Sunday, 18 May 2025

"पुष्पिता वाणी" (दिखावटी शोभायुक्त वाणी) से बचो, और "व्यवसायात्मिका बुद्धि" (निश्चयात्मिका बुद्धि) पर दृढ़ रहो ---

 गीता के सांख्य-योग (अध्याय २) में भगवान हमें गीता के सांख्य-योग (अध्याय २) में भगवान हमें "पुष्पिता वाणी" (दिखावटी शोभायुक्त वाणी) से बचने, और "व्यवसायात्मिका बुद्धि" (निश्चयात्मिका बुद्धि) पर दृढ़ रहने को कहते हैं ---

"यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः।
वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः॥२:४२॥"
कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम्।
क्रियाविशेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति॥२:४३॥"
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम्।
व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते॥२:४४॥"
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गीता का स्वाध्याय बार बार करना पड़ता है, अन्यथा हमारी स्मृति हमें धोखा देने लगती है। मेरे लिखे इस लेख को पढ़ने की अपेक्षा प्रत्यक्ष गीता का ही स्वाध्याय करें। साथ में भाष्यकारों के कम से कम दो भाष्य भी साथ में रख कर उनकी सहायता लें। मैं शंकर भाष्य से मार्गदर्शन तो लेता ही हूँ, साथ में एक और भाष्य का स्वाध्याय भी करता हूँ।
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मेरी स्मरण-शक्ति अब बहुत अधिक धोखा देने लगी हैं, अतः हर समय सजग और सावधान रहना पड़ता है। व्यवसायात्मिका बुद्धि के अभाव में आध्यात्मिक विफलता तो मिलती ही है, व्यक्तिव में विखंडन भी हो सकता है।
सादर सप्रेम धन्यवाद !!
कृपा शंकर
१६ मई २०२५
"यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः।
वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः॥२:४२॥"
कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम्।
क्रियाविशेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति॥२:४३॥"
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम्।
व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते॥२:४४॥"
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गीता का स्वाध्याय बार बार करना पड़ता है, अन्यथा हमारी स्मृति हमें धोखा देने लगती है। मेरे लिखे इस लेख को पढ़ने की अपेक्षा प्रत्यक्ष गीता का ही स्वाध्याय करें। साथ में भाष्यकारों के कम से कम दो भाष्य भी साथ में रख कर उनकी सहायता लें। मैं शंकर भाष्य से मार्गदर्शन तो लेता ही हूँ, साथ में एक और भाष्य का स्वाध्याय भी करता हूँ।
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मेरी स्मरण-शक्ति अब बहुत अधिक धोखा देने लगी हैं, अतः हर समय सजग और सावधान रहना पड़ता है। व्यवसायात्मिका बुद्धि के अभाव में आध्यात्मिक विफलता तो मिलती ही है, व्यक्तिव में विखंडन भी हो सकता है।
सादर सप्रेम धन्यवाद !!
कृपा शंकर
१६ मई २०२५

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