Monday, 23 June 2025

भगवान को पाने की पात्रता (qualification for God-realization) क्या है? ---

भगवान को पाने की पात्रता (qualification for God-realization) क्या है? ---
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गीता में भगवान कहते हैं --
"बुद्ध्या विशुद्धया युक्तो धृत्याऽऽत्मानं नियम्य च।
शब्दादीन् विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युदस्य च॥१८:५१॥"
"विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानसः।
ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः॥१८:५२॥"
"अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम् ।
विमुच्य निर्ममः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते॥१८:५३॥"
"ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति।
समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम्॥१८:५४॥"
"भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः।
ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम्॥१८:५५॥"
"सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रयः।
मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम्॥१८:५६॥"
"चेतसा सर्वकर्माणि मयि संन्यस्य मत्परः।
बुद्धियोगमुपाश्रित्य मच्चित्तः सततं भव॥१८:५७॥"
"मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।
अथ चेत्त्वमहङ्कारान्न श्रोष्यसि विनङ्क्ष्यसि॥१८:५८॥"
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इनके अर्थ का स्वाध्याय, मनन और निदिध्यासन आप स्वयं करें। किसी ब्रह्मनिष्ठ, श्रौत्रीय, सिद्ध आचार्य के सान्निध्य में गहन उपासना भी करनी होगी, तभी हरिःकृपा से यह संभव हो पाएगा।
ॐ तत्सत् ! ॐ स्वस्ति !
कृपा शंकर
२३ जून २०२२

अहंकार और ब्रह्मभाव में क्या अंतर है? --- .

 अहंकार और ब्रह्मभाव में क्या अंतर है? ---

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हम परमात्मा के अंश, परमात्मा के अमृतपुत्र, और सच्चिदानंद के साथ एक हैं। यह होते हुए भी स्वयं को यह शरीर समझते हैं, यही हमारा अहंकार है।
शरीर के धर्म हैं -- भूख, प्यास, सर्दी, गर्मी आदि। प्राणों का धर्म है -- बल आदि। मन का धर्म -- है राग-द्वेष, मद यानि घमंड आदि। चित्त का धर्म है -- वासनाएँ आदि। इन सब को अपना समझना अहंकार है।
'अहं' केवल सर्वव्यापि 'आत्म-तत्व' का नाम है जिसे हम नहीं समझते इसलिए अपने शरीर, मन और बुद्धि आदि को ही हम स्वयं मान लेते हैं। यही अहंकार है।
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कूटस्थ-चैतन्य यानि ब्राह्मी-चेतना से युक्त जब कोई महात्मा - "शिवोSहम् शिवोSहम् अहम् ब्रह्मास्मि" कहता है, तब यह उसकी अहंकार की यात्रा यानि कोई ego trip नहीं है। यह उसका वास्तविक अंतर्भाव है। अहं ब्रह्मास्मि' यानि मैं ब्रह्म हूँ, यह कहना कोई अहंकार नहीं है। अहंकार है स्वयं को यह देह, मन, और बुद्धि समझ लेना।
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आत्मा का धर्म है ... परमात्मा के प्रति अभीप्सा और परम प्रेम। यही हमारा स्वधर्म है। परमात्मा की सर्वव्यापकता के साथ एक होकर कह सकते हैं -- शिवोंहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि॥
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यह अनुभूति का विषय है, बुद्धि का नहीं। आप सब निजात्माओं को मेरा नमन।
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
२३ जून २०२२

