माँ की स्तुति में हम कहते हैं कि माता कुमाता नहीं हो सकती, पुत्र कुपुत्र हो सकता है| पर मैं ऐसी माताओं को भी जानता हूँ जो अपनी संतानों, पति और भरे-पूरे परिवार को छोड़कर अपने किसी प्रेमी के साथ भाग जाती हैं|
पूरे भारत में किसी भी जिले के पारिवारिक न्यायालय में जा कर देख लो, झूठे महिला अत्याचार और प्रताड़ित पतियों द्वारा दाखिल तलाक़ के मुक़दमें भरे पड़े हैं|
स्त्री और पुरुष की देह किसी भी आत्मा को अपने प्रारब्ध के कारण प्राप्त होती है| सबके अपने अपने कर्म हैं और सब का अपना अपना भाग्य|
फिर भी मैं सभी माताओं का सम्मान करता हूँ क्योंकि परमात्मा भी माता पहिले हैं फिर पिता|
ॐ ॐ ॐ ||
१५ मई २०१७
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