Friday, 16 June 2017

'वयं तव' (हम तुम्हारे हैं) .....

'वयं तव' (हम तुम्हारे हैं) .....
--------------------------
जब हम अपने प्रेम को व्यक्त करते हुए इस निर्णय पर पहुँच जाते हैं कि हे प्रभु हम सदा सिर्फ तुम्हारे हैं, तब माँगने के लिए बाकी कुछ भी नहीं रह जाता|
कुछ माँगना ही क्यों? प्रेम में कोई माँग नहीं होती, सिर्फ समर्पण होता है|
कुछ माँगना एक व्यापार होता है, देना ही सच्चा प्रेम है|
.
'वयं तव' ..... एक सिद्ध वेदमन्त्र है|
इस स्वयंसिद्ध वाणी में साधना की चरम सच्चाई निहित है|
यह भाव ..... परम भाव है|
.
मनुष्य के जीवन का केंद्र बिंदु परब्रह्म परमात्मा है जिसमें शरणागति और समर्पण अनिवार्य है| जिस क्षण जीवन के हर कर्म के कर्ता परब्रह्म परमात्मा बन जायेंगे, उसी क्षण से हमारा अस्तित्व मात्र ही इस सृष्टि के लिए वरदान बन जायेगा
यह उच्चतम भाव है|
.
मनुष्य की देह का केंद्र नाभि है| जब नाभि अपने केंद्र से हट जाती है तब देह की सारी व्यवस्था गड़बड़ा जाती है| वैसे ही जब हम अपने जीवन के केंद्रबिंदु परमात्मा को अपने जीवन से हटा देते हैं तब हमारा जीवन भी गड़बड़ा जाता है|
.
भगवान के पास सब कुछ है, पर एक चीज नहीं है, जिसके लिए वे भी तरसते हैं|
हमारे पास जो कुछ भी है वह भगवान का ही दिया हुआ है| हमारे पास अपना कहने के लिए सिर्फ एक ही चीज है, जिसे हम भगवान को अर्पित कर सकते हैं, और वह है हमारा अहैतुकी पूर्ण परम प्रेम| भगवान सदा हमारे प्रेम के लिए तरसते हैं| अपना समस्त अहंभाव, अपनी पृथकता का बोध, अपना पूर्ण प्रेम परमात्मा को समर्पण कर दीजिये| यही जीवन की सार्थकता है|
.
भक्त और भगवान..... एक दुसरे में डूबे हुए ..... दोनों कितने प्यारे हैं ..... बिना एक दूसरे के दोनों अधूरे हैं ..... जीवन कैसा भी हो, सौंदर्य यही है ..... सचमुच... जीवन यही है|
.
हम तुम्हारे हैं, मैं तुम्हारा हूँ | यह कभी ना भूलें |
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय | ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ||

कृपाशंकर
14June2016

No comments:

Post a Comment