मेरे पास कहीं भी जाने को अब कोई स्थान इस सृष्टि में नहीं बचा है।
कहाँ जाएँ? वासुदेव भगवान श्रीकृष्ण पद्मासन लगाकर शांभवी मुद्रा में हर समय सर्वत्र बिराजमान हैं। सारा विश्व, सारी सृष्टि वे स्वयं हैं। उनसे परे कुछ भी नहीं है। पूरी सृष्टि में उनके सिवाय कोई अन्य है ही नहीं, केवल वे ही वे हैं। एकमात्र खाली स्थान उनके हृदय में है, जहाँ अपना डेरा मैंने लगा रखा है। और कोई स्थान खाली नहीं है। समर्पण के सिवाय कोई अन्य विकल्प नहीं है। श्रीकृष्ण को छोड़कर कुछ है भी तो नहीं। वही तो सर्वमय, सर्वरूप हैं। जब वे स्वयं सम्मुख है, दृष्टि में दूसरा रूप कैसे आ सकता है?
"ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः॥"
७ जून २०२३
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