Monday, 12 March 2018

खाटूश्यामजी का मेला ---

खाटूश्यामजी का मेला ...,
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राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में भरने वाले अनेक प्रसिद्ध मेलों में ये तीन मेले तो पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं .... खाटूश्यामजी, सालासर बालाजी और राणी सती जी|
इनमें पूरे भारत से हज़ारों श्रद्धालु आते हैं|
खाटूश्याम जी का मेला इस वर्ष 20 मार्च तक का है| अभी से हज़ारों श्रद्धालु पदयात्री हाथों में ध्वजरूपी निशान लिए खाटू मार्ग पर अग्रसर हैं, इनकी संख्या शीघ्र ही लाखों में पहुँच जायेगी| मेला वैसे तो 15 मार्च से आरम्भ होगा पर अभी से लगभग आरम्भ हो ही चुका है| एकादशी वाले दिन यानि 19 मार्च को तो पैर रखने को भी स्थान नहीं मिलेगा| क्षेत्र कि सारी धर्मशालाएं और अतिथि भवन भर चुके हैं| रात्रि जागरण और भजन-कीर्तन खूब हो रहे हैं|
यह मेला भक्ति भाव को ही नहीं बल्कि इस क्षेत्र के विभिन्न लोकनृत्यों, संगीत तथा कलाओं को भी प्रदर्शित करता हे|
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भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित खाटूश्यामजी का मंदिर ..... सीकर से 65कि.मी. दूर खाटू गाँव में स्थित है| इसका इतिहास महाभारत कालीन है|
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इतिहासकार पंडित झाबरमल्ल शर्मा के अनुसार सन् 1679 में औरंगजेब की सेना ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया था| इस मंदिर की रक्षा के लिए उस समय अनेक राजपूतों ने अपना प्राणोत्सर्ग किया था|
उसके बाद एक बार फिर मुग़ल बादशाह फर्रूखशीयर ने अपनी मुग़ल सेना को लेकर मंदिर को ध्वस्त किया था जिसका वर्णन कुछ वर्षों पूर्व 'राजस्थान पत्रिका' नामक समाचार पत्र में 'नगर परिक्रमा' शीर्षक के अंतर्गत छपे स्तम्भ के अनेक लेखों में विस्तृत रूप से छपा था| पर वह कहीं भी पुस्तक के रूप में आज तक नहीं छपा है| इस युद्ध में राजपूत सेनाओं के साथ ब्राह्मणों ने भी शस्त्र उठाये और युद्ध किया था| मंदिर के महंत मंगलदास और उनके सेवक सुन्दरदास भंडारी के सर कट गए पर उनके धड मुग़ल सेनाओं से लड़ते रहे जिनका विकराल रूप देखकर मुग़ल सेना भाग खडी हुई| फर्रूखशीयर ने उन धडों से स्वयं को गाफिल बताते हुए माफी मांगी तब जाकर वे धड शांत हुए|
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राजस्थान की संस्कृति और भक्ति इस मेले में जीवंत हो उठती है| लाखों श्रद्धालुओं का भक्तिभाव देखना हो यह मेला अवश्य देखना चाहिए| जय श्रीश्याम !
१३ मार्च २०१६

(Amended/Re-posted). आज और कल खाटू श्याम जी (जिला सीकर, राजस्थान) का मेला है। लाखों श्रद्धालू तो पहुँच गए हैं, लाखों और आ रहे हैं। जिधर देखो उधर ही हर मार्ग पर ध्वज लिए श्रद्धालु खाटू नगर की ओर बढ़ रहे हैं। आस्था का ज्वार उमड़ रहा है। आसपास के अन्य श्रद्धा केन्द्रों -- शाकम्भरी माता, जीण माता, सालासर बालाजी, और राणी सती जी मंदिर, आदि पर भी भीड़ बढने लगी है| श्रद्धालुओं की आस्था को नमन !
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क्षेत्र कि सारी धर्मशालाएं और अतिथि भवन भर चुके हैं। रात्रि-जागरण और भजन-कीर्तन खूब हो रहे हैं। यह मेला भक्ति-भाव को ही नहीं, बल्कि इस क्षेत्र के विभिन्न लोकनृत्यों, संगीत तथा कलाओं को भी प्रदर्शित करता हे। भगवान श्रीकृष्ण और उनके परम भक्त बर्बरीक को समर्पित खाटूश्यामजी का मंदिर - सीकर से ६५ कि.मी. दूर खाटू गाँव में स्थित है। इसका इतिहास महाभारत कालीन है।
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इतिहासकार पंडित झाबरमल्ल शर्मा के अनुसार सन् १६७९ में औरंगजेब की सेना ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया था। इस मंदिर की रक्षा के लिए उस समय अनेक राजपूतों ने अपना प्राणोत्सर्ग किया था।
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उसके बाद एक बार फिर मुग़ल बादशाह फर्रूखशीयर ने अपनी मुग़ल सेना को लेकर मंदिर को ध्वस्त किया था, जिसका वर्णन कुछ वर्षों पूर्व 'राजस्थान पत्रिका' नामक समाचार पत्र में 'नगर परिक्रमा' शीर्षक के अंतर्गत छपे स्तम्भ के अनेक लेखों में विस्तृत रूप से छपा था। इस युद्ध में राजपूत सेनाओं के साथ ब्राह्मणों ने भी शस्त्र उठाये और युद्ध किया था। मंदिर के महंत मंगलदास और उनके सेवक सुन्दरदास भंडारी के सिर कट गए, पर उनके धड मुग़ल सेनाओं से लड़ते रहे; जिनका विकराल रूप देखकर मुग़ल सेना भाग खडी हुई। फर्रूखशीयर ने उन धडों से स्वयं को गाफिल बताते हुए माफी मांगी तब जाकर वे धड़ शांत हुए। उस जमाने में एक कहावत पड़ी थी -- "शीश कटा खाटू लड़े महंत मंगलदास।"
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राजस्थान की संस्कृति और भक्ति इस मेले में जीवंत हो उठती है। लाखों श्रद्धालुओं का भक्तिभाव देखना हो यह मेला अवश्य देखना चाहिए। जय श्रीश्याम!
कृपा शंकर
१४ मार्च २०२२

