परमात्मा से जैसे भी निर्देश मिलें, उनका पालन करें ---
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परमात्मा से अपने संबंध व्यक्तिगत बनायें, मार्गदर्शन भी उन्हीं से लें, और समर्पित होकर उन्हीं को कर्ता बनायें। वे स्वयं ही एकमात्र कर्ता हैं, हम नहीं। कोई भी संशय हो तो उसका समाधान भी उन्हीं से करायें। हमारे माध्यम से सारी साधना वे स्वयं ही करते हैं। भटकने से अधिक बुरी गति, कोई दूसरी नहीं है। अपना अच्छा-बुरा सब कुछ, और स्वयं को भी उन्हें समर्पित कर दो। हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। एकमात्र अस्तित्व उन्हीं का है। सत्यनिष्ठा से किये गये समर्पण में जितनी अधिक पूर्णता होगी, जीवन में उतना ही अधिक संतोष, तृप्ति और आनंद मिलेगा।
"ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्॥१५:१॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
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जो मेरे माध्यम से साँस ले रहा है, जो मेरी आँखों से देख रहा है, जो मेरे ह्रदय में धड़क रहा है, जो मेरे माध्यम से सोच विचार कर रहा है, जो इस देह की सारी क्रियाओं का संचालक है, जो मेरा प्राण और अस्तित्व है, जो मेरा प्रेम और आनंद है, जो मेरा सब कुछ है, वह परमात्मा ही है। मैं तो कुछ भी नहीं हूँ। मैं कुछ पाने के लिए नहीं, बल्कि उसका दिया सब कुछ उसी को बापस लौटाने के लिए तड़प रहा हूँ।
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ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
६ जून २०२५
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