त्रिभंग मुद्रा ---

 त्रिभंग मुद्रा ---

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भगवान श्रीकृष्ण की जहाँ भी आराधना होती है, उनका विग्रह "त्रिभंग मुद्रा" में होता है। इसे "त्रिभंग मुरारी मुद्रा" भी कहते हैं। इसके पीछे एक बहुत बड़ा रहस्य है। तीन -चार वर्ष पूर्व मैंने इस विषय पर एक लेख भी लिखा था, लेकिन मुझे उस लेख से बिलकुल भी संतुष्टि नहीं मिली थी। दुबारा फिर लिखने की इच्छा थी, पर कभी लिख नहीं पाया। अब और लिख भी नहीं पाऊँगा। मैंने मुंडकोपनिषद, दुर्गासप्तशती, देवीअथर्वशीर्ष, और कुछ अन्य ग्रन्थों के संदर्भ भी दिये थे। यह अज्ञान की तीन ग्रंथियों -- ब्रह्मग्रंथि, विष्णुग्रंथि, और रुद्रग्रंथि के भेदन का प्रतीक है, जो क्रमशः मूलाधारचक्र, अनाहतचक्र और आज्ञाचक्र में होती हैं। नवार्ण -मंत्र का जप, और षटचक्रों में भागवत मंत्र का जप भी एक विशेष गोपनीय विधि से इसमें होता है। इसका ज्ञान कई महात्माओं को होता है, लेकिन वे इसकी चर्चा अपनी गुरु-परंपरा से बाहर नहीं करते।
इस लेख से हो सकता है साधकों में कुछ जिज्ञासा जगे, और वे इस विषय पर स्वाध्याय और सत्संग द्वारा ज्ञान प्राप्त करे। सभी को मंगलमय शुभ कामनाएँ और नमन!!
ॐ तत्सत्
कृपा शंकर
२३ जून २०२२

अंतःस्फोट (Implosion) से पाँच अरबपतियों की मूर्खतापूर्ण दुःखद मृत्यु ---

 अंतःस्फोट (Implosion) से पाँच अरबपतियों की मूर्खतापूर्ण दुःखद मृत्यु ---

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समुद्र की गहराइयों में जब नीचे उतरते हैं तो प्रति १० मीटर की गहराई पर "१ किलोग्राम सेंटीमीटर स्क्वेयर" दबाव बढ़ जाता है। फिर सूर्य की किरणें भी इससे अधिक नीचे नहीं जा सकतीं। नीचे अंधकार ही अंधकार और भयंकर ठंड होती है। ऐसे में करोड़ों रुपये खर्च कर, निज प्राणों को संकट में डाल कर, लगभग 4 किलोमीटर नीचे डूबे हुए "टाइटेनिक" नाम के जहाज के मलबे को देखने जाना कोई Adventure नहीं, बल्कि मूर्खता का काम Misadventure ही है।
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दशकों पूर्व नेशनल ज्योग्राफिक संस्था ने रोबॉट्स भेजकर बहुत स्पष्ट और शानदार चित्र टाइटेनिक के मलवे के लिए थे जो उनकी पत्रिका में भी छपे थे। वे चित्र मैंने भी दशकों तक संभाल कर रखे थे। अब पता नहीं कहाँ गये।
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युद्ध में काम आने वाली पण्डुब्बियों का Pressure Hull अधिक से अधिक ५०० मीटर तक की गहराई तक जाने योग्य ही बनाया जाता है। इससे नीचे पनडुब्बियाँ नहीं जातीं, अन्यथा पानी के दबाव से अंतःस्फोट हो जाएगा और पनडुब्बी तो डूबेगी ही, सारे लोग भी मर जाएँगे। लेकिन यह एक विशेष पनडुब्बी थी जो चार किलोमीटर की गहराई तक जा सकती थी। इसमें विशेष उपकरणों की सहायता से कुछ मलवा दिखा कर बापस ले आते।
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किसी भी विस्फोट में जब मलवा बाहर की ओर जाता है, उसे Explosion कहते हैं। जब मलवा भीतर की ओर आता है उसे Implosion कहते हैं। यह विशेष यात्री पनडुब्बी, पानी के दबाव से Implode हुई और चारों अरबपति यात्री और पनडुब्बी का मालिक जो कप्तान और गाइड भी था, मारे गये। यह उनकी कर्मानुसार गति थी।
२३ जून २०२३