Thursday, 13 February 2020

विदेशी संस्कृति क्यों और कैसे हावी हुई हमारे देश में .....

विदेशी संस्कृति क्यों और कैसे हावी हुई हमारे देश में .....
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सन 1858 ई.में Indian Education Act बनाया गया जिसका प्रारूप लोर्ड मैकाले ने तैयार किया था| उससे पहले उसने भारत की शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था| उससे पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत की शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी| अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W.Litnar और दूसरा था Thomas Munro, दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था|
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यह सन 1823 ई.के आसपास की बात है| Litnar , जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है, और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100 % साक्षरता है| उस समय भारत में इतनी साक्षरता थी|
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मैकाले का स्पष्ट कहना था कि भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी| तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब वे इस देश के विश्वविद्यालयों से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे| मैकाले का कहना था कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले उसे पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इस देश को बौद्धिक रूप से जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी|
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इसलिए उसने सबसे पहले '' गुरुकुलों को गैरकानूनी '' घोषित किया,
जब गुरुकुल गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज की तरफ से होती थी वह गैरकानूनी हो गयी|
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फिर ''संस्कृत को गैरकानूनी घोषित'' किया गया|
अँगरेज़ अधिकारियों ने पूरे भारतवर्ष में घूम घूम कर सारे गुरुकुलों को नष्ट कर दिया, उनमे आग लगा दी गयी और उसमे पढ़ाने वाले ब्राह्मण गुरुओं को मारा-पीटा और उनका धन छीन कर जेल में डाला| ब्राह्मणों को इतना दरिद्र बना दिया कि वे अपने बच्चों को पढ़ाने में भी असमर्थ हो गए| उनके ग्रन्थ जला दिए गये| आज जो भी शास्त्र बचे हैं वे वे ही हैं जिनको ब्राह्मणों ने रट रट कर याद रखा था|
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1850 तक इस देश में 7 लाख 32 हजार गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे 7 लाख 50 हजार| हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल था| ये जो गुरुकुल होते थे वे सब के सब आज की भाषा में Higher Learning Institute हुआ करते थे उन सबमे 18 विषय पढाये जाते थे| ये गुरुकुल समाज के लोग मिल कर चलाते थे न कि राजा, महाराजा| इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी|
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इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर सिर्फ अंग्रेजी शिक्षा को ही कानूनी घोषित किया गया| कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया| उस समय इसे फ्री स्कूल कहा जाता था| इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने के यूनिवर्सिटियाँ आज भी इस देश में हैं|
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मैकाले ने अपने पिता को एक पत्र लिखा था जो बहुत प्रसिद्ध पत्र है| उसमें उसने लिखा कि इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे| उन्हें अपने देश, अपनी संस्कृति, और अपनी परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा| उनको अपनी भाषा और अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे| जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी|
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उस समय लिखी गयी उसकी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है| उस कानून की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा भी बोलने में शर्म आती है| हम अंग्रेजी में इसलिए बोलते हैं कि इससे दूसरों पर रोब पड़ेगा| हम स्वयं ही इतने हीन हो गए हैं कि हमें अपनी भाषा बोलने में भी शर्म आ रही है, इससे दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा? लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, जो गलत है| दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है? शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है|
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इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वह भी अंग्रेजी में नहीं थी और इनके भगवान जीसस क्राइस्ट भी अंग्रेजी नहीं बोलते थे| जीसस क्राइस्ट की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी| अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारी बंगला भाषा से मिलती जुलती थी| समय के कालचक्र में वह भाषा विलुप्त हो गयी है| संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहाँ की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है | जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकाले की रणनीति थी|
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पर अब एक प्रबल आध्यात्मिक शक्ति भारत का उत्थान कर रही है| भारत फिर से उठ रहा है और परम वैभव के शिखर पर पहुँचेगा|
ओम् तत् सत् | शिवोहं शिवोहं शिवोहं शिवोहं शिवोहं | ॐ ॐ ॐ||
कृपा शंकर
८ फरवरी २०१६

1 comment:

  1. यदि अनेक निष्ठावान दृढ़ निश्चयी साधक नित्य अपनी दैनिक प्रार्थना में निज जीवन व राष्ट्र के समुत्कर्ष और निःश्रेयस के लिए संकल्प व प्रार्थना करें तो एक दुर्धर्ष प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति का प्राकट्य भारतवर्ष में निश्चित रूप से होगा जो राष्ट्र में छाई हुई असत्य और अंधकार की शक्तियों को पराभूत कर देगी|
    (समुत्कर्ष निःश्रेयसस्यैकमुग्रं परं साधनं नाम वीर व्रतम्)

    राष्ट्र को एक ब्रह्मतेज की आवश्यकता है जो सभी दैवीय शक्तियों को जागृत कर देगी| उस ब्रह्मतेज को हम अपनी साधना द्वारा जागृत/प्रकट करें|
    हरिः ॐ तत्सत् ॐ ॐ ॐ ||

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