Wednesday, 4 March 2020

शैतान एक वास्तविकता है जिसका मैं साक्षी हूँ .....

शैतान एक वास्तविकता है जिसका मैं साक्षी हूँ (The Devil exists, This is my testimony)
.
शैतान (Satan या Devil) की परिकल्पना इब्राहिमी (Abrahamic) मजहबों (यहूदी, इस्लाम और ईसाईयत) की है| भारत में उत्पन्न किसी भी मत में शैतान की परिकल्पना नहीं है| शैतान .... इब्राहिमी मज़हबों में सबसे दुष्ट हस्ती का नाम है, जो दुनियाँ की सारी बुराई का प्रतीक है| इन मज़हबों में ईश्वर को सारी अच्छाई प्रदान की जाती है और बुराई शैतान को| इब्राहिमी मतों के अनुसार शैतान पहले ईश्वर का एक फ़रिश्ता था, जिसने ईश्वर से ग़द्दारी की और इसके बदले ईश्वर ने उसे स्वर्ग से निकाल दिया| शैतान पृथ्वी पर मानवों को पाप के लिये उकसाता है|
.
हिन्दू परम्परा में शैतान जैसे किसी व्यक्ति का कोई अस्तित्व नहीं है, क्योंकि हिन्दू मान्यता कहती है कि मनुष्य अज्ञान वश पाप करता है जो दुःखों की सृष्टि करते हैं| मनुष्य का यह अज्ञान ही शैतान है जो हमारे लोभ और अहंकार के रूप में व्यक्त होता है| वास्तव में हमारा लोभ और अहंकार ही शैतान है जो हमारी सब बुराइयों और सब पापों का कारण है|
.
जिस तरह से दैवीय जगत होता है वैसे ही आसुरी और पैशाचिक जगत भी होते हैं जो हमारे जीवन पर निरंतर प्रभाव डालते रहते हैं| जैसे देवता हमारी सहायता करते हैं वैसे ही असुर भी निरंतर हमारे ऊपर अधिकार कर हमें बुराई की और धकेलने का प्रयास करते रहते हैं| कई बार हम ऐसे गलत कार्य कर बैठते हैं जिनका हमें स्वयं को भी विश्वास नहीं होता कि हमारे रहते हुए भी ऐसा क्यों हुआ| हमें पता भी नहीं चलता कि कब किसी आसुरी शक्ति ने हमें अपना उपकरण बना कर हमारा प्रयोग या उपयोग कर लिया|
.
मैंने स्पष्ट रूप से एक दैवीय जगत को भी स्पष्ट अनुभूत किया है और एक अति शक्तिशाली आसुरी जगत को भी| सूक्ष्म जगत में कई बड़े बड़े शक्तिशाली असुर हैं जिनसे भगवान ही हमारी रक्षा कर सकते हैं| जिन मनुष्यों को हम पापी या दुष्ट कहते हैं वे तो शैतान यानि आसुरी जगत के शिकार हैं, इसमें उनका क्या दोष? हम स्वयं आसुरी प्रभाव से पूर्णतः मुक्त होकर ही उनकी सहायता कर सकते हैं|
ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ ||
कृपा शंकर

1 comment:

  1. क्या लिखूँ और क्या न लिखूँ? किसी के बारे में लिखने के लिए कुछ तो दूरी होनी चाहिए| पर जो निकटतम से भी अधिक निकट है, उस के बारे में अब लिखना बड़ा कठिन होता जा रहा है| पिछले अनेक वर्षों से मैं भगवान की भक्ति के ऊपर लिखता आ रहा हूँ| पर अब स्थिति बदल गई है| भगवान के बारे में सोचते ही भाव-विह्वल हो कर उनके प्रेमरस में स्वतः ही डूब जाता हूँ| आँखें आंसुओं से भर जाती हैं और कई बार भाव-समाधि भी लग जाती है| अतः लिखना कठिनतर होता जा रहा है| जैसी प्रभु की इच्छा|
    ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ !!
    कृपा शंकर
    १७ फरवरी २०२०

    ReplyDelete