Tuesday, 3 June 2025

तन समर्पित, मन समर्पित, तुझको अपनापन समर्पित ---

 तन समर्पित, मन समर्पित, तुझको अपनापन समर्पित ---

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जब समर्पण में कमी होती है तभी आध्यात्मिक साधना में बहुत अधिक विक्षेप आते हैं। इस समय अब तक के जन्मों की सारी कमियाँ निकल कर सामने आ रही हैं। अब तक पता नहीं वे कहाँ छिपी हुई थीं। एक तरह की उथल-पुथल जीवन में चल रही है। अब तक के अच्छे-बुरे सभी कर्मफलों ने जीवन में उत्पात मचा रखा है। अच्छे-बुरे सब कर्मफलों से मुक्त होना पड़ेगा, और कोई उपाय नहीं है।
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माँ तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन
किन्तु इतना कर रहा फिर भी निवेदन
थाल में लाऊँ सजाकर भाल जब भी
कर दया स्वीकार लेना यह समर्पण
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ जून २०२३

सृष्टिकर्ता परमात्मा से जुड़ कर ही इस सृष्टि की सबसे बड़ी सेवा हम कर सकते हैं।

सृष्टिकर्ता परमात्मा से जुड़ कर ही इस सृष्टि की सबसे बड़ी सेवा हम कर सकते हैं। स्वयं में उनको निरंतर व्यक्त करें। कमर को सदा सीधी रखते हुए खेचरी/अर्ध-खेचरी/शांभवी मुद्रा में बैठें, और भ्रूमध्य की ओर अपने नेत्रों के गोलकों को स्थिर कर कूटस्थ सूर्यमण्डल में पुरुषोत्तम का ध्यान करें।

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जब भी समय मिले तब गीता के १५वें अध्याय "पुरुषोत्तम योग" का स्वाध्याय करें और उसके आरंभ के ऊर्ध्वमूल वाले श्लोकों को समझते हुए तदानुसार ऊर्ध्वमूल में ही ध्यान करते हुए अपनी चेतना का अनंत में विस्तार करें।
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मैं पूर्ण सत्यनिष्ठा से यह कह रहा हूँ कि गीता के स्वाध्याय से मेरे सारे संशय दूर हुए हैं, और अनेक रहस्य अनावृत हुए हैं। ज्ञान, भक्ति और कर्म -- इन तीनों विषयों को भगवान श्रीकृष्ण ने बहुत अच्छी तरह समझाया है।
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हमारा निवास आनंद-सिंधु के मध्य हैं, अब कभी प्यासे नहीं रहेंगे।
हरिः ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ जून २०२२

मैं आपको प्यार करता हूँ, आप को उसे स्वीकार करना ही पड़ेगा ---

 मैं आपको प्यार करता हूँ, आप को उसे स्वीकार करना ही पड़ेगा ---

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आप मेरा अस्तित्व हैं। आप ही यह मैं बने हुए हो, आपको सब पता है, फिर भी मैं स्वभाव-वश बार-बार यही कहता हूँ कि मैं आपको प्यार करता हूँ। आप स्वयं ही यह 'मैं' बन कर स्वयं को प्रेम कर रहे हो, और आप स्वयं ही गुरु रूप में स्वयं के यानि मेरे समक्ष हो। आप ही यह मैं बन कर इन पंक्तियों को लिख रहे हो। यह भेद ही आपकी लीला है। आपकी इन लीलाओं को मैं समझ गया हूँ। अब आप और छिप नहीं सकते।
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(१) जब भी आनंद की जरा सी भी अनुभूति हो, भगवान को पधारने के लिए धन्यवाद दो। भगवान इन आनंद की अनुभूतियों के रूप में ही आते हैं।
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(२) जीवन को मधुर और सरल बनाओ, व भगवान की उधार उतारने के लिए भगवान को अपना कीमती समय दो। यह समय उधार में उन्हीं से मिला हुआ है। भगवान की उपासना और स्मरण द्वारा हम भगवान की उधार ही उतार रहे होते हैं। जीवन में जो भी अनावश्यक है, उसे त्याग दो।
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(३) भगवान ने सदा साथ दिया है, वे हमें कभी भी छोड़ नहीं सकते। दुःख में, सुख में वे सदा हमारे साथ हैं। निज जीवन का हरेक क्षण उन्हीं को समर्पित है। वे ही यह 'मैं' बनाकर सारा कार्य कर रहे हैं। इन आँखों से वे ही देख रहे हैं, इन पैरों से वे ही चल रहे हैं। वे ही ये साँसें ले रहे हैं, वे ही सर्वस्व हैं। मेरा अस्तित्व -- भगवान का अस्तित्व है। मैं हूँ, यही उनकी उपस्थिती का सबसे बड़ा प्रमाण है। आपका गीता में दिया हुआ यह आदेश इस जीवन में चरितार्थ हो --
"तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥८:७॥"
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(४) हे प्रभु, आप शांत और सौम्य रूप में ही मेरे समक्ष रहो। अपनी इस उग्रता, क्रोध और अशांति का प्रदर्शन और कहीं जाकर करो। मेरे समक्ष तो बिलकुल भी नहीं। आपका वास्तविक स्वरूप ही मुझ में व्यक्त हो। यह उपासना भी आप ही कीजिये, चारों ओर छाए हुए असत्य का अंधकार भी आप ही दूर कीजिये। आप स्वयं ही सत्य हैं। जहां आप हैं, वहाँ कोई अंधकार हो ही नहीं सकता। आपका प्रकाश, आपकी ज्योति, और आपका अस्तित्व यह मैं ही हूँ।
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(५) और कुछ भी नहीं है। जो कुछ भी है वह आप ही हो। आप ही सर्वस्व हो।
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥७:१९॥"
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और कहने को इस समय और कुछ भी नहीं है। बाद में जब भी आपकी इच्छा हो, मुझे माध्यम यानि एक निमित्त मात्र बनाकर स्वयं को व्यक्त करते रहना। यह मैं बन कर आप स्वयं अपनी ओर चलते रहो। मैं आपको प्यार करता हूँ, आपको उसे स्वीकार करना ही पड़ेगा।
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हरिः ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३ जून २०२२

