आज पुण्यश्लोका, प्रातःस्मरणीया, एक महानतम भारतीय नारी योद्धा व शासिका, भगवान शिव की मानसपुत्री, इंदौर नगर जी स्थापिका, मालवा की महारानी, अहिल्याबाई होल्कर की २९७वीं जयंती है। इनका जन्म ३१ मई १७२५ को महाराष्ट्र के चांडी (वर्तमान अहमदनगर) गांव में हुआ था। इन्होने विपरीततम परिस्थितियों में महानतम कार्य किए। इनका यश और कीर्ति सदा अमर रहेंगे।
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इनका विवाह मल्हार राव होलकर के बेटे खाण्डेराव के साथ हुआ था जिनकी शीघ्र ही मृत्यु हो गयी। इनके एकमात्र पुत्र मालेराव भी जीवित नहीं रहे। इनकी एकमात्र कन्या बालविधवा हो गयी और पति की चिता में कूद कर स्वयं के प्राण त्याग दिए। अपने श्वसुर मल्हारराव होलकर की म्रत्यु के समय ये मात्र ३१ वर्ष की थीं, और राज्य संभाला। अपने दुर्जन सम्बन्धियों व कुछ सामंतों के षडयंत्रों और तमाम शोक व कष्टों का दृढ़तापूर्वक सामना करते हुए इन्होने अपने राज्य का कुशल संचालन किया।
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अपना राज्य इन्होने भगवान शिव को अर्पित कर दिया और उनकी सेविका और पुत्री के रूप में राज्य का कुशल प्रबंध किया। राजधानी इंदौर उन्हीं की बसाई हुई नगरी है। जीवन के सब शोक व दु:खों को शिव जी के चरणों में अर्पित कर उनके एक उपकरण के रूप में निमित्त मात्र बन कर जन-कल्याण के व्रत का पालन करती रही। उनके सुशासन से इंदौर राज्य ऐश्वर्य और समृद्धि से भरपूर हो गया।
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अहिल्याबाई ने सोमनाथ मंदिर के भग्नावशेषों के बिलकुल निकट एक और सोमनाथ मंदिर बनवाकर प्राण प्रतिष्ठा करा कर पूजा अर्चना और सुरक्षा आदि की व्यवस्था की। वाराणसी का वर्तमान विश्वनाथ मन्दिर, गयाधाम का विष्णुपाद मंदिर आदि जो विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा विध्वंश हो चुके थे, इन्हीं के प्रयासों से पुनर्निर्मित हुए। हज़ारों दीन दुखियारे बीमार और साधू इन्हें करुणामयी माता कह कर पुकारते थे। सेंकडों असहाय लोगों और साधू-संतों को अन्न वस्त्र का दान इनकी नित्य की दिनचर्या थी। पूरे भारतवर्ष में अनगिनत मंदिर, सडकें, धर्मशालाएं, अन्नक्षेत्र, सदावर्त, तालाब और नदियों के किनारे पक्के घाट इन्होने बनवाए। नर्मदा तट पर पता नहीं कितने तीर्थों को वे जागृत कर गईं। महेश्वर तीर्थ इन्हीं के प्रयासों से धर्म और विद्द्या का केंद्र बना। अमरकंटक में यात्री निवास और जबलपुर में स्फटिक पहाड़ के ऊपर श्वेत शिवलिंग स्थापित कराया। परिक्रमाकारियों के लिए व्यवस्थाएं कीं। ओम्कारेश्वर में ब्राह्मण पुजारियों की नियुक्ति की। वहां प्रतिदिन पंद्रह हज़ार आठ सौ मिटटी के शिवलिंग बना कर पूजे जाते थे, फिर उनका विसर्जन कर दिया जाता था। बदरीनाथ के मार्ग में एक गाँव आता है जिसका नाम गोचर है। वहाँ की भूमि को खरीद कर उन्होंने गायों के चरने के लिए छोड़ दिया।
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पेशवा बाजीराव ने मालवा क्षेत्र का राज्य मल्हार राव होलकर को दे दिया था, जहाँ की महारानी परम शिवभक्त उनकी पुत्रवधू अहिल्याबाई बनी। हमें गर्व है ऐसी महान शासिका पर। इति॥ ॐ नमः शिवाय !!
कृपा शंकर
३१ मई २०२२
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