Tuesday, 12 November 2019

भगवान परमशिव ही मेरा जीवन और उनसे विमुखता ही मेरी मृत्यु है .....

भगवान परमशिव ही मेरा जीवन और उनसे विमुखता ही मेरी मृत्यु है .....
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भगवान परमशिव की कृपा से ही मैं जीवित हूँ| मेरी सुख, शांति, सुरक्षा, जीवन और धर्म .... सब कुछ .... भगवान परमशिव हैं| मेरा एकमात्र संबंध भी उन्हीं से है, अन्य किसी से नहीं है| परमशिव में ही अमरता है, वहाँ कोई मृत्यु नहीं है| मृत्यु सिर्फ इस देह की चेतना में है|
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सांसारिकता से अब बहुत अधिक डर लगने लगा है| सांसारिकता ही महाभय है| परमात्मा की अनंतता में कोई भय नहीं है, क्योंकि वहाँ परमशिव की सत्ता है| परमशिव की अनुभूति ही मृत्यु-भय को नष्ट करती है| परमशिव ही मेरे ध्येय हैं, उनका ध्यान ही इस महाभय से मेरी रक्षा कर रहा है|
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गीता में भगवान कहते हैं .....
"नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते| स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्||२:४०||"
अर्थात इसमें क्रमनाश और प्रत्यवाय दोष नहीं है। इस धर्म (योग) का अल्प अभ्यास भी महान् भय से रक्षण करता है||
आरम्भका नाम अभिक्रम है इस कर्मयोगरूप मोक्षमार्ग में अभिक्रम का यानि आरम्भ का नाश नहीं होता| आरम्भका फल अनैकान्तिक (संशययुक्त) नहीं है| इसमें प्रत्यवाय (विपरीत फल) भी नहीं होता है| इस कर्मयोगरूप धर्म का थोड़ा सा भी अनुष्ठान (साधन) जन्ममरणरूप महान् संसारभय से रक्षा करता है|
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मेरी कर्मयोग की अवधारणा क्या है ? :----
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सामान्यतः घनीभूत प्राण चेतना (कुंडलिनी महाशक्ति) मूलाधार चक्र से जागृत होकर सब चक्रों को जागृत करती हुई सहस्त्रार में गुरु-तत्व तक जाकर बापस लौट आती है| परमशिव की अनुभूति ब्रह्मरंध्र से परे की अनंतता में होती है| सहस्त्रार से भी ऊपर एक श्वेत परम ज्योतिर्मय चक्र और है जो मुझे ध्यान में दिखाई देता है| उसके चारों ओर एक नीला और स्वर्णिम आवरण है| उस अति विराट श्वेत परम ज्योति के मध्य में एक पंचकोणीय नक्षत्र के रूप में पंचमुखी महादेव बिराजमान हैं| शिव पुराण में भी इनका वर्णन है| वे ही नारायण हैं, वे ही विष्णु हैं| वह श्वेत प्रकाश ही क्षीर-सागर है| उन पंचमुखी महादेव की अनंतता ही परमशिव है| उन से सम्मुखता ही जीवन है, और विमुखता मृत्यु है| वे ही मेरे जीवन और इष्ट देव हैं| उनका ध्यान और उनको निरंतर समर्पण ही मेरा कर्म है, और उस जागृत कुंडलिनी महाशक्ति का परमशिव से मिलन ही योग है| यही मेरा कर्मयोग है|
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वे भगवान परमशिव ही चन्द्रशेखर हैं जिन के आश्रय लेने वाले का यमराज कुछ नहीं बिगाड़ सकता......
रत्नसानुशरासनं रजताद्रिशृङ्गनिकेतनं| सिञ्जिनीकृतपन्नगेश्वरमच्युताननसायकम||
क्षिप्रदग्धपुरत्रयं त्रिदिवालयैरभिवन्दितं| चन्द्रशेखरमाश्रये मम किं करिष्यति वै यमः||
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ॐ तत्सत्! महादेव महादेव महादेव ! ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ! ॐ ॐ ॐ!!
कृपा शंकर
२४ अक्तूबर २०१९

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