Sunday 9 January 2022

इस संसार में हम एक देवता की तरह रहें, नश्वर मनुष्य की तरह नहीं ---

 इस संसार में हम एक देवता की तरह रहें, नश्वर मनुष्य की तरह नहीं ---

.
हम जहाँ भी जाएँ, वहीं हमारे माध्यम से भगवान भी प्रत्यक्ष रूप से जायेंगे। हमारा अस्तित्व भगवान का अस्तित्व है, हमारा संकल्प भगवान का संकल्प है, और हमारे विचारों के पीछे भगवान की अनंत अथाह शक्ति है। भगवान का निरंतर स्मरण, उनके प्रति परमप्रेम और समर्पण -- यही हमारा स्वधर्म है, और यही सत्य-सनातन-धर्म है। सनातन धर्म कोई विचारधारा नहीं, एक महान परंपरा है, जो सृष्टि के आदि काल से है। जब भी जैसा भी समय मिले, एकांत में भगवान के सर्वाधिक कल्याणकारी, मंगलमय और प्रियतम रूप का खूब लम्बे समय तक गहनतम ध्यान करें। भगवान सर्वव्यापी और अनंत हैं, अतः हम उनकी सर्वव्यापी अनंतता पर ध्यान करें। हम यह नश्वर भौतिक देह नहीं हैं। हम भगवान की सर्वव्यापकता और अनंतता हैं। अपनी चेतना का विस्तार करें, और उसे भगवान की चेतना के साथ संयुक्त कर दें। भगवान स्वयं अनिर्वचनीय, नित्यनवीन, नित्यसजग, और शाश्वत आनंद हैं। आनंद का स्त्रोत प्रेम है। हम स्वयं परमप्रेममय बन जाएँ, व हमारी चेतना सर्वव्यापी और अनंत हो जाए। यह सबसे बड़ा योगदान है जो हम इस सृष्टि के रूपांतरण के लिए कर सकते हैं।
.
समष्टि के कल्याण की प्रार्थना, स्वयं के कल्याण की ही प्रार्थना है। सम्पूर्ण समष्टि ही हमारी देह है, यह नश्वर भौतिक देह नहीं। इस भौतिक देह के अनाहत-चक्र और आज्ञा-चक्र के मध्य में विशुद्धि-चक्र के सामने का स्थान एक अति सूक्ष्म चुम्बकीय क्षेत्र है। अपने दोनों हाथ जोड़कर, भ्रूमध्य को दृष्टिपथ में रखते हुए, उस चुम्बकीय क्षेत्र में अपनी हथेलियों का तीव्र घर्षण करने से हमारी अँगुलियों में एक दैवीय ऊर्जा उत्पन्न होती है। उस दैवीय ऊर्जा को अपनी अँगुलियों में एकत्र कर, अपने दोनों हाथ ऊपर की ओर उठाकर, ॐ का उच्चारण करते हुए सम्पूर्ण ब्रह्मांड में विस्तृत करते हुए छोड़ दें। वह ऊर्जा समष्टि का निश्चित रूप से कल्याण करती है। समष्टि का कल्याण ही हमारा कल्याण है, क्योंकि यह समष्टि ही हमारी वास्तविक देह है।
.
अपने विचारों को पवित्र और शुद्ध रखें। हमारे सारे संकल्प शिव-संकल्प हों। किसी के अनिष्ट की कामना न करें। किसी के अनिष्ट की कामना से हमारा स्वयं का ही अनिष्ट होता है। अपनी चेतना को निरंतर आज्ञा-चक्र से ऊपर रखें, और सहस्त्रार के मध्य में रखने की साधना करें। रात्री को सोने से पूर्व भगवान का गहनतम ध्यान कर के सोयें, और दिन का प्रारम्भ भी भगवान के ध्यान से करें। सारे दिन भगवान की स्मृति बनाए रखें। कोई हमारे बारे में क्या कहता है और क्या सोचता है इसकी चिंता न करें, क्योंकि महत्त्व इसी बात का है कि भगवान की दृष्टि में हम क्या हैं। जो उन्नत साधक हैं वे इस भौतिक देह और सूक्ष्म जगत की अनंतता से भी परे दहराकाश में परमशिव का ध्यान करें। यह एक अनुभूति है जो गुरु की परम कृपा से ही होती है, किसी को समझाई नहीं जा सकती। इस संसार में हम एक देवता हैं, नश्वर मनुष्य नहीं। हम जहाँ भी हैं, भगवान भी वहीं हैं। हमारा अस्तित्व भगवान का अस्तित्व है। हम भगवान के साथ एक हैं। हमारे साथ भगवान की अनंत अथाह शक्ति है।
"ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥"
"ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥" ॐ शांति शांति शांति॥
.
सभी को शुभ कामनाएँ और नमन ! ॐ तत्सत !
कृपा शंकर
९ जनवरी २०२२
.
यह पृथ्वी हमें पाकर सनाथ है. जहाँ भी हम हैं, वहीं भगवान हैं. देवता हमें देखकर तृप्त व आनंदित होते हैं. हम भगवान के साथ एक हैं. जहाँ देखो वहीं हमारे ठाकुर जी बिराजमान हैं. कोई अन्य है ही नहीं, मैं भी नहीं. जय हो!
🌹🙏🕉🕉🕉🌹🙏

No comments:

Post a Comment