतन घन आनन्द राशी ।। "
    अर्थात ईश्वर का प्रमुख गुण " आनन्द " बताया गया है । अतः जब हम ईश्वर के निकट पहुंचेंगे या ईश्वर के संपर्क में आएंगे तब हमें आनन्द की अनुभूति होगी । प्रकृति के पांच तत्वों के अपने अपने अलग अलग स्वभाव व गुण हैं - पृथ्वी का गुण स्थूलता , जल का स्वभाव शीतलता , अग्नि का गुण ताप , हवा का गुण स्पर्श , आकाश का गुण रिक्तता है । जब हम जल के संपर्क में आते हैं तब हमें शीतलता की अनुभूति होती है , जब हम अग्नि के संपर्क में आते हैं तब हमें ताप की अनुभति होती है ।
    ईश्वर का एक नाम " परमानन्द " व " सच्चिदानन्द " भी है । अर्थात " आनन्द " या परमानन्द स्वभाव ईश्वर का है । अतः जब हम ईश्वर के संपर्क में आएंगे तब हमें " आनन्द " , परमानन्द की अनुभूति होगी । यही है ईश्वर की प्राप्ति ।
    आदरणीय Kripa Shankar Mudgal जी , आपने लिखा है कि ईश्वर की प्राप्ति हमें बाहर नहीं होगी , बल्कि ईश्वर की प्राप्ति हमें अपने भीतर ही होगी ।
    ईश्वर की सर्वत्र विद्यमानता को दूध व घी के उदाहरण से भी समझाया गया है कि दूध में घी विद्यमान है और घी को दूध में से प्राप्त करने की विधि अपनाकर घी प्राप्त होता है ।
    आपकी इस पोस्ट से पाठकों को प्रेरणा मिलेगी और वे अपने भीतर ही ईश्वर की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होंगें ।

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