कैसे निर्णय करें कि कौन साधु, संत या महात्मा है? .....

 कैसे निर्णय करें कि कौन साधु, संत या महात्मा है? .....

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किसी भी आचार्य, साधू या संत का स्वयं का आचरण कैसा है, और उनके अनुयायी आध्यात्मिक रूप से कितने उन्नत हैं? यही मापदंड है उनकी महत्ता का| किसी के पास जाते ही भगवान के प्रति अपने आप ही भक्ति जागृत हो जाये, सुषुम्ना नाड़ी चैतन्य हो जाये और शांति मिले, तो वह व्यक्ति निश्चित रूप से एक महात्मा है|
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यदि किसी की कथनी और करनी में अंतर है यानि जो कहता कुछ है और करता कुछ और है, जिसमें लोभ और अहंकार भरा हुआ है, वह साधु नहीं हो सकता| साधू-संत .... पवित्रात्मा, परोपकारी, सदाचारी, त्यागी, बुद्धिमान, समभावी, भयमुक्त, विद्वान और ईश्वरभक्त होते हैं| साधू-संतों की तपस्या से ही समाज में कुछ भलाई है| साधु-संत जहाँ भी रहते हैं, वह भूमि पवित्र हो जाती है| उनका सम्मान और सेवा करना हमारा धर्म है|
कृपा शंकर
३ जून २०२०

उपदेशों का कोई अंत नहीं है, दूसरों के पीछे इधर-उधर कितनी भी भागदौड़ करो, कुछ भी नहीं मिलने वाला है ---

 उपदेशों का कोई अंत नहीं है, दूसरों के पीछे इधर-उधर कितनी भी भागदौड़ करो, कुछ भी नहीं मिलने वाला है ---

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भारत में जन्म लिया है, भारत ही हमारी पुण्यभूमि और कर्मभूमि है। भारत की अस्मिता और सनातन संस्कृति पर हमें गर्व है। जो भी कार्य करेंगे, वह राष्ट्रहित में ही करेंगे। भगवान श्रीराम और भगवान श्रीकृष्ण हमारे आराध्य और परम आदर्श हैं। उन्हीं का अनुसरण करेंगे। आगे का मार्गदर्शन निश्चित रूप से स्वतः ही मिलेगा। साथ उन्हीं का करें जो परमात्मा के प्रति हमारे प्रेम में वृद्धि करे। कुसंग का त्याग करें। मानस में इष्टदेव की छवि निरंतर अपने समक्ष रखें और जब भी समय मिले उनका ध्यान करें।
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शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आर्थिक, और आध्यात्मिक --- हर तरह से शक्तिशाली बनें। किसी भी तरह की कोई कमजोरी न हो। निज जीवन में परमात्मा को व्यक्त करने का सदा प्रयास करें। जो भी होगा वह अच्छा ही होगा। शुभ कामनाएँ। भारत माता की जय॥
कृपा शंकर
३ जून २०२०