जनरक्षा के लिए जल, जंगल, जमीन और जानवरों की भी रक्षा करनी होगी...
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सारे ही देश में शुद्ध पेय जल का बड़ा अभाव है| यदि जीवन बचाना है तो जल बचाना ही पड़ेगा| अन्यथा बड़ी भयंकर जनहानि होगी और लोग बीमार पड़ेंगे| जनहानि से बचने के लिए जल, जंगल, जमीन और जानवरों की भी रक्षा करनी होगी| इसके लिए जन चेतना जगानी होगी| कुछ लोग जानबूझ कर दुर्भावनावश पानी को बर्बाद करते हैं, उन्हें दण्डित करना होगा|
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वर्षा के जल को संग्रहित करने के लिए प्राचीन जलाशयों (तालाबों, झीलों, बावड़ियों) आदि की सफाई करनी होगी| उनमें आने वाले स्वाभाविक वर्षा के जलप्रवाह मार्ग में किये गए सभी अतिक्रमणों को ध्वस्त करना होगा|
वर्षा के जल को संग्रहित करने की लिए नए तालाबों का निर्माण भी करना होगा| पक्की सडकों के किनारे किनारे सघन वृक्षावली और जलाशयों का निर्माण करना पड़ेगा ताकि वर्षा का जल व्यर्थ ना जाए|
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भूमि में जल की कमी दूर करने के लिए वर्षा के पानी को साफ़ कर के भूमि के भीतर फिर से भरा जाना पडेगा| हर नागरिक को चाहिए की बरसात से पहिले अपने घर की छत को साफ़ कर लें और वर्षा के जल को भूमिगत टाँकों में साल भर पीने के लिए भर ले, या सोखते खड्डों में डाल दे ताकि वह भूमि में चला जाए| सरकारी स्तर पर भी पानी के पुनर्भरण की व्यवस्था हो|
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गोचर भूमियों को पुनर्जीवित किया जाए और अतिक्रमण हटाये जाएँ| गाय के गोबर से भूमि उपजाऊ और पवित्र होती है| इससे हरियाली भी बढ़ेगी| गौ ह्त्या पर प्रतिबन्ध लगाकर गौ संवर्धन का कार्य प्रारम्भ हो|
जलाशयों में मूर्तियों के प्रवाहित करने पर प्रतिबन्ध लगाया जाए| इससे बहुत अधिक प्रदूषण होता है| यह एक कुप्रथा है|
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वर्षाऋतू में हिमाचल, पंजाब आदि में बहुत वर्षा होती है| वह वर्षाजल बह कर व्यर्थ में पाकिस्तान चला जाता है| उस जल को पाइपों से राजस्थान के उन भागों में जहाँ जलस्तर बहुत नीचे है लाया जाए और साफ़ कर के वहाँ की भूमि में भरा जाए|
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उपरोक्त बिन्दुओं पर विचार किया जाए और जनचेतना जागृत हो|
ॐ तत्सत्व ! वन्दे मातरं ! जय भारत !
कृपा शंकर
६ जून २०१४
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