Wednesday, 11 June 2025

आत्मज्ञान परमधर्म है, यही ब्रह्मज्ञान है ---

 आत्मज्ञान परमधर्म है, यही ब्रह्मज्ञान है --

* जब तक शान्ति और प्रेम की गहनतम अनुभूति न हो तब तक ध्यान के आसन से भूल कर भी मत उठिये। दिव्य प्रेम और शान्ति की अनुभूति -- साधना के प्रसाद हैं। उनका आनंद लिए बिना उठ जाना ऐसे ही है जैसे आपने एक दूध की बाल्टी भरी और उसको ठोकर मार कर चल दिए। कर्ताभाव से मुक्त रहें।
* यदि परस्त्री/परपुरुष और पराये धन की कामना, या दूसरों के अहित, या अधर्म की बातें मन में आती हैं तो भगवती महाकाली की साधना करनी चाहिए। इसके लिए मुझसे नहीं, अपनी गुरु-परंपरा के आचार्यों से मार्गदर्शन प्राप्त करें। कुसंग, अभक्ष्य-भक्षण, परनिंदा, और व्यभिचार तो छोडना ही पड़ेगा।
*ॐ तत्सत् ! ॐ स्वस्ति ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ जून २०२२

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