Thursday, 22 May 2025

परमात्मा की विस्मृति कभी भी, कैसी भी परिस्थिति में अब और नहीं हो सकती, चाहे सारा ब्रह्मांड टूट कर बिखर जाये, और मृत्यु मेरे सामने खड़ी हो।

 परमात्मा की विस्मृति कभी भी, कैसी भी परिस्थिति में अब और नहीं हो सकती, चाहे सारा ब्रह्मांड टूट कर बिखर जाये, और मृत्यु मेरे सामने खड़ी हो। उनको मैं कभी नहीं भूल सकता, जो मुझे एक निमित्त मात्र बना कर मेरा यह जीवन जी रहे हैं। यह जीवन उन्हीं का है, वे ही इसे जी रहे हैं, मैं नहीं। मैं सदा निर्भय, निश्चिंत और शांत हूँ।

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"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥९:२२॥" (श्रीमद्भगवद्गीता)
"यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्।
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् ॥९:२७॥"
"शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनैः।
संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि॥९:२८॥"
"समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्॥९:२९॥"
"अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः॥९:३०॥"
"क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति।
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति॥९:३१॥"
"मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्॥९:३२॥"
"किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा।
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम्॥९:३३॥"
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः॥९:३४॥"
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"सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते।
अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम॥६:१८:३३॥" (वाल्मीकि रामायण)
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"एकोऽपि कृष्णस्य कृतः प्रणामो दशाश्वमेधावभृथेन तुल्यः।
दशाश्वमेधी पुनरेति जन्म कृष्णप्रणामी न पुनर्भवाय॥४७:९२॥" (महाभारत शान्तिपर्व)
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भगवान हैं, इसी समय हैं, यहीं पर है, हर समय व हर स्थान पर वे मेरे साथ हैं। मैं भी हर समय उनके ही कूटस्थ हृदय में हूँ। कहीं कोई भेद नहीं है।
ॐ तत्सत् ॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥
कृपा शंकर
२२ मई २०२१

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