1 comment:

  1. पूर्वी राजस्थान में खाटू-श्याम जी का वार्षिक मेला -- फाल्गुन शुक्ल द्वादसी (इस वर्ष २१-०३-२०२४ ई.) को है। लेकिन मेला दस दिन पहले यानि तृतीया से ही भरना आरंभ हो जाता है। एकादशी के दिन लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ प्रतिवर्ष एकत्र होती है। द्वादशी के दिन दर्शन करने के उपरांत भीड़ छंटने लगती है। लेकिन फिर भी हजारों श्रद्धालु श्याम जी के साथ होली खेलने के लिए धुलन्डी तक के लिए रुक जाते हैं।
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    विगत कुछ वर्षों में खाटू-श्याम जी की मान्यता पूरे भारतवर्ष में बहुत अधिक बढ़ी है। इस समय पूर्वी राजस्थान में निम्न दो मंदिरों की मान्यता सबसे अधिक है --
    (१) खाटू श्यामजी, (२) सालासर बालाजी।
    दोनों ही पूर्ण रूप से जागृत मंदिर हैं, जहाँ खूब भक्तिभाव है। सालासर बालाजी का तो पूरा हरियाणा प्रदेश भक्त है। हर महीने असंख्य श्रद्धालु हरियाणा से आते हैं।
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    जिन्होंने खाटू श्याम जी का मेला नहीं देखा, उन्हें जीवन में कम से कम एक बार तो देखना ही चाहिए। पूरे राजस्थान की संस्कृति यहाँ जीवंत हो उठती है। महीनों पूर्व किसी धर्मशाला में एक कमरा आरक्षित करवा लें, और पूरे मेले के समय वहीं रह कर भक्ति करें।
    इस क्षेत्र में अन्य भी अनेक प्रसिद्ध तीर्थ और देवालय हैं। तीर्थराज लोहार्गल बहुत प्रसिद्ध है। यहाँ के सूर्यकुंड में स्नान से पांडवों के लोहे के शस्त्र गल गए थे। यहाँ मालकेतु पर्वत की पूजा साक्षात विष्णुरूप में होती है। भाद्रपद माह में पर्वत की परिक्रमा होती है। इस पर्वत के चारों ओर सात स्थानों पर झरने और जलकुंड हैं। पास में ही शाकंभरी देवी का प्रसिद्ध मंदिर है।
    जीण माता का प्रसिद्ध मंदिर भी दूर नहीं है। पास में ही हर्ष की पहाड़ी पर प्रसिद्ध हर्षनाथ शिव मंदिर है, जिस के ३६ मील के घेरे में लगभग ९०० शिव मंदिरों के मुगलों द्वारा ध्वस्त किए गए अवशेष हैं।
    जो श्रद्धालु खाटू आते हैं, उनमें से बहुत बड़ी संख्या में श्रद्धालु झुंझुनूं के श्री राणीसती जी के मंदिर भी दर्शनार्थ आते हैं।
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    पूरा शेखावाटी क्षेत्र ही तपोभूमि और तीर्थ है। यहाँ खेजड़ी (शमी वृक्ष) के पवित्र वृक्ष चारों ओर खूब लगे हैं। इन्हीं के कारण यज्ञ की लकड़ी को समिधा कहते हैं। मोर और काले हिरण भी इस क्षेत्र में खूब देखने को मिल जाएँगे। जिस भूमि में काले हिरण (श्याम मृग) निर्भय होकर विचरण करते हैं, उस भूमि को पवित्र माना जाता है। इति॥
    कृपा शंकर
    १९ मार्च २०२४

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