मैं एक अज्ञात प्रेरणावश केवल आत्म-संतुष्टि के लिए कुछ न कुछ लिखता रहता हूँ। लिखने का अन्य कोई उद्देश्य नहीं है। एक अत्यधिक गहन जिज्ञासावश सनातन धर्म की सभी प्रमुख परम्पराओं के साहित्य का पर्याप्त स्वाध्याय, और प्रायः सभी प्रमुख संप्रदायों के महात्माओं के साथ सत्संग किया था।
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अब तो कोई अन्य है ही नहीं। एकमात्र अस्तित्व मेरे प्रियतम का है। एक अतृप्त प्यास और तड़प (अभीप्सा) बनी हुई है, जिस का कारण मैं समझने में असमर्थ हूँ। वह अभीप्सा और परमप्रेम ही इस जीवन को चला रहे हैं। जब तक वह अभीप्सा और परमप्रेम तृप्त नहीं होते मैं आप सब के मध्य में हूँ। फिर मुझे आप अपने स्वयं में ही पाओगे।
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अब और कुछ पढ़ने की इच्छा नहीं होती। भगवान की अनन्य अव्यभिचारिणी भक्ति और समर्पण -- ही मेरा आदर्श है। भगवान अपनी साधना स्वयं ही करते हैं, मैं तो एक निमित्त मात्र भी नहीं, उनका एक विचार और उनके साथ एक हूँ।
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भगवान की सृष्टि में कोई कमी नहीं है। कमी अगर है तो मेरी समझ और मेरी स्वयं की सृष्टि में ही है। आप सब को मंगलमय शुभ कामनाएँ, नमन और जयगुरु !!
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर
२९ जून २०२२
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पुनश्च : --- एक अतृप्त प्यास व तड़प (अभीप्सा), और परमप्रेम -- ने ही मुझे अब तक जीवित रखा है। उनकी कभी तृप्ति नहीं हुई। अब समझ में आ रहा है, कि उन का कारण क्या है। वह वेदना और पीड़ा मेरे प्राणों में है। मेरे प्राण तो भगवती स्वयं है, जिन्होंने पूरी सृष्टि को धारण कर रखा है। उनकी कृपा से ही यह पीड़ा शांत होगी।
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