Friday, 13 June 2025

परमात्मा से हमारा परमप्रेम अपनी पूर्णता के लिए होता है। यही हमारा स्वभाविक और वास्तविक स्वधर्म है।

परमात्मा से हमारा परमप्रेम अपनी पूर्णता के लिए होता है। यही हमारा स्वभाविक और वास्तविक स्वधर्म है।
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आध्यात्मिक उपलब्धियाँ परमात्मा की कृपा से ही प्राप्त होती हैं, अन्यथा नहीं। परमात्मा की कृपा हमारे प्रेम पर निर्भर है। परमात्मा से प्रेम करो। भगवान् श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में कहा है कि उनका विश्वरूप केवल उनकी कृपा से ही देखा जा सकता है। यह किसी भी तप, ध्यान, वेदाध्ययन आदि द्वारा सम्भव नहीं है।
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अपने स्व+भाव में रहना ही हमारी सर्वश्रेष्ठ अभिव्यक्ति है। आत्मस्वरूप में स्थिति समग्र शास्त्रों का सार है ।
आज के युवावर्ग की कुंठा का कारण उनकी आकांक्षाओं का अपनी क्षमता से बहुत अधिक होना है।
ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१३ जून २०२५

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