Monday, 19 May 2025

आज हमारे विवाह की ४८वीं वर्षगाँठ है --- (१९ मई २०२१)

 आज हमारे विवाह की ४८वीं वर्षगाँठ है ---

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हमारे इष्टदेव, कुलदेवी, और पितृगणों के आशीर्वाद, गुरुकृपा, व आप सब की मंगलमय शुभ कामनाओं से आज हमारे वैवाहिक जीवन के ४८ वर्ष पूर्ण हो गए हैं। बिना किसी लड़ाई-झगड़े, वाद-विवाद और असंतोष के; "सुख-शांति और संतुष्टि" से ये ४८ वर्ष बीते हैं, और जब तक प्रारब्ध में साथ-साथ रहना लिखा है, सुख-शांति से ही रहेंगे। जिन देवी-स्वरूपा से मेरा परिणय हुआ था उन्होंने जीवन की हर सम-विषम परिस्थिति में अपने धर्म को निभाया, और सदा मेरा साथ दिया। उन्हीं की सेवा के फलस्वरूप आज मैं जीवित और स्वस्थ हूँ।
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ग्रेगोरियन कलेंडर (ईसाई पंचांग) के अनुसार १९ मई १९७३ को परिणय, पाणिग्रहण-संस्कार द्वारा एक गठबंधन में बंधकर मैंने गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। पाश्चात्य दृष्टिकोण से तो यह एक आश्चर्य और उपलब्धि है कि कोई विवाह इतने लम्बे समय तक निभ जाए। भारतीय दृष्टिकोण से तो अब से बहुत पहिले ही वानप्रस्थ आश्रम का आरम्भ हो जाना चाहिए था जो नहीं हो पाया।
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सनातन धर्म के अनुसार विवाह का एक आदर्श आध्यात्मिक दृष्टिकोण भी है, लेकिन उसके आसपास पहुँचना भी अति कठिन है। सारे आदर्श, आदर्श ही रह जाते हैं, कई बातें हृदय की हृदय में ही रह जाती हैं, कभी साकार नहीं हो पातीं। लेकिन उन्हें कहना चाहिये ---
🌹🙏🕉🙏🌹 "जैसे पृथ्वी -- चन्द्रमा को साथ लेकर सूर्य की परिक्रमा करती है वैसे ही एक गृहस्थ अपनी चेतना में अपने लौकिक परिवार को भी अपने साथ लेकर परमात्मा की उपासना करता है।"
🌹🙏🕉🙏🌹आध्यात्मिक दृष्टिकोण से तो "सारी सृष्टि मेरा परिवार है, और सारा ब्रह्मांड मेरा घर। मैं सम्पूर्ण समष्टि हूँ, यह भौतिक देह नहीं। मेरे सिवाय अन्य कोई नहीं है। मेरा न जन्म है, और न मृत्यु। मैं शाश्वत परमशिव हूँ।"
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यह सृष्टि और उसका संचालन जगन्माता का कार्य है। हे भगवती, हे जगन्माता, परमात्मा के प्रति हमारा समर्पण पूर्ण हो, किसी प्रकार की कोई कामना, मोह और अहंकार का अवशेष ना रहे। हमारा अच्छा-बुरा जो भी है वह संपूर्ण आपको समर्पित है। हमारा समर्पण स्वीकार करो। जैसे मिठाई खाने से मुँह मीठा होता है वैसे ही परमात्मा का स्मरण करने से जीवन आनंदित रहता है। यह आनंद सदा बना रहे।
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विवाह-संस्कार -- पूर्व जन्मों के कर्म-फलों के आधार पर ही होता है। कोई माने या न माने पर यह शत-प्रतिशत सत्य है। कहने को तो हम लोग इसे 'संयोग' कह देते हैं, पर कुछ भी 'संयोग' नहीं है, सब कुछ प्रकृति के नियमों के अनुसार ही होता है। अपने नियमों का पालन प्रकृति बड़ी कठोरता और निष्ठुरता से करती है। प्रकृति के नियमों को भगवान ही बदल सकते हैं, यह मनुष्य के बूते से बाहर है।
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विवाह की वर्षगाँठ पर बधाई और अभिनंदन करने वाले सभी मित्रों व स्नेही जनों को मेरा सादर नमन, धन्यवाद और शुभाशीष !! परमात्मा की महती कृपा आप पर सदा बनी रहे, और आपका जीवन परम मंगलमय हो, आपका यश और कीर्ति अमर रहे।
"ऊँ सहनाववतु सहनौभुनक्तु सहवीर्यं करवावहै, तेजस्विनावधीतमस्तु मां विद्विषावहै। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥"
"स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्वेवेदाः। स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥"
"ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव यद् भद्रं तन्न आ सुव॥"
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ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !! 🌹🙏🕉🕉🕉🙏🌹
कृपा शंकर
१९ मई २०२१

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