एक बहुत महत्वपूर्ण बात आपको बताना चाहता हूँ, कृपया इसे गंभीरता से लें ---
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उठते-बैठते, चलते-फिरते हर समय, विशेषकर पूजा-पाठ, ध्यान-साधना के समय प्रयासपूर्वक अपनी ठुड्डी -- भूमि के समानान्तर रखें। इससे आपकी गर्दन सीधी रहेगी। गर्दन सीधी रहेगी तो मेरुदण्ड भी उन्नत रहेगा। इसका असर जादू का सा होगा। जो आध्यात्मिक साधना करते हैं, उनको इस मुद्रा में प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा और ध्यान में बड़ी सुगमता होगी। जो श्रीविद्या, और क्रियायोग की साधना करते हैं, वे इसे अपनी साधना में बड़ा सहायक पायेंगे।
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आप कर के देखिये। पद्मासन या सिद्धासन में खेचरी या अर्धखेचरी मुद्रा (शांभवी मुद्रा) में बैठिए और भ्रूमध्य में ध्यान कीजिये। ठुड्डी हर समय भूमि के समानान्तर रहे। आगे आपकी गुरु-परंपरा निश्चित रूप से आपकी सहायता करेगी। किसी गुरु-परंपरा से जुड़ना भी अति आवश्यक है।
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अधिक लिखने में असमर्थ हूँ। भौतिक स्वास्थ साथ नहीं दे रहा है। आत्मबल से ही यह दीपक प्रज्ज्वलित है। यह शरीर बड़ा धोखेबाज मित्र है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१५ मार्च २०२४
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