आध्यात्मिक साधना वही करें जो हमें वीतराग बनाये ---
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लौकिक जीवन में वही काम करें जो राष्ट्रहित में हो। आध्यात्म में वही साधना करें जिसमें परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति हो। क्या सही है और क्या गलत है, यह अपने हृदय से पूछें। हृदय कभी गलत उत्तर नहीं देगा। मन हमें धोखा दे सकता है, लेकिन हृदय नहीं। झूठी और बनावटी बातों में आकर दुष्टों के चक्कर में न फँसे। हमारा सबसे बड़ा शत्रु हमारा लोभ और अहंकार है। आध्यात्मिक साधना वही करें जो हमें वीतराग बनाये। वीतरागता का अर्थ है -- राग, द्वेष और अहंकार से मुक्ति। वीतरागता ही हमें स्थितप्रज्ञ बनाकर परमात्मा के साथ एक कर सकती है। हमारी हरेक सांस में परमात्मा हो, हमारे हरेक कार्य के कर्ता परमात्मा हों।
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मैं तो आध्यात्मिक साधना भी वही करता हूँ जिससे राष्ट्र का यानि समष्टि का कल्याण होता है। मैकाले की शिक्षा पद्धति को बदलने का समय आ गया है। परमात्मा की, और धर्म की सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति भारत में हुई है। अतः भारत का उत्थान ही सत्य सनातन धर्म का उत्थान है; और सत्य-सनातन-धर्म का उत्थान ही भारत का उत्थान है। इस जीवन का अवशिष्ट भाग परमात्मा को पूर्णतः समर्पित है। जीवन में जो भी भूलें कीं, उनकी पुनरावृति न हो। भारत एक धर्मनिष्ठ यानि सत्यनिष्ठ राष्ट्र होगा। धर्म की जय, और अधर्म का पराभव होगा।
ॐ तत् सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२५ नवंबर २०२५
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