Friday, 20 June 2025

(Re-Edited & Re-Posted) "रथस्थं वामनं दृष्ट्वा पुनर्जन्म न विद्यते।" (स्कन्द पुराण) ----

 (Re-Edited & Re-Posted) "रथस्थं वामनं दृष्ट्वा पुनर्जन्म न विद्यते।" (स्कन्द पुराण)

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इसका भावार्थ है कि इस शरीर रूपी रथ में जो सर्वव्यापी सूक्ष्म आत्मा को देखता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता है। यह गुरुकृपा से ही समझ में आने वाला विषय है। परमात्मा को वही प्राप्त करता है जो इस शरीर रूपी रथ में सर्वव्यापी सूक्ष्म आत्मा को अनुभूत करता है।
अपना सम्पूर्ण ध्यान कूटस्थ सूर्य-मण्डल पर केन्द्रित कर के अनंत ब्रह्म में लीन हो जाना ही वास्तविक योगाभ्यास है।
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हम झूले में ठाकुर जी को झूला झुला कर उत्सव मनाते हैंं, यह तो प्रतीकात्मक है। लेकिन वास्तविक झूला तो कूटस्थ में है, जहाँ सचमुच आत्मा की अनुभूति --ज्योति, नाद व स्पंदन के रूप में होती है। तब सौ काम छोड़कर भी उस में लीन हो जाना चाहिए। यह स्वयं में एक उत्सव है। ज्योति, नाद व भागवत-स्पंदन की अनुभूति होने पर पूरा अस्तित्व आनंद से भर जाता है जैसे कोई उत्सव हो। यही ठाकुर जी को झूले में डोलाना है।
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तंत्र शास्त्रों में इसे दूसरे रूप में समझाया गया है --
"पीत्वा पीत्वा पुनः पीत्वा, यावत् पतति भूतले।
उत्थाय च पुनः पीत्वा, पुनर्जन्म न विद्यते॥" (तन्त्रराज तन्त्र).
अर्थात् पीये, और बार बार पीये जब तक भूमि पर न गिरे| उठ कर जो फिर से पीता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता।
यह एक बहुत ही गहरा ज्ञान है जिसे एक रूपक के माध्यम से समझाया गया है।
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आचार्य शंकर ने "सौंदर्य लहरी" ग्रंथ के आरम्भ में ही भूमि-तत्त्व मूलाधारस्थ कुण्डलिनी के सहस्रार में उठ कर परमशिव के साथ विहार करने का वर्णन किया है। विहार के बाद कुण्डलिनी नीचे भूमि तत्त्व के मूलाधार में वापस आती है। बार बार उसे सहस्रार तक लाकर परमेश्वर से मिलन कराने पर पुनर्जन्म नहीं होता है। (यह क्रिया-योग साधना का सार है)
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गीता में भगवान कहते हैं --
"आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन।
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते॥८:१६॥"
अर्थात् -- हे अर्जुन ! ब्रह्म लोक तक के सब भुवन पुनरावर्ती हैं। परन्तु, हे कौन्तेय ! मुझे प्राप्त होने पर पुनर्जन्म नहीं होता॥
यह समझ में आ जाये तो सार की सारी बातें समझ में आ जाती है।
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हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ नमो नारायण !! ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
आप सब महापुरुषों को नमन !! ॐ स्वस्ति !! ॐ गुरु !! जय गुरु !!
कृपा शंकर
२१ जून २०२५

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