आत्मज्ञान परमधर्म है, यही ब्रह्मज्ञान है --
* जब तक शान्ति और प्रेम की गहनतम अनुभूति न हो तब तक ध्यान के आसन से भूल कर भी मत उठिये। दिव्य प्रेम और शान्ति की अनुभूति -- साधना के प्रसाद हैं। उनका आनंद लिए बिना उठ जाना ऐसे ही है जैसे आपने एक दूध की बाल्टी भरी और उसको ठोकर मार कर चल दिए। कर्ताभाव से मुक्त रहें।
*ॐ तत्सत् ! ॐ स्वस्ति ! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ जून २०२२
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