Saturday, 3 May 2025

जीवन में एकमात्र आकर्षण सच्चिदानंद का है ---

जीवन में एकमात्र आकर्षण सिर्फ सच्चिदानंद का है। हमें परमात्मा के अतिरिक्त अन्य किसी के साथ की आवश्यकता नहीं है। अपने हृदय के सर्वश्रेष्ठ सर्वोत्तम प्रेम का उपहार परमात्मा को दें। सारी सृष्टि सच्चिदानंदमय है। सारी सृष्टि (सारी आकाशगंगाएँ -- अपने नक्षत्रों, ग्रहों, उपग्रहों के साथ, समस्त जड़-चेतन, सारे प्राणी, और यह अनंतता) भगवान का ध्यान कर रही है। प्रणव की ध्वनि चारों ओर गूंज रही है। चारों ओर आनंद ही आनंद है। सच्चिदानंद भगवान विष्णु - इस सृष्टि के रूप में व्यक्त हो रहे हैं। चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश, और आनंद ही आनंद है। कहीं पर भी कोई अंधकार नहीं है। मेरे प्रभु ही यह "मैं" बन गए हैं।


अपनी इष्ट देवी/देवता या सद्गुरु के चरण-कमलों का सदा ध्यान करें। उनके चरण-कमलों का ध्यान ज्योतिर्मय-ब्रह्म के रूप में तब तक कीजिये जब तक उन की आनंदमय उपस्थिती का प्रत्यक्ष बोध न हो। फिर उनको अपने माध्यम से अपने अन्य सब आवश्यक कार्य करने दीजिये। निरंतर परमात्मा की चेतना में रहें। जीवन के हर क्षण स्वयं के माध्यम से परमात्मा को व्यक्त करें। कौन क्या कहता है, इसका कोई महत्व नहीं है। हम परमात्मा की दृष्टि में क्या हैं? -- महत्व सिर्फ इसी का है।


मेरे साथ कुछ देर के लिए भी वे ही रह पाते हैं, जिन के हृदय में परमात्मा के प्रति कूट कूट कर प्रेम भरा हुआ है, और जो इस जीवन में परमात्मा का साक्षात्कार चाहते हैं। अन्य सब भाग जाते हैं। मेरा अनुभव तो यही है कि जिसके साथ, मैं परमात्मा की चर्चा करता हूँ, वह फिर बापस लौट कर नहीं आता। जिस किसी के साथ वेदान्त की चर्चा करता हूँ, वह तो उसी समय उठ कर चल देता है।

वर्तमान युग, और हमारा समाज ही ऐसा है कि परमात्मा एक उपयोगिता की वस्तु बन कर रह गए हैं। अगर उनके माध्यम से रुपये-पैसे आदि की प्राप्ति होती है, या कष्ट दूर होते हैं तब तक तो वे ठीक हैं, अन्यथा उनका कोई उपयोग नहीं है। उनकी भक्ति को लोग Time pass या समय की बर्बादी बताते हैं। चारो ओर बहुत अधिक तमोगुण व्याप्त है। थोड़ा बहुत रजोगुण भी है। सतोगुण का तो अभाव है। कुछ भी नहीं किया जा सकता। भगवान से प्रार्थना ही कर सकते हैं कि वे हमारी निरंतर रक्षा करें।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥
ॐ विश्वं विष्णु: वषट्कारो भूत-भव्य-भवत-प्रभुः।
भूत-कृत भूत-भृत भावो भूतात्मा भूतभावनः॥
पूतात्मा परमात्मा च मुक्तानां परमं गतिः।
अव्ययः पुरुष साक्षी क्षेत्रज्ञो अक्षर एव च॥
योगो योग-विदां नेता प्रधान-पुरुषेश्वरः।
नारसिंह-वपुः श्रीमान केशवः पुरुषोत्तमः॥
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥ ॐ ॐ ॐ !!
. कृपा शंकर ४ मई २०२२

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