पुराण-पुरुष को नमन,
--------------------
श्रीराम जयराम जय जय राम॥ सर्वव्यापी सर्वस्व भगवान श्रीराम की वंदना मैं बुद्धिहीन अल्पमति, करता हूँ। "तस्य भासा सर्वमिदं विभाति" -- उनके प्रकाश से ही मुझे सब कुछ दिखाई दे रहा है। सारी सृष्टि उनके प्रकाश का ही घनीभूत रूप है। प्रकाश रूप में मैं उन्हीं का ध्यान करता हूँ। वे ही यह मैं बन गए हैं।
.
श्रीमद्भगवद्गीता के ११वें अध्याय में अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण की वंदना उन्हें "पुराण-पुरुष" संबोधित कर के की है --
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप ||११:३८||
अर्थात् -- आप ही आदि देव और पुराण पुरुष हैं तथा आप ही इस संसार के परम आश्रय हैं| आप ही सबको जानने वाले, जानने योग्य और परम धाम हैं| हे अनन्त रूप आपसे ही सम्पूर्ण संसार व्याप्त है|
.
आचार्य शंकर ने भी अपने ग्रंथ "विवेक चूड़ामणि" के १३१ वें मंत्र में पुराण-पुरुष की वंदना की है --
"एषोऽन्तरात्मा पुरुषः पुराणो निरन्तराखण्ड-सुखानुभूति |
सदा एकरूपः प्रतिबोधमात्र येनइषिताः वाक्असवः चरन्ति ||"
.
वे पुराण पुरुष अन्तर्रात्मा निरंतर अखंड सुखानुभूति के रूप में व्यक्त हो रहे हैं।
मेरा चित्त "उभयतो वाहिनी नदी" यानि परस्पर दो विपरीत दिशाओं में प्रवाहित होने वाली अद्भुत नदी की तरह है। मुझे किस ओर बहना है उसका अभ्यास वैराग्य के साथ करना पड़ेगा। यही एकमात्र कमी मुझ में है, अन्यथा परमात्मा तो मिले ही हुये हैं। वैराग्य के लिए जो साहस चाहिए उसका मुझमें अभाव है। वह वैराग्य जागृत हो जाये तो फिर और कुछ भी नहीं चाहिये।
मैं भगवान श्रीराम का ध्यान करता हूँ। वे मेरी सब कमियों को दूर करें।
.
मेरे चित्त में तमोगुण की प्रबलता होने पर निद्रा, प्रमाद, आलस्य, निरुत्साह आदि मूढ़ अवस्था के दोष उत्पन्न होते हैं।
रजोगुण की प्रबलता होने पर चित्त विक्षिप्त अर्थात् चञ्चल हो जाता है।
सतोगुण प्रबल होने पर परमात्मा से परमप्रेम (भक्ति) जागृत होता है।
.
त्रिगुणातीत होने के लिए उपासना का अभ्यास और वैराग्य सर्वोत्तम साधन हैं। अभ्यास से तमोगुण की निवृत्ति और वैराग्य से रजोगुण की निवृत्ति होती है। वैराग्य से चित्त का बहिर्मुख प्रवाह रोका जाता है, व अभ्यास से आत्मोन्मुख प्रवाह स्थिर किया जा सकता है।
वैराग्य हो तो शुकदेव जैसा, और स्थितप्रज्ञता हो तो जड़भरत जैसी। जैसी मेरी बुद्धि है, वैसी ही बात कर रहा हूँ। किसी के समझ में न आये तो यह उसकी समस्या है।
.
भगवत्-प्राप्ति हो या न हो, यह भगवान की समस्या है, मेरी नहीं। उनकी इच्छा हो तो आयें, और इच्छा न हो तो न आयें। वे भी मेरे बिना नहीं रह सकते। तभी तो मुझे अपने हृदय में स्थान दे रखा है। मैं उन को पुनश्च नमन करता हूँ --
.
"त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥
वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशाङ्कः प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेऽस्तु सहस्रकृत्वः पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते॥
नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामितविक्रमस्त्वं सर्वं समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥"
.
"वसुदॆव सुतं दॆवं कंस चाणूर मर्दनम्।
दॆवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दॆ जगद्गुरुम्॥"
"वंशीविभूषित करान्नवनीरदाभात् , पीताम्बरादरूण बिम्बफला धरोष्ठात्।
पूर्णेंदु सुन्दर मुखादरविंदनेत्रात् , कृष्णात्परं किमपि तत्वमहं न जाने॥"
.
"कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणत क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नम:॥"
"नमो ब्रह्मण्य देवाय गो ब्राह्मण हिताय च, जगद्धिताय कृष्णाय गोविन्दाय नमो नमः॥"
"मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम् । यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम्॥"
.
"कस्तूरी तिलकम् ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम् ,
नासाग्रे वरमौक्तिकम् करतले, वेणु: करे कंकणम्।
सर्वांगे हरिचन्दनम् सुललितम्, कंठे च मुक्तावली,
गोपस्त्री परिवेष्टितो विजयते, गोपाल चूड़ामणि:॥"
.
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१२ जून २०२४
No comments:
Post a Comment