सारा जगत ब्रह्ममय यानि प्राण और ऊर्जा का स्पंदन है, जिसका निरंतर विस्तार हो रहा है। सारी सृष्टि ही परमशिव है। भगवान विष्णु स्वयं ही यह विश्व बन गए हैं। सारी सृष्टि विभिन्न आवृतियों पर ऊर्जा का स्पंदन है, जो प्राण से चैतन्य है। वह अनंत विस्तार और उससे भी परे ज्योतिर्मय ब्रह्म के रूप में परमशिव हैं, वे ही मेरे उपास्य हैं। "सियाराम मय सब जग जानी करहुं प्रणाम जोरि जुग पानी॥" "ॐ विश्वं विष्णु:-वषट्कारो भूत-भव्य-भवत- प्रभुः।"
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"ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु । सह वीर्यं करवावहै । तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥"
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
३१ मई २०२२
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