ध्यान :--- कूटस्थ में परमात्मा की अनंतता का ध्यान करते हुए, अपनी चेतना का जितना अधिक विस्तार कर सकते हो, उतना अधिक विस्तार करो। पूरी सृष्टि तुम्हारी चेतना में है, और तुम समस्त सृष्टि में हो। सारे आकाशों की सीमाओं को तोड़ दो। कुछ भी तुम्हारे से परे नहीं है। लाखों किलोमीटर ऊपर उठ जाओ, और भी ऊपर उठ जाओ, ऊपर उठते रहो, जितना ऊपर उठ सकते हो, उतना ऊपर उठ जाओ। चेतना की जो उच्चतम सीमा है, वह परमशिव है, और वह परमशिव तुम स्वयं हो।
.
सच्चिदानंद परमशिव परमात्मा के साथ एकत्व का भाव चेतना की उच्चतम अवस्था है। उसी चेतना में स्थिर रहने का अभ्यास करते रहो। यही उपासना और साधना है, यही कर्मयोग है, यही भक्ति है। अपने नित्य अभ्यास के अन्त में कुछ समय तक शान्त बैठे रहिये, आनंद से भर जाओगे। प्रातः काल ब्राह्ममुहूर्त में इस तरह उठो जैसे जगन्माता की गोद से उठ रहे हो। प्रातःकालीन दिनचर्या से निवृत होकर परमात्मा में स्वयं को विलीन कर दो। पूरे दिन यही भाव रखो कि आपको निमित्त-मात्र बनाकर परमशिव स्वयं आपके माध्यम से सारे काम कर रहे हैं।
.
उस चेतना में मैं स्वयं को गुरु-चरणों में अर्पित कर रहा हूँ, जो मुझ अकिंचन से ये शब्द लिखवा रहे हैं। सब कुछ उन्हीं का है और सब कुछ वे ही हैं। मैं और मेरा कुछ भी नहीं है। मुझ अकिंचन को आता-जाता कुछ भी नहीं है, कोई गुण मुझ में नहीं है। सब ओर से निराश होकर जब से भगवान के श्रीचरणों में नतमस्तक हुआ, तभी से उन्होनें मुझे अपना लिया। सारी महिमा उन्हीं की है।
ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२७ जून २०२१
No comments:
Post a Comment