मनुष्य मौज-मस्ती करता है सुख की खोज में| यह सुख की खोज, अचेतन मन में छिपी आनंद की ही चाह है| सांसारिक सुख की खोज कभी संतुष्टि नहीं देती, अपने पीछे एक पीड़ा की लकीर छोड़ जाती है| आनंद की अनुभूतियाँ होती हैं सिर्फ ..... भगवान के ध्यान में| भगवान ही आनंद हैं, परम प्रेम जिनका द्वार है| सभी जीवों पर उनकी अपार परम कृपा हो| उनकी परम कृपा हम सब पर है इसी लिए हम जीवित हैं|
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भगवान की भक्ति करते-करते उन का ध्यान भी स्वतः ही होने लगता है| जब भी आवश्यकता होती है, भगवान अपने भक्त का मार्गदर्शन करते हैं| भगवान का ध्यान करते करते उनकी कृपा से भ्रूमध्य में ब्रहमज्योति के दर्शन होने लगते हैं तब उस ज्योतिर्मय ब्रह्म का ही ध्यान करना चाहिए| एक ध्वनी भी सुनाई देने लगती है जो किसी शब्द का प्रयोग नहीं करती| उस ध्वनि के साथ-साथ गुरु-प्रदत्त बीजमंत्र या प्रणव का जप करते-करते उस में तन्मय हो जाना चाहिए| उस ध्वनि को ही अनाहत नाद कहते हैं| उस ज्योतिर्मय ब्रह्म और नाद की चेतना ही कूटस्थ चैतन्य है जिसकी परिणिति गीता में बताई हुई ब्राह्मी स्थिति में होती है|
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प्राण ऊर्जा का घनीभूत होकर मेरुदंड की सुषुम्ना नाड़ी के छः चक्रों में ऊर्ध्वगमन, कुंडलिनी जागरण कहलाता है| यह योगमार्ग की साधना है| कूटस्थ का स्थान भी धीरे धीरे भ्रूमध्य से सहस्त्रार में चला जाता है| फिर धीरे धीरे चेतना में विस्तार की अनुभूतियाँ होने लगती हैं, तब यह लगता है कि हम यह देह नहीं परमात्मा की अनंतता हैं| फिर उस अनंतता का ही ध्यान करना चाहिए| वह ज्योति और ध्वनि भी धीरे धीरे उस अनंतता से परे चले जाती हैं और एक पंचकोणीय नक्षत्र के दर्शन होने लगते हैं| यह एक बहुत ही उच्च स्थिति है| जो सर्वत्र समभाव में व्याप्त हैं वे भगवान वासुदेव हैं| वे ही परमशिव हैं, और वे ही नारायण हैं|
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भक्त साधक को कभी भी मार्गदर्शन का अभाव नहीं रहता| परमात्मा सदा उसका मार्गदर्शन और रक्षा करते हैं| एकमात्र आवश्यकता है भगवान के प्रति परमप्रेम और उन्हें पाने की अभीप्सा| बाकी सारा काम भगवान का है| ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
२४ मई २०२०
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