Wednesday, 11 June 2025

भारत माता के सुपुत्र महानतम क्रांतिकारियों में अग्रणी पं.रामप्रसाद बिस्मिल को श्रद्धांजलि ---

 भारत माता के सुपुत्र महानतम क्रांतिकारियों में अग्रणी पं.रामप्रसाद बिस्मिल को श्रद्धांजलि ..

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ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो, प्रत्येक भक्त तेरा, सुख-शांति-कांतिमय हो|
अज्ञान की निशा में, दुख से भरी दिशा में, संसार के हृदय में तेरी प्रभा उदय हो ||१||
तेरा प्रकोप सारे जग का महाप्रलय हो, तेरी प्रसन्नता ही आनन्द का विषय हो|
वह भक्ति दे कि बिस्मिल सुख में तुझे न भूले, वह शक्ति दे कि दुःख में कायर न यह हृदय हो ||२||
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शुक्रवार ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी (निर्जला एकादशी) विक्रमी संवत् १९५४ तदनुसार ११ जून १८९७ को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में.पं.राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म हुआ| वह दिन बड़ा शुभ ओर पावन था| और सोमवार पौष कृष्ण एकादशी (सफला एकादशी) विक्रमी संवत् १९८४ तदनुसार १९ दिसम्बर १९२७ मात्र तीस वर्ष की आयु में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गोरखपुर जेल में फाँसी दे दी|
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वे एक बहुमुखी साहित्यिक प्रतिभा के धनी महान क्रन्तिकारी थे| 'बिस्मिल' उनका उर्दू तखल्लुस (उपनाम) था जिसका हिन्दी में अर्थ होता है -- "आत्मिक रूप से आहत"| राम प्रसाद का आचरण इतना पवित्र था कि सब उन्हें पंडित जी कह कर संबोधित करते थे| संस्कृत, हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी --- इन चारों भाषाओँ पर उनका बहुत अच्छा अधिकार था|
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सन १९१५ में भाई परमानन्द की फाँसी का समाचार सुनकर रामप्रसाद ने ब्रिटिश साम्राज्य को समूल नष्ट करने की प्रतिज्ञा की और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े| लोकमान्य तिलक से उन्हें बहुत प्रेरणा मिली| ११ वर्ष के क्रान्तिकारी जीवन में उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं और स्वयं ही उन्हें प्रकाशित किया| उन पुस्तकों को बेचकर जो पैसा मिला उससे उन्होंने हथियार खरीदे और उन हथियारों का उपयोग ब्रिटिश राज का विरोध करने के लिये किया| ११ पुस्तकें ही उनके जीवन काल में प्रकाशित हुईं और ब्रिटिश सरकार द्वारा ज़ब्त की गयीं| बिस्मिल के अतिरिक्त वे राम और अज्ञात के नाम से भी लेख व कवितायें लिखते थे|
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बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा लिखित "वंदे मातरम् " के नारे के साथ जैसे हज़ारों क्रांतिकारियों ने अपने प्राण न्योछावर किये वैसे ही बिस्मिल की लिखी कविता --- 'सरफरोसी की तमन्ना' ........ को गाते गाते भी अनेक क्रन्तिकारी भी फाँसी के फंदे पर चढ़ गए|
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काकोरी काण्ड का मुकदमा लखनऊ में चल रहा था| पण्डित जगतनारायण मुल्ला सरकारी वकील के साथ उर्दू के शायर भी थे| उन्होंने अभियुक्तों के लिये "मुल्जिमान" की जगह "मुलाजिम" शब्द बोल दिया| फिर क्या था, पण्डित राम प्रसाद 'बिस्मिल' ने तपाक से उन पर ये चुटीली फब्ती कसी -------
"मुलाजिम हमको मत कहिये, बड़ा अफ़सोस होता है;
अदालत के अदब से हम यहाँ तशरीफ लाये हैं|
पलट देते हैं हम मौजे-हवादिस अपनी जुर्रत से;
कि हमने आँधियों में भी चिराग अक्सर जलाये हैं।"
उनके कहने का मतलब था कि मुलाजिम वे (बिस्मिल) नहीं, बल्कि मुल्ला जी हैं जो सरकार से तनख्वाह पाते हैं| वे (बिस्मिल आदि) तो राजनीतिक बन्दी हैं अत: उनके साथ तमीज से पेश आयें| इसके साथ ही यह चेतावनी भी दे डाली कि वे समुद्र की लहरों तक को अपने दुस्साहस से पलटने का दम रखते हैं; मुकदमे की बाजी पलटना कौन सी बड़ी बात है? भला इतना बोलने के बाद किसकी हिम्मत थी जो बिस्मिल के आगे ठहरता| मुल्ला जी को पसीने छूट गये और उन्होंने कन्नी काटने में ही भलाई समझी| वे चुपचाप पिछले दरवाजे से खिसक लिये| फिर उस दिन उन्होंने कोई जिरह नहीं की|
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१६ दिसम्बर १९२७ को बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा का अंतिम अध्याय पूर्ण करके जेल से बाहर भिजवा दिया| १८ दिसम्बर १९२७ को माता-पिता से अन्तिम मुलाकात की|
सोमवार १९ दिसम्बर १९२७ (पौष कृष्ण एकादशी विक्रमी सम्वत् १९८४) को प्रात:काल ६ बजकर ३० मिनट पर गोरखपुर की जिला जेल में उन्हें फाँसी दे दी गयी|
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फाँसी पर ले जाते समय आपने बड़े जोर से कहा ---
"वन्दे मातरम ! भारतमाता की जय !"
और शान्ति से चलते हुए कहा ---
"मालिक तेरी रज़ा रहे और तू ही तू रहे,
बाकी न मैं रहूँ न मेरी आरजू रहे|
जब तक कि तन में जान रगों में लहू रहे,
तेरा ही जिक्र और तेरी जुस्तजू रहे||"
फाँसी के तख्ते पर खड़े होकर आपने कहा ------
"I wish the downfall of British Empire! अर्थात मैं ब्रिटिश साम्राज्य का पतन चाहता हूँ!"
उसके पश्चात यह शेर कहा --
"अब न अह्ले-वल्वले हैं और न अरमानों की भीड़,
एक मिट जाने की हसरत अब दिले-बिस्मिल में है |"
फिर ईश्वर का ध्यान व प्रार्थना की और यह मन्त्र ---
"ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानी परासुवः यद् भद्रं तन्न आ सुवः"
पढ़कर अपने गले में अपने ही हाथों से फाँसी का फंदा डाल दिया|
रस्सी खींची गयी| रामप्रसाद जी फाँसी पर लटक गये|
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बिस्मिल के बलिदान का समाचार सुनकर बहुत बड़ी संख्या में जनता जेल के फाटक पर एकत्र हो गयी| जेल का मुख्य द्वार बन्द ही रक्खा गया और फाँसीघर के सामने वाली दीवार को तोड़कर बिस्मिल का शव उनके परिजनों को सौंप दिया गया| शव को डेढ़ लाख लोगों ने जुलूस निकाल कर पूरे शहर में घुमाते हुए राप्ती नदी के किनारे राजघाट पर उसका अन्तिम संस्कार कर दिया|
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"तेरा गौरव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें"
उन्हीं के इन शब्दों में भारत माँ के इन अमर सुपुत्र को श्रद्धांजलि|
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जय जननी जय भारत |
ॐ ॐ ॐ ||
कृपाशंकर
११ जून २०१५

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