हमारा निवास परमात्मा के सर्वव्यापी हृदय में है, हम स्वयं आनंद-सिंधु हैं जो कभी प्यासा और अतृप्त नहीं हो सकता ---
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सृष्टिकर्ता परमात्मा से साक्षात्कार (Self-Realization) ही सबसे बड़ी सेवा है जो हम इस जन्म में कर सकते हैं। स्वयं में परमात्मा को निरंतर व्यक्त करें। अपनी गुरु-परंपरा के अनुसार प्राणायाम, ध्यान आदि करें। उपदेश बहुत हैं, इसीलिए मैंने गुरु-परंपरा का उल्लेख किया है। अपनी अपनी गुरु-परंपरानुसार उपासना करें। मुझे मेरे पूर्व-जन्म से ही मार्गदर्शन प्राप्त है, अतः कोई संशय नहीं है। कोई कमी है तो व्यक्तिगत रूप से मुझमें ही है, महान गुरुओं में या उनकी परंपरा में नहीं। मेरे में बहुत अधिक कमियाँ हैं।
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ज्योतिर्मय ब्रह्म का ध्यान करते करते जब ज्योतिर्मय कूटस्थ सूर्यमण्डल के दर्शन होने लगें तब उस सूर्यमंडल में भगवान पुरुषोत्तम का ध्यान करें। जब भी समय मिले तब गीता के १५वें अध्याय "पुरुषोत्तम योग" का स्वाध्याय करें और उसके आरंभ के ऊर्ध्वमूल वाले श्लोकों को समझते हुए तदानुसार ऊर्ध्वमूल में ही ध्यान करते हुए अपनी चेतना का अनंत में विस्तार करें।
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गीता में -- ज्ञान, भक्ति और कर्म -- इन तीनों विषयों को भगवान श्रीकृष्ण ने बहुत अच्छी तरह से समझाया है। हमारा निवास परमात्मा के हृदय में है। हम स्वयं अनंत आनंद-सिंधु हैं, अब कभी प्यासे और अतृप्त नहीं रहेंगे।
हरिः ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
७ जून २०२४
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